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Aurangzeb history in hindi मुगल साम्राज्य

Aurangzeb history in hindi मुगल साम्राज्य

(Aurangzeb history in hindi) काफी हद तक लोगों को औरंगजेब ने दुखी किया था सिर्फ झगड़ा फसाद करते रहते थे हां (Aurangzeb history in hindi)  की लड़ाई शिवाजी से हुई थी शिवाजी को हार का सामना करना पड़ा था खैर हम विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं

Aurangzeb history in hindi


    Aurangzeb history in hindi

    मुगल शासन काल छठे राजा जिन्होंने 1658 से 1707 तक राज किया। मुहिउद्दीन मोहम्मद 3 नवम्बर 1618 – 3 मार्च 1707 ,औरंगज़ेब को आलमगीर नाम से जानते है मुस्लिम लोगो ने दिया था शाही नाम जिसका अर्थ है भारत पर राज करने वाला छठा मुग़ल राजा था।

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    और (Aurangzeb history in hindi) का साम्राज्य कहां तक फैला हुआ था मराठा उसे लड़ाई विद्रोह धार्मिक नीति के बारे में

    मोहिद्दीन मोहम्मद औरंगजेब का पूरा नाम है 3 नवंबर 1618 उज्जैन के द्वारा दिखाओ में हुआ इनकी मां मुमताज महल थी पिता शाहजहां का जायजा ज्यादातर बचपन नूरजहां के पास भी था

    1643 में औरंगजेब को 10000 जात एवं 4000 सवार का मनसब प्राप्त हुआ ओरछा के जुझार सिंह के विरूद्ध औरंगजेब को पहला युद्ध का अनुभव प्राप्त हुआ 18 मई 1637 को फारस के राजघराने की दिलराज बानो बेगम के साथ औरंगजेब का निकाह हुआ

    1636 से 1644 तक और 1652 से 1657 तक औरंगजेब दक्षिण में सूबेदार के पद पर रहे दक्कन के अलावा औरंगजेब गुजरात 1645 तक मुल्तान में 1640 तक और सिंध का भी गवर्नर रहे

    आगरा पर कब्जा कर जल्दबाजी में औरंगजेब ने अपना राज्य विशेष अबुल मुजफ्फर मोहिद्दीन मुजफ्फर औरंगजेब बहादुर आलमगीर की उपाधि से 31 जुलाई 1658 को दिल्ली में करवाया अजूबा एवं देवराई के युद्ध में सफल होने के बाद 15 मई 1659 को औरंगजेब ने दिल्ली में प्रवेश किया जहां शाहजहां के शानदार महल में जून 1659 को औरंगजेब का दूसरी बार राज्य विशेष हुआ औरंगजेब में सिंहासन पूर्ण होने पर पारस के शाह ने मैत्री स्वरूप दाग देखकर नेतृत्व में एक दूध मंडल भेजा

    औरंगजेब का शासनकाल (Aurangzeb history in hindi)

    अपने साम्राज्य विस्तार के अंतर्गत औरंगजेब ने सबसे पहले असम को अपनी अपने अधिकार में करना चाहा उसने मीर जुमला को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया और उसे असम को जीतने की जिम्मेदारी सौंपी 1 नवंबर 1661 को मीर जुमला ने कुच बिहार की राजधानी को अपने अधिकार में कर लिया असम पर उस समय अहोम जाति के लोग शासन कर रहे थे मीर जुमला ने अहोमो को परास्त कर 1662 में गढ़ गांव पर अधिकार कर लिया

    अप्रैल 1663 में मीर जुमला की मृत्यु के बाद शाइस्ता खां को बंगाल का शोक बिदार बनाया गया उसने 1663 में चटगांव को अपने कब्जे में कर लिया लेकिन 1667 में असम के राजा चक्रधर ने राजधानी गुवाहाटी पर कब्जा कर लिया कालांतर में आश्रम के आंतरिक संघर्ष का फायदा उठाकर मुगलों ने 1670 में कामरूप के अतिरिक्त शेष असम पर दोबारा अधिकार कर लिया

    औरंगजेब की दक्षिण नीति का परिणाम क्या थाAurangzeb history in hindi

    औरंगजेब की दक्षिण नीति के विषय में इतिहासकारों का मानना है कि
    1. अपनी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के कारण दक्षिण के राज्यों को औरंगजेब जितना चाहता था शाहजहां की भारतीय दक्कन के प्रति औरंगजेब की नीति भी राजनीतिक खेत से और असंता धार्मिक विचारों से प्रभावित थी
    2. दक्षिण में मराठा शक्ति का शिवाजी के नेत्र में वहां के शिया संप्रदाय के सुल्तानों के सहयोग से दिन प्रतिदिन उत्थान हो रहा था इस कारण भी औरंगजेब ने दक्षिण के राज्यों को कुचलना चाहा इस मत का समर्थन आधुनिक इतिहासकार करते हैं

    औरंगजेब के दक्षिण में सैनिक अभियान के पीछे उपरोक्त कारण ही विद्वान थे 1682 में अपने पुत्र शहजादा मोहम्मद का पीछा करते हुए औरंगजेब दक्षिण भारत पहुंचा उसके बाद उसके उत्तर भारत आने का मौका नहीं मिला यही दक्षिण में जिंदगी के आखिरी दिन थे

    औरंगजेब ने बीजापुर की विजय कब की थीAurangzeb history in hindi

    1665 1687 सिंहासन पर बैठने के बाद औरंगजेब ने बीजापुर के शासक आदिल शादी पत्तियों को सख्त 1657 की संधि का पालन ना करने के कारण दंड देने के लिए जयपुर के राजा जयसिंह को 1665 में दक्षिण भेजा

    जयसिंह ने बीजापुर को जीतने से पहले शिवाजी के खिलाफ एक महत्वपूर्ण लड़ाई में सफलता प्राप्त की 1665 में पूर्व बंदर की संधि की पुरंदर के बाद जयसिंह शिवाजी के सहयोग से बीजापुर पर नवंबर 1665 में आक्रमण किया

    प्रारंभिक सफलता से उत्साहित होकर जयसिंह ने कई गलत निर्णय लिए जिस कारण से वह बीजापुर प्राधिकार करने में असफल रहा औरंगजेब ने नाराज होकर जय सिंह को 1666 में वापस आने का आदेश दिया रास्ते में बुरहानपुर के नजदीक 11 जुलाई 1666 को जय सिंह की मृत्यु हो गई क्यों की जय सिंह ने दगा की थी

    दिसंबर 1672 में आदिल साहब की मृत्यु के बाद उसका अल्पेश एक पुत्र सिकंदर आदिलशाह बीजापुर का सम्राट बना उसके समय में बीजापुर में दो गुट एक आवास खां के नेतृत्व में एक दूसरा बहलोल खान के नेत्र में सक्रिय था

    दोनों गुटों के आंतरिक मतभेदों का फायदा उठाकर मुगल सूबेदार बहादुर खाने 1676 में बीजापुर पर आक्रमण किया लेकिन अभियान असफल रहा 1779 में दिलेरखान को दक्कन का सूबेदार बनाकर बीजापुर को जीतने का अधिकार सौंपा गया उसके सहयोग हेतु साहेआलम भी दक्षिण आया लेकिन इन दोनों को भी असफलता का सामना करना पड़ा

    अप्रैल 1685 में शहजादा आजम के नेतृत्व में मुगल सेना ने बीजापुर पर आक्रमण किया कई महीनों तक दुर्ग को घेरे रखने पर भी कोई सफलता हाथ ना लगने पर 13 जुलाई 1685 को स्वयं सम्राट औरंगजेब ने आक्रमण की कमान हाथों में ली उसका परिणाम यह था

    22 सितंबर 1686 को बीजापुर के शासक सिकंदर आदिलशाह ने आत्मसमर्पण कर दिया औरंगजेब का स्वागत किया और उसे खान का पद दिया ₹100000 वार्षिक पेंशन विधि और उसे दौलताबाद का दुर्ग में कैद करवा दिया जहां 23 अप्रैल 17 को इसकी मृत्यु हो गई बीजापुर मुगल अधिकार में आ गया

    गोलकोंडा किल्ले का रोचक इतिहास Aurangzeb history in hindi

    1656 में (गोलकुंडा सुल्तान एवं मुगल सम्राट के बीच) हुई संधि की अवहेलना करने मुगलों के साथ संघर्ष में बीजापुर एवं मराठों का सहयोग करने  हीरे जवाहरात सोने चांदी की खानों की भरमार के कारण ही औरंगजेब ने गोलकुंडा पर अधिकार करना चाहा

    गोलकुंडा पर औरंगजेब के सैनिक अभियान के समय वहां का आयोग्य एवं विलासप्रिय शासक अबुल हसन का शासन के कार्यों की पूरी जिम्मेदारी मदन्ना एवं अकड़ना नामक ब्राह्मणों के हाथ में थी औरंगजेब ने जलाई 1685 में मुअजम को खाने जहां के साथ गोलकुंडा आधिकार के लिए भेजा

    सुल्तान अबुल हसन ने डरकर मुगलों की सभी शर्तों को मान कर संधि कर ली लेकिन सुल्तान ने  अवहेलना करना शुरू कर दिया जिस वजह से खुद सम्राट औरंगजेब ने 7 फरवरी 1687 को आक्रमण की बागडोर संभालते हुए लगभग 8 महीने के कोशिश के बाद भी सफलता नहीं मिली तो औरंगजेब ने अब्दुल्लाह गानी नामक एक अफवाह सरकार को लालच देकर किले का फाटक खुलवा लिया

    और 1697 को दुर्ग पर अधिकार किया सुल्तान को ₹50000 की वार्षिक पेंशन देकर दौलताबाद के किले में कैद कर दिया साथ ही गोलकुंडा का पूर्ण विजय मुगल साम्राज्य में हो गया इस प्रकार कहा जाता है कि जिस प्रकार अकबर ने असीरगढ़ का किला सोने की कुंजी उसे खोला उसी प्रकार औरंगजेब ने गोलकुंडा का किला सोने की कुंजी उसे खोला

    मराठा और मुगल संघर्षAurangzeb history in hindi

    1. मुगलों से शिवाजी का पहला संघर्ष 1656 में हुआ जब शिवाजी ने अहमदनगर एवं जुन्नर के किले पर आक्रमण किया
    2. 1659 में शिवाजी ने बीजापुरी सरदार अफजलखान को हराया 1663 में मुगल सुविधा शाइस्ता खान को पराजित किया

    शिवाजी के दक्षिण में बढ़ती हुई शक्ति को कुचलने के लिए औरंगजेब ने जय सिंह को दक्षिण भेजा जय सिंह एवं शिवाजी के बीच 22 जून 1665 को परिषद पुरंदर की संधि संपन्न हुई संधि की शर्तों के अनुसार शिवाजी ने 400000 वर्ड वाले 23 किलो मुगलों को सौंप दिए तथा अपने पुत्र शंभू को मुगल सेवा में भेजकर

    जय सिंह के कहने पर 22 मार्च 1666 को आगरा के किले के दीवाने आम में औरंगजेब के समय सामने हाजिर किया गया यहां से शिवाजी को कैद कर जयपुर भवन में रख दिया गया जहां से सेवा जी फरार हो गया इसके बाद शिवाजी 3 वर्षों तक मुगलों के साथ शांतिपूर्वक रहा औरंगजेब ने उन्हें राजा की उपाधि तथा बरार में एक जागीर दी तथा उनके पुत्र शंभू को

    पंच हजारी सरदार के पद पर नियुक्त किया शिवाजी ने रायगढ़ में 16 जून 1674 को अपना राज्य विशेष करवाकर छत्रपति की उपाधि धारण की 16 अप्रैल 1680 को उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र शंभू मराठा शासक बना औरंगजेब ने एक संघर्ष में 1 मार्च 1679 को उसकी हत्या कर रायगढ़ पर अधिकार कर लिया औरंगजेब को मराठों के संघर्ष में काफी धन जन की हानि सहनी पड़ी

    नेपोलियन प्रथम का कहा करता था कि स्पेन के बूढ़े ने मेरा नाश किया वैसे ही दक्षिण के फोड़े ने औरंगजेब का नाश किया जेब के पतन के साथ-साथ इसने मुगल साम्राज्य के पतन का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया

    औरंगजेब के समय हुए विद्रोहAurangzeb history in hindi

    औरंगजेब की नीतियों के विरुद्ध हुए विद्रोह के पीछे महत्वपूर्ण कारण उसका राजत्व सिद्धांत था उसकी धार्मिक असहिष्णुता थी किसानों के विद्रोह के पीछे भूमि से जुड़े हुए विवाद सिखों के विद्रोह के पीछे धार्मिक कारण राजपूतों के विद्रोह के पीछे उत्तराधिकार की समस्या भगवानों के विद्रोह के पीछे अलग-अलग अफगान राज्य के गठन की भावना कार्य कर रही थी

    जाट विद्रोह

    धार्मिक असहिष्णुता एवं किसान विरोधी नीतियों के कारण ही औरंगजेब के समय का पहला विद्रोह मथुरा में जाट नेता गोकुला के नेतृत्व में 1669 में शुरू हुआ मुगल सेनापति अब्दुल नवी विद्रोह को कुचलने के प्रयास में मारा गया मुगल फौजदार हसन अली खान के नेतृत्व में मुगल सेना ने गोकुला को पकड़कर उसके शरीर के कई भागों में बांट डाला

    1686 में जाट नेता राजाराम एवं रामचेरा ने जाट विद्रोह का नेतृत्व किया राजाराम ने मुगल सेना नायक मुंगेर खान की हत्या कर सिकंदरा में स्थित मकबरा अकबर के मकबरे में भी लूटपाट की
    इतिहासकारों का मानना है कि उसने अकबर की हड्डियों को खोज कर जला भी दिया औरंगजेब के पुत्र

    बीदर बख्श  आमेर नरेश बिशन सिंह को एक विशाल मुगल सेना के साथ भेजा गया इन दोंनो को जाटो के खिलाफ 1789 में सफलता मिली और राजाराम संघर्ष में मारा गया राजाराम के खराब उसके बदले में चुरा मन ने भारतपुर राज्य के लिए औरंगजेब के अंतिम समय तक जाट विद्रोह का नेत्रत्व करता रहा

    औरंगजेब की नीति के खिलाफ दूसरे शास्त्र विरोध का नेत्रत्व बुंदेला राजा छत्रशाला ने किया शिवाजी के द्रष्टान्‍त होकर  स्‍वतंत्र में  प्रप्त की तथा पूर्वी मालवा में अपने लिए एक स्वतंत्र राज्य स्थिति करने में सफल हुआ

    सिखों का विद्रोह

    16 शताब्दी में सिख संप्रदाय की स्थापना गुरु नानक जी ने किया सिक्खों के चौथे गुरू रामदास के समय गुरुत्व का पद पैतृक हो गया

    अमृतसर के प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर का निर्माण उन्हीं के समय हुआ जिसके लिए सम्राट अकबर ने भूमि उपलब्ध कराई थी पांचवी गुरु अर्जुन देव के समय में प्रसिद्ध ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया गया गुरु अर्जुन ने सिख संप्रदाय को दृढ़ता प्रदान करने का प्रयास किया
    विद्रोही शहजादी खुसरू को गुरु ने अपना आशीर्वाद दिया जिसकी वजह से 1606 में जहांगीर ने गुरु को फांसी दे दी गुरु अर्जुन ने पुत्र हरगोविंद ने शाहजहां के विरुद्ध विद्रोह कर उसकी सेना को 1628 में परास्त किया आठवीं गुरु हरकिशन के पुत्र तेग बहादुर ने औरंगजेब की नीतियों का विरोध किया तथा इस्लाम स्वीकार करने का विरोध किया जिसकी वजह से उन्हें दिल्ली में कैद कर दिसंबर 1765 में मार दिया गया

    तेज बहादुर ने अपने धर्म को जीवन से अधिक पसंद किया उनके बारे में प्रसिद्ध व्यक्ति है कि उन्होंने अपना सिर दिया शहर नादिया सिख गुरुओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुरु गोविंद सिंह दे गुरु गोविंद सिंह एवं कुछ पहाड़ी राजाओं के दमन के लिए औरंगजेब ने पहले अलग था और फिर शहजादे मौसम को 1685 में भेजा मौसम पहाड़ी राजाओं को दबाने में सफल हुआ परंतु गुरु गोविंद सिंह के साथ अपने संघर्ष में असफल होकर उसने शांति समझौता किया

    गुरु गोविंद के साथ अपने संघर्ष में असफल होकर उसने शांति समझौता किया गुरु गोविंद ने पाहुन पाहुल प्रणाली को प्रारंभ किया इस प्राणली में दीक्षित होने वाला व्यक्ति खालसा कहां गया खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में कि उनके धर्म में दीक्षित होने वाले व्यक्ति को पंच का कार केस कंगा कृपाण कच्छ और कड़ा ग्रहण करना पड़ता था उनके द्वारा ही नाम के अंत में सिंह शब्द का प्रयोग प्रारंभ हुआ गुरु गोविंद ने 10 में बादशाह का ग्रंथ नामक एक पूरक ग्रंथ का संकलन किया एक धर्म धर्म हनुमत अफगान ने 1708 के अंत में गोदावरी के निकट ना देर नामक स्थान पर गुरु गोविंद सिंह को छुरा  मार दिया जिससे उनकी मृत्यु हो गई

    1701 में औरंगजेब ने कुछ पहाड़ी राजाओं के सहयोग से गुरु गोविंद सिंह के दुर्ग आनंदपुर पर आक्रमण कर दिया आक्रमण के समय मुगल सेना का नेतृत्व सरहिंद का सूबेदार वजीर खाने किया कई महीनों के घेराव के बाद सिख गुरु गोविंद को आनंदपुर से भागकर चमकोर में शरण लेनी पड़ी मुगल सेना के चमकौर पहुंचने पर गुरु अपना रूप बदलकर 1704 में भागकर इधर आना फिरोजपुर पहुंचे इस अंतिम युद्ध में गुरु गोविंद सिंह ने मुगल सेना को परास्त कर दिया 3 मार्च 1707 को औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल शक्ति क्षीण होती गई सिख सरदारों ने इस अवसर का फायदा उठाकर छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्य स्थापित कर दिया

    सतनामी विद्रोह 1672

    1672 में सतनामी यों का विद्रोह हुआ यह मूल रूप में हिंदू भक्तों के एक अनुभवी संप्रदाय थे इनका केंद्र नारनौल पटियाला एवं मेवात अलवर क्षेत्र में था यह लोग व्यापार एवं खेती करते थे धर्म के मामले में उन्होंने सतनाम की उपाधि से अपने को सम्मानित किया सतनामी यों के विद्रोह का तत्कालीन कारण था एक मुगल पैदल सैनिक द्वारा उनके एक सदस्य की हत्या अप्रशिक्षित सतनामी किसान सिर्फ एक विशाल शाही फौज द्वारा

    राजपूत विद्रोह एवं राजपूतों के प्रति औरंगजेब की नीति
    औरंगजेब ने राजपूतों के प्रति धर्म के क्षेत्र में अनु उदारता की नीति अपनाई कुरान का कट्टर समर्थक होने के नाते वह अन्य धर्मों मुख्यता हिंदू धर्म के प्रति बहुत सही शुरू था उसने 12 अप्रैल 1779 को हिंदुओं पर दोबारा जजिया कर लगा दिया सर्वप्रथम जजिया कर मारवाड़ पर लागू किया धार्मिक क्रियाकलापों त्योहारों एवं उत्सवों को प्रतिबंधित करते हुए औरंगजेब ने हिंदुओं से तीर्थ यात्रा कर व सुनना शुरू कर दिया बड़ी संख्या में हिंदू मंदिरों को तोड़ने करवाने का आदेश देकर नवीन मंदिरों एवं पुराने मंदिरों का निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया औरंगजेब की नीतियों का राजपूतों के ऊपर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था

    आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब मुगल वंश के अन्य शासकों की तरह राजपूतों के प्रति मैत्री भाव रखता था औरंगजेब ने जसवंत सिंह को धारा का सहयोग करने के बाद भी पुराना मनसब प्रदान कर गुजरात का सूबेदार बनाया औरंगजेब के समय में हिंदू मनसबदार ओं की संख्या लगभग 33% थी जबकि शाहजहां के समय यह प्रतिशत मात्र 24.7% थी



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