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Pitru Paksha ka Mahatava : पौराणिक कथा से जानें कैसे हुई पितृ पक्ष की शुरुआत

हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष (Pitru Paksha ka Mahatav) के दिनों में हमारे पूर्वज जिनका देहान्त हो चुका है वो सभी सूक्ष्म रूप में पृथ्वी पर विचरण करने आते हैं. ये सब अपने जीवित परिजनों के तर्पण को स्वीकार करते हैं. पितृ पक्ष में पितरों के लिए पिंडदान किया जाता है. जिनके पूर्वजों का देहांत हो चुका होता है वे अपने पितरों के लिए श्रद्धा और प्रेम से श्राद्ध कार्य करते हैं.

इन दिनों मुख्य रूप से पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान करने की हिंदू धर्म में परंपरा है. पितृ पक्ष पितरों को ही समर्पित होता है. भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर अश्विन कृष्ण की अमावस्या तक यानि कुल 16 दिनों तक श्राद्ध रहता है. मान्यता है कि इन 16 दिनों के लिए हमारे पितृ सूक्ष्म रूप में हमारे घर में विराजमान होते हैं.

प्रतिकात्मक तस्वीर : सोर्स गूगल

अब जानते हैं कि पितृ पक्ष की शुरुआत कैसे हुई– Pitru Paksha ka Mahatav

महाभारत के युद्ध में जब दानवीर कर्ण की मृत्यु हो गई तो उनकी आत्मा निकलकर स्वर्ग पहुंच गई थी. वहां पर कर्ण को नियमित भोजन के बजाय सोना और गहने खाने के लिए दिया जाता था और कर्ण इस बात से बहुत निराश थे. तब उन्होंने इंद्र देव से इसका कारण पूछा, तो इंद्र देव ने कर्ण को बताया कि आपने अपने संपूर्ण जीवन में दूसरों को सोने के आभूषण दान किए हैं, लेकिन उन्हें कभी पूर्वजों को नहीं दिया.

तब कर्ण ने इंद्र देव को उत्तर दिया कि वह अपने पूर्वजों के बारे में कुछ नहीं जानता है. कर्ण की इस बात को सुनने के बाद भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी, जिससे कर्ण अपने पूर्वजों को भोजन दान कर पाए. यही 15 दिन पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है.

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पितृ पक्ष में कौवों को क्यों कराया जाता है भोजन? Pitru Paksha ka Mahatav

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार पितृ पक्ष का बेहद ही अधिक महत्व होता है. पितृ पक्ष में पित्तरों का श्राद्ध और तर्पण करने की बेहद ही प्राचीन सनातनी परंपरा है. इसके अलावा इस दिन कौवों को भी भोजन कराया जाता है. इस दिन कौवों को भोजन कराना भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. पितृ पक्ष में अपने पित्तरों का श्राद्ध और तर्पण करना बहुत जरूरी माना जाता है. कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता तो उसे पित्तरों का श्राप लगता है.

शास्त्रों की मानें तो श्राद्ध करने के बाद जितना जरूरी ब्राह्मण को भोजन कराना होता है, उतना ही जरूरी कौवों को भोजन कराना भी होता है. मान्यता है कि कौवे इस समय में हमारे पित्तरों का रूप धारण करके पृथ्वीं पर आते हैं. इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है, चलिए उसे जानते हैं.

इन्द्र देव के पुत्र जयन्त ने ही सबसे पहले कौवे का रूप धारण किया था. यह कथा त्रेतायुग के उस समय की है जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया था और जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारा था. तब इससे नाराज भगवान श्रीराम ने तिनके का बाण चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी.

कौवों को भोजन

जब जयंत ने अपने किए की माफी मांगी तो भगवान राम ने उसे यह वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया भोजन पितरों को मिलेगा. उसी समय से श्राद्ध में कौवों को भोजन कराने की परंपरा चली आ रही है. यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान पहले कौवों को ही भोजन कराया जाता है.

इस समय कौवों को न तो मारा जाता है और न हीं उसे सताया जाता है. अगर कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसे पित्तरों का श्राप तो लगता ही है, साथ ही उसे अन्य देवी देवताओं के क्रोध का भी सामना करना पड़ता है.

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