उन दिनों मैं तेरा नमाज़ी था,
जब ख़ुदा भी मेरा सवाली था…
मैं दुआ के सिवाय क्या देता,
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दिल भी दुनिया के जैसा खाली था…
दी दुआ बद्दुआ के बदले में,
इश्क़ अपना अजब मिसाली था…
वस्ल की मौज भी फरेबी थी,
हिज्र का दर्द भी ख़याली था…
कर गया बे-लिबास रूह मेरी,
जिस्म का पर्दा ही वो जाली था…