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Dev kavi var ka jivan in hindi

देव कवि वर का जीवन 

कवि- परिचय

 कविवर देव का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। अथवा "देव विरह की चरम अवस्था का वर्णन करने में सिद्धहस्त थे ।" इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? 

Dev kavi var ka jivan in hindi


     जीवन परिचय 

     रीतिकाव्य को प्रतिष्ठा दिलानेवाले कवियों में देव का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में संवत् 1730 (सन् 1673 ई० ) में हुआ था। इनके पिता का नाम बिहारीलाल दूबे था। इनकी मृत्यु अनुमानतः संवत् 1824 (सन् 1767 ई० ) के आस-पास हुई थी। 

    साहित्यिक व्यक्तित्व 

     देव प्रमुख रूप से दरबारी कवि थे। ये अपने जीवनकाल में अनेक राजा, रईसों -


    एवं नवाबों के आश्रय में रहे। इनमें से आजमशाह, चर्खापति, राजा कुशलसिंह, सेठ भोगीलाल, राजा उद्योत सिंह,


    सुजानमणि तथा अली अकबर खाँ आदि प्रमुख थे। कवि देव द्वारा रचित विपुल साहित्य का उल्लेख मिलता है। विभिन्न ग्रन्थों में उल्लिखित तथ्यों के अनुसार इन्होंने लगभग 62 ग्रन्थों की रचनाएँ की; परन्तु इनमें से अब तक केवल 15 ग्रन्थ ही उपलब्ध हो सके हैं।


    रीतिकालीन प्रवृत्ति के अनुसार देव ने भी काव्य-रीति के निरूपण को प्रमुखता दी है। इनके द्वारा किया गया काव्य-रीति का विवेचन कई दृष्टियों से प्रशंसनीय है तो अनेक दोषों से युक्त भी है। इसके विपरीत कवित्वमयता, भावानुभूति एवं रसानुभूति की दृष्टि से इनकी रचनाएँ आकर्षक और प्रभावशाली हैं। 

    कृतियाँ 

    देव द्वारा रचित काव्य-ग्रन्थों में निम्नलिखित ग्रन्थ अब तक उपलब्ध हो सके हैं— भावविलास, अष्टयाम, भवानी - विलास, प्रेमतरंग, कुशल-विलास, जातिविलास, देवचरित्र, रसविलास, प्रेमचन्द्रिका, सुजान - विनोद, काव्य-रसायन, सुखसागर तरंग, राग-रत्नाकर, देवशतक तथा देवमाया-प्रपंच आदि।


    काव्यगत विशेषताएँ रीतिकालीन कवियों में अपनी काव्यात्मक अनुभूति की तीव्रता के कारण देव को एक श्रेष्ठ कवि माना जाता है। इनकी काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

    भावपक्षीय विशेषताएँ

     शृंगार भाव 

     यद्यपि देव ने रीति-निरूपण एवं तत्त्व - चिन्तन सम्बन्धी रचनाएँ भी की हैं, तथापि इनकी रचनाओं में शृंगार भाव की प्रधानता रही है। इनके काव्य में राग-पक्ष (प्रेम पक्ष) निखार के साथ उभरा है। कल्पना की ऊँची उड़ान के कारण इनकी बिम्ब योजना में रंग, वैभव और सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री आदि का विशेष सजीव चित्र प्रस्तुत हुआ है।

     भावानुभूति (विरह) की प्रधानता 

    रीतिकालीन कवियों के शास्त्रीय काव्यों की नीरसता के विपरीत देव के काव्य में भावानुभूति की तीव्रता अत्यन्त प्रभावी रूप से अभिव्यक्त हुई है। विशेष रूप से विरह की चरम अवस्था का वर्णन करने में वे सिद्धहस्त थे। उनके रूप, अनुभव, मिलन आदि के बिम्ब अत्यन्त भावप्रधान एवं मर्मस्पर्शी हैं। एक उदाहरण यहाँ द्रष्टव्य है 

    चाहत उठय्योई उठि गई सो निगोड़ी

    सोय गए भाग मेरे जानि वा जगन में । आँख खोलि देखौं तौं न घन हैं, न घनस्याम, बेई छाई बूँदें मेरे आँसू है दृगन में ॥


    कलापक्षीय विशेषताएँ


    अलंकार योजना 

     देव के काव्यालंकार सम्बन्धी निरूपण में रीतिकालीन प्रवृत्तियाँ विद्यमान हैं। इनके द्वारा प्रयुक्त लक्षणों की सुबोधता, स्पष्टता एवं संक्षिप्तता तथा उदाहरणों की तदनुरूपता और सरसता प्रशंसनीय हैं— 'दधि घृत मधु पायस तजि वयसु चाम चबात।' इनकी अलंकार-योजना में मौलिक उद्भावना का समावेश मिलता है, किन्तु इसमें यत्र-तत्र अस्पष्टता एवं अव्यवस्था का दोष भी परिलक्षित होता है।


     छन्द-योजना

    देव ने शास्त्रीय रूप से मान्य छन्दों के अतिरिक्त कुछ नवीन छन्दों का भी आविष्कार किया और उन्हें अपनी रचनाओं में प्रयुक्त किया है ।


    भाषा 

     देव ने अपनी रचनाएँ ब्रजभाषा में की हैं। इनकी भाषा में संस्कृत का पुट भी मिलता है। इनकी नवीन छन्द-योजना एवं भाषा की सशक्तता को निम्नलिखित पंक्तियों में देखा जा सकता है

     देव मैं सीस बसायो सनेह कै, भाल मुगम्मद-बिंद के भाख्यौ । कंचुकि मैं चुपर्यो करि चोवा, लगाय लियो डर सों अभिलाख्यौ ॥ 

    हिन्दी-साहित्य में स्थान 

     रीतिकालीन कवियों में देव को श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। भावपक्ष के साथ-साथ वत्व, छन्द, अलंकार आदि की दृष्टि से भी इनकी काव्यात्मक प्रतिभा को सम्माननीय दृष्टि से देखा जाता है। इन्होंने अपनी अभिव्यक्ति को काव्यात्मक रूप में सँवारा है। विरह की चरम अवस्था का वर्णन करने में ये अत्यन्त दक्ष थे।




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