Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

मेरा प्रिय मित्र

मेरा प्रिय मित्र पर निबंध
Mera Priya Mitra Par Nibandh

निबंध भूमिका:

मित्र पर निबंध लिखना सरल कार्य नहीं क्योंकि एक सच्चे मित्र को चंद शब्दों में पूर्ण रूप से समाहित नहीं किया जा सकता। मेरा प्रिय मित्र, एक लड़की होने के नाते मेरी मित्रता ज्यादातर लड़कियों से ही है। इसलिए मेरा प्रिय मित्र पर आधारित इस हिंदी निबंध में मैं अपनी एक सहेली निमरा की चर्चा करुँगी। ठीक मेरी तरह आपके भी प्रिय मित्र होंगे अतः आप निमरा की जगह अपने प्रिय मित्र को इस निबंध का पात्र बना सकते हैं।

मेरा प्रिय मित्र, हां निमरा ही मेरी प्रिय मित्र है क्योंकि वही एक ऐसी लड़की है जिससे मैं अपने दिल की सारी बातें कहती हूँ और वो बड़े ध्यान से मेरी बातों को सुनती है। यदि मेरी बातों में कोई प्रश्न होता है तो वह उसका उचित उत्तर भी देती है और यदि मेरी बातों में चिंता होती है तो वह मेरी चिंता को भी दूर करती है। सच में मेरा प्रिय मित्र ठीक वैसा ही है जैसा मुझे चाहिए।

मित्रता के रिश्ते:

यूँ तो हम जन्म लेते ही कई रिश्तों से जुड़ जाते हैं जैसे माँ-बाप, भाई-बहन, दादा-दादी, नाना-नानी और न जाने कितने रिश्ते हमें जन्म से प्राप्त हो जाते हैं। किन्तु ‘मित्रता’ का रिश्ता जन्म से नहीं जुड़ा होता। यह वो रिश्ता होता है जो हमें बाहरी समाज से मिलता है। बेशक मित्रता कोई खून का रिश्ता नहीं किन्तु इसकी अहमियत जीवन के कई बिंदुओं पर खून के रिश्ते से भी गहरी हो जाती है।

जीवन में कई प्रकार के रिश्ते हमें जन्मोपरांत मिलते हैं, जिन्हें हम निभाते हैं। पर मित्रता खून का रिश्ता ना होने के बावजूद यह बहुत ही मजबूत होता है। हां यह जरूर है कि सभी की दोस्ती मजबूत और गहरी ना हो या हमारे सभी दोस्त मेरा प्रिय मित्र कहलाने के लायक ना हों। लेकिन जिस मित्र से दिल और मन के तार जुड़ जाते हैं वही मेरा प्रिय मित्र बन जाता है। जिसे जीवन में सच्चा और ईमानदार मित्र मिल गया उसको जीवन की कठिनाइयां काफी हद तक कम हो जाती हैं।

मैं और मेरी निमरा बस यही मेरा प्रिय मित्र कहलाने के लायक है। मैं ऐसा क्यों कह रही हूँ आइये जानते हैं –

यह खास बातें मैं और मेरी खास दोस्त निमरा की हैं जो उसे औरों से अलग मेरा प्रिय मित्र के दायरे में लाती हैं। निमरा मेरी सबसे अच्छी सहेली है, हम दोनों की मित्रता स्कूल के समय से है। वह स्कूल में बहुत ही अच्छी छात्रा कहलाती थी। सभी शिक्षक उसे बहुत ही प्रेम करते थे क्योंकि उसमें वे सभी गुण मौजूद थे, जो एक आज्ञाकारी छात्रा में होने चाहिए। वह अपना हर काम समय पर करती थी। बड़ों का सम्मान करती थी और रोजाना स्कूल जाती थी। निमरा का उसके कार्य के प्रति इतना समर्पण देख मुझे भी उसके जैसा बनने को जी चाहा। बस कुछ इसी प्रकार मैं और निमरा एक दूसरे के करीब आये और दोस्ती का सिलसिला जान पहचान से शुरू हुआ।

वैसे तो मेरी बहुत सारी सहेलियां हैं लेकिन जो दिल का रिश्ता मेरा निमरा के साथ बना, वह अन्य किसी के साथ नहीं न बन सका। निमरा दिखने में जितनी सुंदर है, उससे कहीं अधिक वह हृदय से प्यारी है। उसके अंदर वह सभी खूबियां हैं, जो एक अच्छे इंसान में होने चाहिए। यह मेरा सौभाग्य ही है, जो मुझे निमरा जैसी इतनी समझदार और गुणवान सहेली मिली जिसे आज मैं मेरा प्रिय मित्र कहकर बुलाती हूँ।

सच्चे मित्र का अर्थ
Meaning of True Friend in Hindi

सच्चे मित्र की परिभाषा अथवा प्रिय मित्र की परिभाषा तो दे नहीं सकती क्योंकि सच्चे मित्र को परिभाषित कैसे करूँ ये मुझे कभी समझ नहीं आया। सच्चा मित्र एक अनुभव है, एक गहरा अहसास है जिसको परिभाषा में समाहित नहीं किया जा सकता। मेरा प्रिय मित्र शाब्दिक परिभाषा से परे है, निमरा मेरे लिए शब्दों के पार जा चुकी है। मैं शब्दों में केवल उसके चरित्र को गढ़ सकती हूँ उसकी असल व्याख्या संभव नहीं।

सच्चा मित्र वह होता है, जो आपके साथ तब खड़ा हो जब पूरी दुनिया आपके खिलाफ हो। एक सच्चा मित्र केवल आपकी भलाई के बारे में सोचता है। आपको सही रास्ता दिखाता। आपको बुरे कार्य करने से रोकता है, वह आपकी चापलूसी करने की बजाए, सच्चाई से आपकी पहचान करवाता है। जब आप मुसीबत में होते हैं तो वह एक सच्चा मित्र ही होता है, जो आपको उस कठिनाई से निकालने का पूरा प्रयास करता है। एक सच्चा मित्र हर लालच से परे होकर आपकी मदद करता है और मेरे प्रिय निमरा में यह सारे गुण उपस्थित हैं अर्थात उसमें विद्मान हैं।

निमरा ने मेरा साथ तब दिया जब मेरे पिता की मौत के बाद मैं पूरी तरह से टूट गई थी। दुःख के कारण मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पा रही थी। वह मेरी सहेली निमरा ही थी जिसने मुझे अवसाद से निकलने में मेरी सहायता की। उसने मुझे इस बात का अहसास दिलाया कि जीवन-मरण सब ईश्वर के हाथ में है। जो व्यक्ति इस धरती पर जन्म लेता है, उसे एक न एक दिन मृत्यु का सामना भी करना पड़ता है। उसकी इन बातों से मुझे बहुत ही हिम्मत मिली और मैंने खूब मेहनत से पढ़ाई करके इम्तेहान पास किया और कक्षा में प्रथम आयी।

मेरे पास प्रिय मित्र की संछिप्त परिभाषा यही है कि निमरा ने मुझे कभी पथभ्रष्ट नहीं होने दिया और खुद मेरी उमर की होने के बावजूद उसने मेरा मार्गदर्शन किया। हम दोनों ही उम्र के कच्चे पड़ाव पर थे किन्तु निमरा उस कच्चे पड़ाव में भी विचारों की गहरी थी। मैं नहीं जानती कैसे किन्तु शायद उसे गुण ईश्वर से वर्दान में मिला हो।

मेरे प्रिय मित्र के गुण

मुझे मेरी प्यारी सहेली की जो बातें दिल को भाती हैं वो निम्नलिखित हैं –

(1) – सच्चाई और ईमानदारी:

मेरी प्यारी सहेली दिल की सच्ची और ईमानदार है। वह अपना हर कर्तव्य पूरी सच्चाई और ईमानदारी से निभाती है। उसने कभी भी मुझसे कोई सच्चाई नहीं छुपाई। जीवन में जब-जब मुझे उसकी जरूरत पड़ी, उसने मेरा साथ दिया और पूरी ईमानदारी से दोस्त होने का कर्तव्य निभाया।

(2) – मेहनती:

मेरी दोस्त निमरा बहुत ही मेहनती लड़की है। उसको देखकर मुझे बहुत ही प्रेरणा मिलती है। वह जो भी कार्य करती है, पूरी मेहनत और लगन से करती है। चाहे वह घर का काम हो, उसकी शिक्षा हो या फिर उसका करियर हो। वह सभी कार्यों को पूरी शिद्दत और मेहनत से करती है।

(3) – लक्ष्य के प्रति गंभीर:

मेरी प्रिय सहेली अपने लक्ष्य के प्रति बहुत ही गंभीर है। उसका सपना एक सफल एफिलिएट मार्केटर बनने का है। अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह दिन रात मेहनत करती है। सुबह जल्दी उठती है और रात को समय से सोती है। उसका अपने लक्ष्य के प्रति यह रुझान देखकर, मुझे भी अपने जीवन में कुछ करने का मन करता है। मेरी भी यह इच्छा होती है कि मैं भी अपने लक्ष्य के लिए इसी प्रकार मेहनत करूं।

(4) – घमंड ना करना:

निमरा बहुत ही अमीर लड़की है। उसके पास हर ऐशो आराम की चीज उपलब्ध है। उसके पिता सरकारी नौकरी करते हैं। भाई इंजिनियर है और वह स्वयं एक एफिलिएट मार्केटर है। लेकिन उसे इस बात का जरा भी घमंड नहीं है। वह एक बहुत ही अच्छे स्वभाव की लड़की है।

(5) – लोगों की मदद करना:

मेरी सहेली निमरा की यह बात मुझे बहुत ही अच्छी लगती है कि वह सबकी मदद करती है। वह बहुत ही दयालु लड़की है, अगर कोई व्यक्ति उससे मदद मांगता है तो वह बिना किसी लालच के उसकी सहायता करती है।

(6) – हमेशा अपने दिल की सुनना:

वैसे तो निमरा बहुत ही बुद्धिमान लड़की है। वह अपना हर कार्य बुद्धिमानी से करती है। लेकिन दिमाग के साथ ही वह अपने दिल की भी सुनती है। यदि किसी काम को करने में उसका दिल नहीं लगता तो वह उस कार्य को नहीं करती। उसका यह मानना है, कि जिस चीज में उसे दिलचस्पी नहीं, जिस चीज को करने में उसे खुशी नहीं मिलती। वह उस कार्य को ज़बरदस्ती नहीं करेगी।

मेरे प्रिय मित्र का मेरे जीवन में महत्व

जब तक मेरी प्यारी सहेली मेरे जीवन में नहीं थी, तब तक मैं केवल जीवन जी रही थी। लेकिन जब मेरी सहेली ने मेरे जीवन में कदम रखा तब मैंने जीवन को समझा। मुझे तब इस बात का अहसास हुआ कि मेरा जीवन बिना मित्र के कितना अधूरा सा था। मुझे अपनी ज़िन्दगी सुंदर लगने लगी। इसके अलावा मुझे मेरी सहेली से निम्नलिखित बातें सीखने को मिलीं –

  • मेरी सहेली मेरे जीवन में ईश्वर का वरदान बनकर आयी। उसने मुझे जीवन में रिश्तों की अहमियत सिखाई।
  • निमरा से ही मैंने बड़ों का मान-सम्मान करना सीखा। उसने मेरा मार्गदर्शन किया और मुझे बुरी संगत से बचाया।
  • निमरा ने मुझे कभी भी हारने नहीं दिया। जब भी इस जीवन में मुझे लगा कि मैं हार रही हूं, उस समय मेरी सहेली ने मेरा हाथ थामा। मुझे सहारा दिया और मुझे हार को जीत में बदलने का हुनर सिखाया।
  • मेरी सहेली निमरा बहुत ही दयालु है। जब भी वह किसी गरीब को देखती है तो तुरंत उसकी मदद करने के लिए आगे आती है। उसी से मुझे यह सीख मिली कि कैसे गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।
  • मैं बहुत ही सीधी-साधी और डरपोक लड़की थी। लोगों की चतुराई मुझे समझ नहीं आती थी। अक्सर लोग मेरे भोलेपन का फायदा उठा लेते थे। वह निमरा ही थी जिसने मुझे लोगों की पहचान कराई। मुझे हर बुराई को पहचानने का सलीका सिखाया और मेरे अंदर के डर को दूर करने में मेरी मदद की।
  • जब मैंने घर बैठे पैसे कमाने के बारे में सोचा था तो उस समय मेरा साथ देने वाला कोई नहीं था। मुझे लगा घर पर कार्य करके पैसे कमाना बहुत ही कठिन है; शायद मैं यह नहीं कर पाउंगी। उस समय केवल मेरी दोस्त निमरा ही थी, जिसने मेरा साहस बढ़ाया और फिर हम दोनों ने मिलकर इस काम को अंजाम दिया। आज मैं और निमरा दोनों घर बैठे कार्य करके पैसे कमाने में काफी हद तक सफल हुए हैं।

जीवन में मित्र का होना:

इंसान का जीवन इतना लंबा होता है की यह कई प्रकार के पड़ावों में विभाजित होता है। बचपन, किशोरावस्था, जवानी, प्रैढ़ावस्था और अंत में बुढ़ापा। इंसानी जीवन के यह पाँच चरण होते हैं। बचपन में मित्र के रिश्ते का बोध हम नहीं कर पाते, किशोरावस्था में मित्र नहीं साथियों का झुण्ड होता है किन्तु जवानी की दहलीज पर आते आते हमें मित्रता का असल बोध होता है। बस यहीं से कुछ ऐसे मित्र के रिश्ते जन्म ले लेते हैं जो भविष्य में मेरा प्रिय मित्र कहलाने की सूची में शामिल हो जाते हैं। हकीक़त कहूं तो मेरा प्रिय मित्र की कोई सूची नहीं होती यह तो कई मेरे से एक का चुनाव है। जो शक्स दिल को भा जाये, मन में समां जाये, विचारों से मेल कर जाये, हमारी उदासी एवं खुशी को भांप ले और हमारे प्रति चिंता रखे वही मेरा प्रिय मित्र कहलाता है।

जीवन में प्रिय मित्र का होना अनिवार्यतम विषय है। हां, मैं यह जानती हूँ जीवन की धारा एक समय हमें हमारे प्रिय मित्र से दूर कर देती है। लड़कियों के लिए तो यह अत्यंत मुश्किल हो जाता है की वो सदैव अपने प्रिय मित्र से जुड़ी रहे किन्तु वर्तमान तकनीकियों ने दूर बैठे मित्र को भी साथ जोड़ने में मदद की है। मैं जानती हूँ मैं और निमरा कभी जीवन में कहीं दूर अलग-अलग पर स्थित होंगे पर मुझे उम्मीद है वो मेरे लिए उतनी ही फिक्रमंद होगी जितनी की आज रहती है।

लेखिका:
ज़रनैन निसार

The post मेरा प्रिय मित्र first appeared on .

Share the post

मेरा प्रिय मित्र

×

Subscribe to Pakheru.com - Hindi Magazine, Online Blog पखेरू हिंदी ब्लॉग पत्रिका

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×