Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

Essay on gramin Vikas in hindi

Essay on gramin Vikas in hindi


भारत एक कृषिप्रधान देश है। यहाँ की अधिकांश जनता ग्रामों में निवास करती है। यह कहना भी • सर्वथा उचित ही प्रतीत होता है कि ग्राम ही भारत की आत्मा है, लेकिन रोजगार और अन्य सुविधाओं के कारण ग्रामीण शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं

    Essay on gramin Vikas in hindi


     ग्रामीणों के इस पलायन को रोकने के लिए सरकार को गाँवों के विकास की ओर ध्यान देना होगा, अन्यथा इससे कृषि उत्पादन भी प्रभावित हो सकता है जिसके कारण खाद्यान्न संकट भी उत्पन्न हो सकता है। ग्राम भारतीय सभ्यता के प्रतीक है। 


    भोजन एवं अन्य नित्यप्रति की आवश्यकताएँ गाँव ही पूर्ण करते हैं। भारत का औद्योगिक स्वरूप भी ग्रामीण कृषकों पर ही निर्भर है। वस्तुतः भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार ग्राम ही हैं। यदि गाँवों का विकास होगा तो देश भी समृद्ध होगा।


    कृषकों की सामाजिक समस्याएँ


    विकास के इस युग में भी गाँवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, अनेक परेशानियों का मनोरंजन तथा परिवहन के साधनों की समुचित सामना करना पड़ रहा है। वह व्यवस्था नहीं हो सकी है, जिसके साधनों के अभाव में अपने कारण भारतीय किसान को बच्चों के लिए शिक्षा का प्रबन्ध भी नहीं कर पा रहा है, जो उसके पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण है। 


    भारतीय किसान अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही सारे जीवन प्रयास करता रहता है। इसी कारण वह आधुनिक परिवेश से अछूता ही रहता है।


    आर्थिक समस्याएँ


    गाँवों के अधिकांश किसानों की आर्थिक अत्यन्त शोचनीय है। उसकी उपज का उचित मूल्य उसे नहीं मिल पाता। धन के अभाव में वह अच्छी पैदावार भी नहीं ले पाता, जिसका प्रभाव सम्पूर्ण राष्ट्र के विकास पर पड़ता है। गाँवों में निर्धनता, भुखमरी और बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है। कृषकों को कृषि से सम्बन्धित जानकारी सुगमता से सुलभ नहीं हो पाती। स्थिति


    गाँवों की वर्तमान स्थिति 


    गाँवों में पक्की सड़कों का अभाव है। शिक्षा, स्वास्थ्य तथा मनोरंजन के साधनों का उपयुक्त प्रबन्ध नहीं है। बेरोजगारी अपने चरम पर है तथा संचार के समुचित साधनों, पेयजल, एवं परामर्श सम्बन्धी सुविधाओं का अभाव है। निर्देशन उपयुक्त


    भारत में कृषि की स्थिति 


     कृषि क्षेत्र में हमारी श्रमशक्ति का 64 प्रतिशत हिस्सा आजीविका प्राप्त कर रहा है और सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 26 प्रतिशत इसी क्षेत्र में मिलता है। देश के कुल निर्यात में कृषि का योगदान लगभग 18 प्रतिशत है। अनाज की प्रति व्यक्ति उपलब्धता सन् 2000 ई० में प्रतिदिन 467 ग्राम तक पहुँच गई जबकि पाँचवें दशक की शुरूआत में यह प्रति व्यक्ति 395 ग्राम प्रतिदिन थी।


     स्वतन्त्रता के पश्चात् निरन्तर कृषि उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई है, लेकिन वर्ष 2002 में देश के अधिकांश हिस्सों में सूखा पड़ा, जिसके कारण 2001-02 ई० के लिए कृषि उत्पादन के लिए लगाए गए सारे अनुमान बेकार हो गए। धान की पूरी फसल नष्ट हो गई, इसके बावजूद भी आज हम खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं।


    भारतीय कृषि में विज्ञान का योगदान 


     जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। पहले इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए अन्नपूर्ति करना असम्भव ही प्रतीत होता था, परन्तु आज हम अन्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गए हैं। इसका श्रेय आधुनिक विज्ञान को ही है। 


    विभिन्न प्रकार के उर्वरकों, बुआई-कटाई के आधुनिक साधनों, कीटनाशक दवाओं तथा सिंचाई के कृत्रिम साधनों ने खेती को अत्यन्त सुविधापूर्ण एवं सरल बना दिया है। अन्न को सुरक्षित रखने के लिए भी अनेक नवीन उपकरणों का आविष्कार किया गया है। 


    गाँवों के विकास हेतु नवीन योजनाएँ 


     गाँव के विकास हेतु सरकार के द्वारा नवीन योजनाओं का शुभारम्भ किया जा रहा है। पंचवर्षीय योजनाओं में गाँवों के विकास को महत्त्व दिया जा रहा है। गाँवों में परिवहन, विद्युत्



    सिचाई के साधन, पेयजल, शिक्षा आदि की व्यवस्था हेतु व्यापक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। किसानों को उ बीजों का प्रयोग करने के लिए विभिन्न योजनाओं के द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है। आधुनिक कृषि यन्त्र खरी के लिए विभिन्न प्रकार के अनुदान दिए जा रहे हैं।


     जगह-जगह कृषि अनुसन्धान केन्द्र खोले जा रहे हैं। किसानो उत्थान के लिए राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की गई है, जिसका उद्देश्य कृषि, पशुपालन, कु तथा ग्रामोद्योग को आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित करना है।


    राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक 


     राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना सन् 1982 को हुई थी। इसका उद्देश्य कृषि, लघु उद्योगों, कुटीर तथा ग्रामोद्योगों, दस्तकारियों और ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिए ऋण उपलब्ध कराना था, ताकि समेकित ग्रामीण विकास को प्रोत्साहन मि जा सके और ग्रामीण क्षेत्रों को खुशहाल बनाया जा सके।


    कृषि अनुसन्धान और शिक्षा 


    कृषि अनुसन्धान और शिक्षा विभाग की स्थापना कृषि मन्त्रालय के अन्त सन् 1973 ई० में की गई थी। यह विभाग कृषि, पशुपालन और मत्स्यपालन के क्षेत्र में अनुसन्धान और शैक्षि गतिविधियाँ संचालित करने के लिए उत्तरदायी है। कृषि मन्त्रालय के कृषि अनुसन्धान और शिक्षा विभाग के प्रमु संगठन 'भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्' ने कृषि प्रौद्योगिकी के विकास, निवेश सामग्री तथा खाद्यान्न आत्मनिर्भरता लाने के लिए प्रमुख वैज्ञानिक जानकारियों को आम लोगों तक पहुँचाने के मामले में प्रमुख भूमिका निभाई है। 


    भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् की गतिविधियाँ मुख्य रूप से आठ विषयों में विभाजित हैं; जैसे- फसल विज्ञान, बागवानी, मृदा कृषि विज्ञान और वानिकी, कृषि इंजीनियरी, पशु विज्ञान, मत्स्यिकी कृषि विस्तार और कृषि शिक्षा।


    बागवानी


    भारत की जलवायु और मृदा में व्यापक भिन्नता पाई जाती है, जो विविध प्रकार की बागवानी फसलों; जैसे फलों, सब्जियों, कन्द फसलों, सजावटी पौधे, औषधीय पौधे, मसालें तथा रोपण फसलों; जैसे नारियल, काजू, सुपारी आदि की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। भारत अब नारियल, सुपारी, काजू, अदरक, हल्दी तथा काली मिर्च का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है।


    फसलों के मौसम 


    भारत में मोटेतौर पर तीन फसलें होती हैं— खरीफ, रबी और जायद की फसल। खरीफ के मौसम में मुख्य रूप से धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, तिल, सोयाबीन और मूँगफली की खेती की जाती रबी की फसल में गेहूँ, ज्वार, चना, अलसी, तोरिया और सरसों उगाई जाती हैं। जायद की फसलों में खरबूजा तरबूज, ककड़ी, लौकी आदि फसलें उगाई जाती हैं।


     उद्योगों के विकास में कृषि का योगदान 


     सन् 1947 ई० में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से भारत औद्योगि विकास के मार्ग पर अग्रसर हुआ। औद्योगिक विकास में कृषि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अनेक उद्योगों के लिए कच्चा माल कृषि से ही प्राप्त होता है। वस्त्र उद्योग, कागज उद्योग, रबड़ उद्योग तथा चीनी उद्योग पूर्णरूपेण कृषि पर ही निर्भर हैं। 


    कृषि उपज बढ़ाने के लिए समय-समय पर कृषकों को प्रोत्साहित किया तो जाता है, लेकिन उनकी उपज का उचित मूल्य उन्हें नहीं मिल पाता, जिसके कारण किसान वैज्ञानिक कृषि यन्त्रों का प्रयोग नहीं कर पात कृषि के वैज्ञानिक यन्त्रों के अभाव में किसान उद्योगों के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल तैयार नहीं कर पा जिसका प्रभाव उद्योगों के विकास पर पड़ता है। 


    इसलिए औद्योगिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि किसान। उसकी उपज का उचित मूल्य मिले, ताकि किसान भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सके और वैज्ञानिक कृषि यन्त्र का प्रयोग करके उत्पादन में वृद्धि कर सके।


    उपसंहार 


    देश की समृद्धि के लिए ग्रामोत्थान आवश्यक है। सरकार ने भी ग्रामों के विकास के लिए साथ पहल की है। ग्रामीण क्षेत्रों में अब सड़कों, शिक्षा, चिकित्सा, दूर संचार, लघु उद्योग, विद्युत् तथा परिवहन व्यवस्था का प्रसार किया जा रहा है। 


    कृषकों को उन्नत बीज, खाद तथा आधुनिक कृषि यन्त्र खरीदने के लिए ऋण के रूप रुपये व अनुदान दिए जाते हैं तथा प्रत्येक क्षेत्र में किसानों को प्रोत्साहित किया जाता है। आशा है कि निकट भविष्य में कृषक आत्मनिर्भर होकर भारत को समृद्ध करने में पूर्ण योगदान देंगे।



    This post first appeared on Hindigoods, please read the originial post: here

    Share the post

    Essay on gramin Vikas in hindi

    ×

    Subscribe to Hindigoods

    Get updates delivered right to your inbox!

    Thank you for your subscription

    ×