तेरी चाल हुबहू शेर ग़ज़ल का,
जब रुके तो ठहरे बादल सी,
दीवानी है तू, ओ दीवानी तू,
तू है पूरी की पूरी पागल भी…
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भूरे अंगूरों से दो नयन तेरे,
कानों में चिड़ियाँ के पंख लगे,
चलती फिरती करती घायल तू,
तू…बिरयानी के पीले चावल सी…
मिश्री के दानों जैसे दाँत तेरे,
दो लब जैसे संतरे की फाड़ियाँ,
तू लहलहाती खेतों में सरसों सी,
लहरों सी तेरी अंगड़ाई है…
बस किशमिश तू अब बन जा,
तुझे दाँतों तले दबा लूँ मैं,
या माचीस की तीली तू बन,
और खुदको तुझसे जला लूँ मैं…