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Karva Chauth Vrat 2021 : करवा चौथ 2021 व्रत,मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

करवा चौथ की पूजा, व्रत विधि, कथा और 2021 में तिथि
Karva Chauth Vrat 2021 Puja Vidhi, Mahurat Time and Date in Hind
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सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ का बेहद ही खास महत्व है. सनातन धर्म की महिलाएं पूरे वर्ष भर करवा चौथ व्रत का बेसब्री का इंतजार करती है. व्रत के आने पर पूरा दिन निर्जला व्रत रखकर रात्रि को चांद देखकर व्रत पूरा करती है. करवा चौथ का व्रत सुहागन महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु के लिए रखती हैं. कुंवारी लड़कियां अच्छे पति की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं. यह व्रत हर वर्ष कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन रखा जाता हैं.

2021 में करवा चौथ दिनाँक, पूजा मुहूर्त और चंद्रोदय समय (Karva Chauth Puja Time and Date)

2021 में करवा चौथ 24 अक्टूबर 2021, रविवार के दिन मनाई जाएंगी.

चतुर्थी तिथि (Karva Chauth 2021 Date) रविवार, 24 अक्टूबर 2021
करवा चौथ पूजा मुहूर्त (Karva Chauth Puja Time) रविवार के दिन शाम 5 बजकर 43 मिनट से शाम 6 बजकर 59 मिनट तक शुभ पूजा करने का शुभ मुहूर्त है.
चंद्रोदय रात 8 बजकर 7 मिनट पर पूर्ण चन्द्रमा दिखाई देगा
चतुर्थी तिथि आरंभ चतुर्थी 24 अक्टूबर को प्रातः 3 बजकर 1 मिनट से शुरू होगी.
चतुर्थी तिथि समाप्त जो 25 अक्टूबर, सोमवार के दिन प्रातः 5 बजकर 43 मिनट पर समाप्त होगी.
उपवास का समय आप उपवास रविवार के दिन प्रातः 6 बजकर 27 मिनट से शुरू कर रात 8 बजकर 7 मिनट पर पूर्ण चन्द्रमा दिखाई देने के बाद अपना व्रत खोल सकती है.

करवा चौथ पर चंद्रमा की पूजा करने खास महत्व-

चन्द्रमा को हिंदू धर्म शास्त्रों में उम्र (आयु), सुख-सम्रद्धि और शांति का कारक या रूप माना जाता है. पौराणिक मान्यता है कि चंद्रमा की सच्ची श्रद्धा से पूजा करने पर वैवाहिक जीवन सुखी होता है और पति की आयु लंबी होती है.

करवा चौथ व्रत (Karva Chauth Puja Vidhi) की पूजा विधि

  • इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पूर्व स्नान करती हैं.
  • करवा चौथ के दिन महिलाएँ निर्जला उपवास रखती हैं.
  • संध्या को पूजन के स्थान पर या दीवार पर गेरू से फलक बनाकर चावल को पीसे. इस विधि को करवा धरना के नाम से जाना जाता हैं.
  • जिसके बाद दीवार पर कागज पर भगवान शिव और कार्तिकेय की प्रतिमा बनाई जाती हैं.
  • विधिवत पूजन कर करवा चौथ की कथा का वाचन करना चाहिए.
  • पूजन के बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देने की परम्परा हैं. चंद्रमा को अर्ध्य छलिनी के ओट से दिया जाता हैं और करवे के पानी को पिया जाता हैं. इसके बाद पति से आशीर्वाद लेकर महिलाएँ अपना उपवास खोलती हैं.

करवा चौथ व्रत कहानी या कथा (Karva Chauth Vrat Katha)

करवा चौथ के दिन पूजन के समय पढ़ी जाने वाली करवा चौथ की कथा.

इन्द्र विवाह प्रस्थपुर में एक वेदशर्मा नाम का ब्राम्हण रहता था. ब्राह्मण वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ. जिससे उन्हें आठ संतान हुई जो सात गुणवान पुत्र और एक सुंदर पुत्री थी. उनकी पुत्री का नाम वीरवती था. वीरवती सात भाइयों में सबसे छोटी होने कारण अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाइयों के लिए भी अति प्रिय थी.

कुछ सालो बाद वीरवती का विवाह एक योग्य ब्राह्मण से हुआ. एक दिन शादी के बाद वीरवती अपने भाइयों के घर पर आई. संजोग से उन्ही दिनों में करवा चौथ भी थी, इसलिए कार्तिक माह की चौथ पर वीरवती ने अपनी भाभियों के साथ पति की दीर्घ आयु के लिए करवा चौथ का व्रत का रखा. परन्तु व्रत रखने के कारण वीरवती का स्वास्थ्य बिगड़ गया था.

चुकी वीरवती बिना चंद्रमा को अर्ध्यत दिए अपना व्रत खोलने वाली नहीं थी इसलिए वीरवती के भाइयो ने अपनी बहन की बिगडती हालत को देख एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन चंद्रमा को अर्ध्यत देकर व्रत खोल सके.

योजना अनुसार एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर दिया लेकर चढ़ गया और फिर बाकि भाइयों ने अपनी बहन से कहा कि, चंद्रमा का उदय हो गया हैं.

अपने भाइयों की बातों का विश्वास कर वृक्ष पर छलनी के पीछे से चंद्रमा को अर्ध्यत दिया और अपना उपवास खोल लिया. लेकिन जैसे ही वीरवती ने अपना भोजन शुरू किया तभी उसके ससुराल से एक अशुभ समाचारआया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी हैं.

इस खबर को सुन वीरवती रोने लगी और व्रत के दौरान अपनी किसी चूक के लिए स्वयं को दोषी ठहराने लगी. उसके दुखी मन को देख देवराज इंद्र की पत्नी इन्द्राणी वहां प्रकट हुई.

वीरवती ने देवी इन्द्राणी से अपने पति की मृत्यु का कारण पुछा और अपने पति को पुनर्जीवित करने के लिए प्रार्थना करने लगी. तब देवी इन्द्राणी ने वीरवती से कहा “तुमने चंद्रमा को अर्ध्य दिए बिना ही अपना व्रत तोड़ लिया था, जिसके कारण तुम्हारे पति की मृत्यु हो गई. लेकिन ये भूल तुमसे अनजाने में हुई है इसलिए में तुम्हारे पति को जीवित तो नहीं कर सकती पर उसे जीवित करने का रास्ता बता सकती हूँ”

आगे देवी कहा ” वीरवती तुम्हे अब से हर माह की चतुर्थी पर पूरी श्रद्धा से व्रत करना होगा. तभी तुम्हारा पति पुनः जीवित हो सकता है”

वीरवती ने जैसा दिवि ने कहा वेसा ही किया उसने हर माह की चतुर्थी पर व्रत, पूजा-पाठ किया. अंत में उन सभी व्रतों के पुण्य के रूप में वीरवती का पति पुनः जीवित हो गया.

हे माता, जिस प्रकार वीरवती पर आपने अपनी कृपा दिखाई, हम सभी पर भी अपनी कृपा बनाएँ रखना.

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