पुत्रदा एकादशी 2022 का क्या महत्व है? । putrada ekadashi 2022 date and time significance importance and katha
putrada ekadashi 2022 के महत्व के विषय में जानने से पहले हम यह जानते हैं, कि आखिरकार पुत्रदा एकादशी होती क्या है?
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“पुत्रदा” शब्द का अर्थ है ‘पुत्र प्रदान करने वाला’. putrada ekadashi हिन्दू सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन व व्रत है. भारत के कई प्रांतों यानी प्रदेश में इसे पवित्रोपना एकादशी और पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. खास बात तो यह है कि यह दो प्रकार की होती है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार इनमें से एक श्रावण मास (जुलाई/अगस्त) में आती है और पौष (दिसंबर/ जनवरी) में आती है. जहां पौष पुत्रदा एकादशी भारत के उत्तरी राज्यों में प्रचलित है, वहीं दूसरी और ओर अन्य राज्यों में श्रावण putrada ekadashi अधिक प्रचलित है.
इसे श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन मनाया जाता है. 11वें दिन के कारण इसे एकादशी कहते हैं. आइए, अब “श्रावण” पुत्रदा एकादशी के महत्व को अच्छे से समझ लेते हैं.
हिंदू धर्म में पुत्र की प्राप्ति को महत्वपूर्ण माना गया है. कारण ऐसी पौराणिक मान्यता है कि पुत्र द्वारा किए जाने वाले श्राद्ध से ही पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष मिलता है. इसी के चलते पुत्र पाने की इच्छा इतनी प्रबल होती है, कि लोग सिर्फ एक ही नहीं अपितु दोनों putrada ekadashi 2022 के व्रत का पालन करते हैं.
पुत्रदा एकादशी 2022
- गुरुवार, 13 जनवरी 2022
- शुरू – 03:20 AM, 13 जनवरी, समाप्त – 01:05 AM, 14 जनवरी
मूलतः पुत्र प्राप्ति की इच्छा से रखने वाले निस्संतान दंपति इस व्रत का पालन करते हैं. इस दिन पति-पत्नी पूरे दिन व्रत रखते हैं एवं पुत्र की कामना करते हुए भगवान विष्णु का पूजन करते है.
पुत्र प्राप्ति ही इस व्रत का महत्वपूर्ण उद्देश्य है. इस वर्ष 13 जनवरी 2022 को पुत्रदा एकादशी का व्रत किया जाएगा. इस व्रत का वर्णन पद्म पुराण में भी किया गया है. इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति केवल संतान सुख ही नहीं पाता, अपितु अन्य सभी प्रकार के सुखों को पाकर स्वर्गलोक की प्राप्ति करता है. व्रत का पालन करने से धन- धान्य के साथ- साथ ऐश्वर्य की प्राप्ति भी होती है.
पुत्रदा एकादशी के महत्व के साथ-साथ अब इसके विषय में कुछ और भी तथ्य जान लेते हैं. पुत्रदा एकादशी के व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति को दशमी के दिन प्याज़–लहसुन का परहेज करना चाहिए और शुद्ध निरामिष भोजन करना चाहिए.
साथ ही साथ इस दिन किस भी प्रकार का भोग–विलास भी नहीं करना चाहिए. भौर में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का पालन करना चाहिए. इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के बाल रूप की पूजा होती है. द्वादशी के दिन भगवान विष्णु को अर्घ्य देकर पूजा पूर्ण की जाती है. द्वादशी वाले दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद उनसे आशीर्वाद लेकर ही स्वयं भोजन करना चाहिए.
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