पुष्कर (Pushkar) का अर्थ है हिरण्यगर्भ कमल अर्थात् स्वर्ण अंडे से युक्त कमल। इसीलिए पुष्कर को आदि प्रारम्भिक तीर्थ भी कहा गया है। सम्पूर्ण जगत में ब्रह्मा जी का केवल ये एकमात्र मंदिर है। श्री ब्रह्म पुष्कर तीर्थ सब तीर्थों का गुरु माना जाता है।
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Pushkar Teerth राजस्थान के मध्य में अजमेर से अट्ठारह किलोमीटर दूर स्थित है। पुष्कर तीर्थ तीन ओर से अरावली श्रंखला की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। ये स्थान समुद्र तल से 1580 फुट ऊंचाई पर स्थित है। यहां प्राकृतिक सोंदर्य अलौकिक है। चुम्बकीय आकर्षण लिए हुए सात्विक परमाणुओं का ऐसा भंडार है जिसमें विदेशी पर्यटक और श्रद्धालुगण खिंचे चले आते हैं।
देश की राजधानी दिल्ली से जयपुर, अजमेर से सीधी बस सेवा है। श्रद्धालु गण निजी वाहनों से भी यहां पहुंचते हैं। ब्रह्मा जी के मंदिर के दर्शनों की अभिलाषा मनमोहन मुस्कान बिखेरती हुई श्रद्धालु भक्त जनों को आकर्षित करती रहती है।
ऊंटों को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। श्रद्धालु गण ऊँटों से ऊँट बोगी से भी यहां पर आते हैं जो राजस्थान की परंपरागत शैली का प्रतीक है। Pushkar तीर्थ का सबसे महत्वपूर्ण आशीष दाता ये सरोवर है जिसे ब्रह्म सरोवर कहते हैं। जैसे समुद्र के समान कोई जलाशय नहीं वैसे ही पुष्कर के समान कोई तीर्थ नहीं है।
भगवान् श्री विष्णु के साथ इंद्रादी सम्पूर्ण देवता गणेश, कार्तिकेय, चण्द्रमा, सूर्य, देवी, सभी देवगण जगत का हित करने के लिए सदा ब्रह्मा जी के साथ यहां निवास करते हैं। यहां के दर्शन, पूजन, स्नान से सतयुग मे बारह वर्षों तक, त्रेतायुग मे एक वर्ष तक तथा द्वापर में एक मास तक भक्त जिस फल को पाते थे कलयुग मे वो फल एक ही दिन में प्राप्त हो जाता है।
ये बात ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र पुलत्तस्य जी से कही थी। इस तीर्थ का परिमाण लंबाई ढाई योजन दस कोस चौड़ाई आधा योजन अर्थात दो कोस है। यहां की अरावली पर्वत की श्रंखला वन, सरोवर, मन्दिर सदा पूजनीय है। इस तीर्थ में जगत के रचनाकर्ता स्वयं ब्रह्मा जी सदा निवास करते हैं।
Pushkar वन का सेवन करते हुए जो प्राणी शरीर पूरा करते हैं वे परम गति पाकर ब्रह्म लोक को प्राप्त होते हैं।
Pushkar Sarovar मे यात्रियों के स्नान के लिए 52 घाट बने हैं जिसमें ब्रह्म घाट, गौ घाट एवं वाराह घाट है। जहां प्रातः एवं सांयकाल पुष्कर राज की आरती, शृंगार, स्तुति, भजन आदि होते हैं। गौ घाट पर भादो शुक्ल पक्ष की एकादशी को सभी मन्दिरों से भगवान् की मूर्तियों को स्नान अभिषेक कराने के लिए लाया जाता है। प्रत्येक एकादशी को गौ घाट पर भजन कीर्तन होता है।
इसी घाट पर सिक्खों के गुरु गोविंद सिंह जी ने सन 1762 ईसवीं मे गुरु ग्रंथ साहब का पाठ किया।
ब्रह्म घाट ब्रह्मा जी का मुख्य घाट है। यहां पर आदि शंकराचार्य एवं महामण्डलेश्वरो ने स्नान पूजा की, मन्दिर बनवाए। यहां स्नान आचमन करने से मानव का अंतःकरण शुद्ध होकर ब्रह्म तत्व के ज्ञान की ओर अग्रसर होता है।
वाराह घाट पर चैत्र मास में भगवान् वेंकटेश एवं वेणुगोपाल जी की पूजा अभिषेक विशेष पर्वों पर किया जाता है। यहां पर स्नान करने से अंतःकरण पवित्र होता है, भक्तिभाव जागृत होता है, मन को अपार शांति अनुभव होती है।
पद्म पुराण के अनुसार एक बार जगत रचयिता ब्रह्मा जी के मन में विचार उत्पन्न हुआ कि इस मृत्यु लोक में पृथ्वी पर सभी देवी देवताओं के तीर्थ स्थान तो हैं पर हमारा कोई नहीं है। तभी आकाशवाणी से स्वस्ति हो, स्वस्ति हो, स्वस्ति हो का उत्तम उच्चारण हुआ।
और ब्रह्मा जी के हाथ से कमल जाकर इसी जगह गिरा। फिर उछल कर दूसरी जगह गिरा। फिर उछलकर तीसरी जगह गिरा। इस प्रकार तीनों जगह स्वच्छ जल का प्रादुर्भाव हुआ। जो संसार में Pushkar नाम से विख्यात हुआ। ऐसा पावन, पवित्र, पूजित जल विश्व में कहीं और नहीं मिलेगा जिसमें स्नान से यज्ञ के समान आशीर्वाद प्राप्त होता है। जो स्वर्ग, मोक्ष, धर्म देने वाला है। जो आवागमन की यात्रा को रोककर पुनर्जन्म से छुटकारा दिलाता है।
इन घाटों पर स्नान करने के पश्चात श्रद्धालु गण परिक्रमा करते हैं। हृदय में अपार श्रद्धा लिए भक्त गण मुस्कान सहित परिक्रमा का आनंद अनुभव करते हैं।स्वयं को यहां के दर्शन पाकर धन्य समझते हैं। बच्चे, रंग बिरंगी पोशाक से सुसज्जित नारियां, राजस्थानी शैली की पगड़ी बाँधे हुए भक्त गणों का एक समूह एक अलौकिक आनंद का अनुभव कराता है। धन्य है ब्रह्मा जी का पावन स्थान जहां विश्व नतमस्तक होता है।
घाट के पास विष्णु जी का एक प्राचीन मन्दिर है। भगवान् विष्णु का वाराह अर्थात शूकर का अवतार ब्रह्मा जी की नासिका से हुआ है। यहां भगवान् वाराह का स्वयं विग्रह रूप है। दसवीं शताब्दी में रुद्रांदित्य ब्राह्मण ने इस मंदिर का निर्माण करवाया।
यमन आक्रमण मे मन्दिर कई बार ध्वस्त हुआ। वर्तमान किलेनुमा मन्दिर का जीर्णोद्धार राणा प्रताप के भाई ने करवाया। सरोवर के बीच मे यज्ञ वेदी है। साधुगणों के दर्शन से स्वर्ग समान दृश्यों का दर्शन होता है।
ब्रह्मा जी की पत्नी माता सावित्री हैं। आदि समय में ब्रह्मा जी ने यहां पर एक यज्ञ का अनुष्ठान किया। उनके साथ लोक पालक भगवान् विष्णु जी भी बैठे हुए थे। यज्ञ की सभी आवश्यक तैयारियां पूर्ण हो चुकी थी। सभी ऋषि गण देवी देवता अपने अपने आसनों पर विराजमान थे।
शुभ मुहूर्त व्यर्थ न हो जाए इसलिए ब्रह्मा जी अपने पुत्र नारद जी से कहा, “अपनी माता सावित्री को यज्ञ स्थान पर बुलाकर लाओ”। तब नारदजी माता सावित्री के पास आए और कहा, “पिताजी ने आपको यज्ञ में बुलाया है। कृपया आप सजधज कर सहेलियों के साथ यज्ञ स्थल पर आए जिससे आपकी शोभा बढ़े।”
इसी कारण सावित्री का आगमन समय पर न हो सका। पुलत्स्य ऋषि ने कहा,” शुभ मुहूर्त व्यतीत हो रहा है।” ब्रह्मा जी को क्रोध आया और उन्होंने इंद्र से कहा, “तुरंत सुन्दर कन्या की व्यवस्था करो।” इंद्र ने Pushkar वन में एक कन्या को देखा जिसके सिर पर छाछ व दही के घड़े रखे थे उसे पकड़कर विमान से ब्रह्मा जी के पास ले आए।
देवताओ के कहने पर कन्या को गाय के मुख मे डालकर पूंछ की तरफ की तरफ से निकला। इस उज्जवल गोप कन्या को ब्रह्मा जी ने पत्नी के रूप में स्वीकार कर यज्ञ वेदी पर अपने साथ बिठाया।
यही देवी गायत्री के नाम से विख्यात हुई। चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात् जब भगवान् राम अयोध्या लौटे तो स्वर्गीय पिता दशरथ की ओर से वे विचलित थे। राम अत्रि मुनि के आश्रम गए और उनसे पूछा पृथ्वी पर ऐसा कौन-सा तीर्थ है जहां मानव को अपने बंधुओं के वियोग का दुःख उठाना नहीं पड़ता।
अत्रि मुनि ने उत्तर दिया मेरे पिताजी ब्रह्मा जी द्वारा निर्मित Pushkar तीर्थ है। आप वहीं जाकर अपने पिता को पिण्ड दान से तृप्त कीजिए। राम लक्ष्मण और जानकी सहित पुष्कर आए।
तभी वहां मुनि श्रेष्ठ मार्कंडेय जी भी शिष्यों के साथ वहां आए और भगवान् राम से पिता का पिण्ड दान करवाया। भगवान् राम यहां एक मास तक रहे और पिता का श्राद्ध भी किया। तब से पुष्कर तीर्थ का महत्व और भी बढ़ गया।
पुष्कर मे पिंड दान करने वाले प्राणी को अश्वमेघ यज्ञ का लाभ मिलता है। यहां पर एक बाजार है जिसमें श्रद्धालु गण आवश्यक खरीदारी करते हैं। यहां पर स्वदेशी पर्यटकों के साथ विदेशी पर्यटक भी काफी संख्या में दिखाई देते हैं।
विदेशों में भी इस मंदिर की महत्ता है। इसके दर्शन पूजन से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
ये ब्रह्मा जी का प्रसिद्ध मन्दिर है। निज मंडप में चांदी के सिक्के चढ़े हुए हैं। यहां पर पद्मासन मे विराजमान ब्रह्मा जी की चतुर्मुखी प्रतिमा है जो उनकी चारों मुद्राएं दर्शाती है। पास मे वेदमाता गायत्री विराजमान है।
ब्रह्मा जी का वाहन राजहंस है। सुरपति इन्द्र और धनपति कुबेर ब्रह्मा जी के द्वारपाल है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा होने का उल्लेख मिलता है। यहां पर आकर भक्तगण मन्नतें मांगते हैं। पुजारी भक्तों को चरणामृत का प्रसाद देकर कृतार्थ करते हैं।
एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी मे बहस हो गई। दोनों बोले हम एक दूसरे से बड़े हैं। तब भगवान् शिव ने एक प्रकाश पुंज शिवलिंग की स्थापना की और कहा जाओ दोनों इसके मूल का पता लगाओ।
विष्णु जी अनुमान लगाने मे असफल रहे। ब्रह्मा जी ने विचार किया यदि मैं कुछ साक्षीयो को लेकर शिव के पास जाऊँ तो निश्चय ही जीत हमारी होगी। ऐसा होने पर शिव ने कहा ब्रह्मा जी तुमने असत्य का सहारा लिया है इसलिए पुष्कर के अतिरिक्त आपकी कहीं और पूजा नहीं होगी।
तभी तो इस तीर्थ स्थल पर भक्तजनों का सदा तांता लगा रहता है। परिक्रमा करते करते मन पावन और अति प्रसन्न होता है। मन में भक्ति भाव जागृत होकर भगवान् ब्रह्मा जी के प्रति अपार श्रद्धा का प्रादुर्भाव होता है। मानव मुक्ति पथ की यात्रा पर कर्म करता है।
रामानुज संप्रदाय के दक्षिण शैली का यहां एक भव्य मन्दिर है जिसे मंगनी राम बांगर ने बनवाया था। विग्रह स्वरूप में यहां पर विष्णु जी, लक्ष्मी जी तथा गोदम्बा जी की पावन मूर्तियाँ है। मंदिर इतना भव्य अलौकिक है कि इसकी सुन्दरता सबका हृदय आकर्षित करती है। इसके दर्शन से भक्तिभाव जागृत होते हैं।
अटपटेश्वर महादेव मंदिर :-
यहां एक और मुख्य मन्दिर है जिसका नाम अटपटेश्वर महादेव मंदिर है। जब ब्रह्मा जी गायत्री यज्ञ चल रहा था तब महादेव शंकर जी एक अनोखा रूप धारण करके यज्ञ में आए। गले में नर मुंड माला, हाथ में कपाल, नग्न शरीर जानकर बाहर जाने को बाध्य किया। वो अघोरी बाबा कपाल पटक कर वहां से चले गये।
उस कपाल को यज्ञ के लिए अपवित्र मानकर बाहर फिकवा दिया। इससे वहां पर दो, चार, आठ, सोलह, बत्तीस, चौसठ सैकड़ों कपालों से वो स्थान भर गया। ब्रह्मा जी शिव की ये लीला समझ गए। क्षमा मांगी। भगवान् शिव ने कहा मेरे भिक्षा पात्र को अपवित्र कहकर उसका अपमान किया है।
ब्रह्मा जी ने कहा हमे क्षमा प्रदान करे। जब कभी भी यहां पर यज्ञ होगा आपका सदा विशेष स्थान और सम्मान होगा। इसी अटपटे कार्य के लिए भगवान् शिव को अटपटेश्वर महादेव की संज्ञा प्रदान की गई। इसके दर्शनों से भक्तगण परम पद को प्राप्त करते हैं।
महाकाली का मन्दिर:-
यहां के अन्य मंदिरों में प्रसिद्ध मन्दिर महाकाली का मन्दिर है। राक्षसों का नाश करने के लिए जगत जननी महामाया महाकाली का अवतार धारण करती हैं। महाकाली की लाल जीभ रक्त बीज राक्षस का रक्तपान की प्रतीक है।
पुराना रंगनाथ मन्दिर :-
इसे वेणुगोपाल मंदिर कहते हैं। इस मन्दिर में भगवान् श्री कृष्ण, देवी लक्ष्मी, गोदम्बा जी की पवित्र प्रतिमाएं हैं। इस मंदिर का निर्माण सेठ पूर्णमल ने 1844 मे करवाया था। ये सब भगवान् श्री कृष्ण की प्रेरणा से सम्भव हो पाया था।
सावित्री माता का मन्दिर :-
अरावली श्रंखला के शिखर पर सावित्री माता का मन्दिर है। जब सज संवर कर माता सावित्री यज्ञ वेदी पर आयी तो पतिदेव ब्रह्मा जी के संग गायत्री को देख वो क्रोधित हो गई। ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि आपने मेरा अपमान किया है इसलिए पुष्कर के अलावा आपकी दूसरी किसी भी जगह पूजा नहीं होगी।
सावित्री माता ने इन्द्र को भी श्राप दिया कि तुम सदा कामी बने रहोगे। युद्ध मे तुम्हारी कभी जीत नहीं होगी। सदा डरकर रहोगे। भगवान् विष्णु को भी श्राप दिया कि आप भी नर तन धारण करोगे और आपकी पत्नी का रावण हरण करेगा।
भगवान् शिव को भी श्राप दिया आप सदा मृतक भस्म रमाओगे। भूत प्रेत सदा आपके साथ रहेंगे। ब्राह्मणों को भी श्राप दिया तुम सदा भिक्षा माँगकर ही जीवन यापन करोगे। गाय को भी श्राप दिया तुमने गायत्री को मुख से पवित्र किया इसलिए तुम्हारा मुख सदा अपवित्र रहेगा।
पवन को भी श्राप दिया कि तुमने सबको आमंत्रित किया इसलिए तुमसे भी दुर्गन्ध आएगी। ऐसा श्राप देकर वो पर्वत के ऊंचे शिखर पर जा बैठीं।
ब्रह्मा जी ने विनती की आपको क्रोध शोभा नहीं देता। गायत्री सदा आपकी दासी रहेगी। श्राप की मुक्ति के लिए गायत्री माता ने कहा ब्राह्मणों हमारी पूजा और गायत्री मंत्र से सदा यश और लक्ष्मी की प्राप्ति होगी।
भगवान् विष्णु से कहा आप त्रेतायुग मे राक्षस रावण का वध कर जब सीता जी को लाओगे तब आप को श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।
भगवान् शिव से कहा आपके लिंग पर भस्म चढ़ेगी और सब आपकी पूजा करेंगे। इंद्र से कहा जब कोई आपका राज छीन लेगा तो भगवान् शिव और भगवान् विष्णु सदा आपकी सहायता करेंगे।
गाय से कहा तुम्हारा मूत्र और गोबर भी लाभकारी होंगे। तुम सदा पूजनीय रहोगी। ब्रह्मा जी से कहा जो pushkar teerth मे स्नान करके आपके दर्शन करेगा उसे चारो धामों की यात्रा से भी बड़ा फल प्राप्त होगा। इसके पश्चात यज्ञ संपन्न हुआ।
गुरु गोरखनाथ मन्दिर :-
गुरु गोरखनाथ भगवान् शिव के साक्षात् अवतार हैं। इनकी उत्पत्ति भी गाय के पवित्र गोबर से उत्पन्न मानी गयी है। इनकी यज्ञ वेदी जिसे धूनी भी कहा जाता है सदा राख मिलती है।
पुष्कर मेला:-
कार्तिक मास की एकादशी से पूर्णिमा तक Pushkar मे मेला लगता है। जिसे देखने दूर दूर से देशवासी और अपार संख्या मे विदेशी पर्यटक भी यहाँ पर बहुत अधिक मात्रा में आते हैं।
गायत्री माता और जगत पिता ब्रह्मा जी का यज्ञ इन्हीं तिथियों में पूरा हुआ था। इसी कारण से इन्हीं दिनों में ये मेला भरता है। सूर्य, चंद्रमा और अन्य नक्षत्रों की स्थिति गगन मंडल मे बहुत अच्छी होती है।
Pushkar तीर्थ इन्हीं दिनों ही विशेष आशीर्वाद देने पृथ्वी पर आता है। विदेशी भक्तों को यहां के प्राचीन परंपरागत नृत्य संगीत कार्यक्रम आकर्षित करते हैं।बहुत ही मनमोहक और आश्चर्य चकित कर देने वाले कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं।
जैसे सर के उपर अनेक घड़ों को रखकर नृत्यांगना ऐसा नृत्य दर्शाती है कि सभी का मन केंद्रित हो जाता है। राजस्थानी वेशभूषा में रंग बिरंगी पगड़ी बाँधे एक अधेड़ आयु का व्यक्ति जिसकी मूछें एक मीटर से भी ज्यादा है और उन्हें दर्शाकर नृत्य करता रहता है।
लंबी मूछों का आश्चर्य भी कम आश्चर्यचकित नहीं करता। ये सब नृत्य देखकर लोग प्रसन्नचित्त होते हैं।
दुल्हन की तरह सजाया जाता है ऊंटों को :-
राजस्थान का जहाज कहा जाने वाला और उसकी शान का प्रतीक है ऊंट। लोग ऊंटों को दुल्हन की तरह सजाते हैं। मणि और मोतियों की माला से सुसज्जित करते हैं। ये रंग बिरंगे परिधानों से सज कर सभी का मन आकर्षित कर लेते हैं।
यहां के सूर्यास्त का दर्शन सबसे अधिक प्यारा और मनम