सन 1990, तारकेश्वर दुबे भारतीय रेलवे में सीनियर सेक्शन इंजीनियर के पद से रिटायर हुए थे।
रेलवे की नौकरी से सेवा निवृत होने के उपरांत उन्होंने घर में बच्चों को ट्युशन पढ़ाने का जिम्मा संभाला। हालांकि तारकेश्वर जी की पत्नी ‘कमला’ ये नहीं चाहती थी कि उनके पति एक लंबी सरकारी नौकरी करने के बाद फिर कोई कार्य करें।
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एक दिन कमला ने, तारकेश्वर जी पर ताना मारते हुए कहा – का जी…36 साल सरकारी नौकरी करके आपका मन नहीं भरा; बुढ़ौती में अब आप ट्युशनी पढ़ाइयेगा। आप से ठीक तो आपके मउसाजी हैं, उ जबसे बैंक से रिटायर हुए हैं तबसे बेचारु अपना मेहरारू के तीर्थ-धाम घुमा रहे हैं।
एक आप हैं..कि आज तक हमको कहीं घुमाने नहीं ले गए…बताइये ?
कमला ने बेहद नाराज़गी से यह सवाल अपने पति से किया !!
वो आगे बोली – अरे, तीर्थ-धाम तो छोड़िये, आप आज तक हमको गंगा नहलाने भी नहीं ले गए।
बड़े भाग्य से हमार बाबूजी शादी किये, ये सोच करके की लईका इंजीनियर है ख़ूब सुःख शांति से रखेगा..ख़ूब घुमायेगा। रेलवे में फ्री का पास होने के बाद भी आप हमको कहीं लेकर नहीं गए।
कमला के तानों का सिलसिला अभी जारी ही था कि तारकेश्वर जी ने टोकते हुए कहा – का..सबेरे सबेरे पूरा घर कपार पर उठा लिया है तुमने।
अब कितना सुःख-शांति चाहिए ! अच्छा खाना मिल ही रहा है, अच्छा पहनना मिल ही रहा है, 2 बेटे भी जवान हो गए हैं।
तारकेश्वर आगे कहते हैं –
अरे भाई, सब तीरथ-धाम तो यही अपना घर है।
मैं ही तुम्हारा भगवान् हूँ
और तुम मेरी देवी हो…कमला।
नहाने का पानी भी तो नल में गंगा जी का ही आता है…का झूट-मूट गंगा नहाने जाओगी।
तारकेश्वर जी का जवाब सुनकर कमला का मूड और अधिक ख़ीज गया, वह बोली – हम तो सब झूट-मूट का ही कहते हैं।
….और इस तरह वो झटकते हुए द्वार से घर के आँगन में चली गयी।
पत्नी कमला की नाराज़गी को दूर करने का प्रयास करते हुए तारकेश्वर कहते हैं – अब हल्ला करने से तो भगवान् के दर्शन होंगे नहीं !!
ठीक है,अगला साल तुमको बद्रीनाथ लेकर चलेंगे।
पत्नी कमला कहां रुकने वाली थी, वह आँगन से आवाज़ लगाते हुए फ़ौरन बोल पड़ी – पिछला 36 साल से हम अगला साल सुनते आ रहे हैं।
लगता है मेरे मरने के बाद ही आप हमको बद्रीनाथ लेकर जाइयेगा !
द्वार पर रखी कुर्सी पर बैठते हुए तारकेश्वर जी बोले – अच्छा जरा 1 कप चाय तो पिला दो।
किन्तु कमला कहां सुनने वाली थी, वो बोली – जाइये अपने से बना के पीजिये चाय।
तारकेश्वर जी, द्वार पर बैठे अख़बार के पन्ने पलट रहे थे; कुछ देर के लिए घर में शांति छा गयी।
बेचारी कमला एक आदर्श पत्नी जो ठहरी, कुछ देर के बाद स्वयं अपने हाथ से चाय का प्याला लाकर तारकेश्वर को देते हुए कहती है – सच अगला साल चलियेगा न बद्रीनाथ ? तारकेश्वर चाय का एक घूँट पीते हुए जवाब देते हैं – हां ‘कमला’ जरूर चलूँगा।
तारकेश्वर जी की उम्र आज 87 वर्ष की हो चुकी है।
देह की चमड़ी झूल चुकी है, हाँथ कंपकपाने लग गए हैं, नज़रों से अब उनको साफ़ दिखाई नहीं देता और बिना लाठी के सहारे चल नहीं पाते।
पूजा घर में पत्नी ‘कमला’ की तस्वीर को पोंछकर और उसपर ताजे फूलों की माला पहनाते हुए तारकेश्वर कहते हैं – जब मैंने कहा था कि अगले साल तुमको बद्रीनाथ लेकर चलूँगा तो तुम दुनियां छोड़कर क्यों चली गयी, 30 साल बीत गया तुम्हारे बिना मैं भी बद्रीनाथ नहीं गया…कमला।
लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा
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