कोविड की तीसरी लहर को जिस तरह से ‘हौवा’ बनाकर लोग अफवाहों को वायरल कर रहे हैं वैसा है नहीं। तीसरी लहर वास्तव में बीते 100 साल में आई ऐसी ही अनेक महामारियों जैसा इतिहास समेटे आ रही है जिसमें विशेषज्ञों का अनुभव रहा है कि कोविड से पहले किसी भी महामारी की पहली लहर घातक आई, दूसरी ने देश और विदेश में तबाही मचाई और तीसरी बेहद मामूली रही। हां इतना जरूर है कि महामारियों की तीसरी लहर में भी जनहानि हुई लेकिन पहली व दूसरी लहर के जितनी नहीं।
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महामारियों का इतिहास बताता है कि सबसे ज्यादा जनहानि 1817 में पहली बार और इसके बाद कुल सात लहरों में आई कालरा (हैजा) से हुई। इसमें देश में अनुमानित डेढ़ करोड़ लोगों की जान चली गई थी। इसकी पहली लहर घातक, दूसरी उससे ज्यादा भयानक और तीसरी लहर मामूली असर वाली रही। कालरा की लहर 1817 के बाद 1826, 1852, 1860, 1861, 1867 और 1881 में आई थी। कुछ ऐसा ही 1918 में आई महामारी स्पेनिश फ्लू (इंफ्लुएंजा) से भी हुआ। 1918-19 में इसकी शुरुआत हुई थी। इसने दुनिया भर में तबाही मचाई, करीब 50 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे। इनमें केवल भारत में अनुमानित एक करोड़ 20 लाख लोगों की मौतें हुईं। इसकी भी दूसरी लहर पहले से ज्यादा घातक और तीसरी कम असरदार रही। विशेषज्ञ कहते हैं कि स्पेनिश फ्लू भी फेफड़े पर अटैक कर रहा था लेकिन इसकी तीसरी लहर में संक्रमितों को आक्सीजन की दिक्कत ज्यादा नहीं हुई। लगभग यही स्थिति इसके बाद आई महामारियों जैसे 1974 में प्लेग, 2003 में सार्स, 2006 में पहली बार आए डेंगू में भी हुई।
स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय के वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डा. पंकज गुप्ता कहते हैं कि ओमिक्रोन या डेल्टा के संक्रमण फैलने की क्षमता दूसरी लहर की अपेक्षा करीब पांच गुना ज्यादा है। देश भर में अब तक रही स्थिति के अनुसार यह भी तथ्य है कि संक्रमितों को यह मामूली बुखार के रूप में ही हो रहा है। अस्पतालों में भर्ती होने का आंकड़ा केवल एक प्रतिशत ही है। संक्रमित कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो रहे हैं और इसके बाद क्वारंटाइन रेट 10 दिनों का है। जबकि पहली और दूसरी लहर के दौरान क्वारंटाइन अवधि 14 दिनों की होती थी। इस आधार पर यह कह सकते हैं कि तीसरी लहर पहले की महामारियों जैसी मामूली ही रहेगी।