~ फुटपाथ…
मेरे पैरों में छाले हैं,
ज़बान में मेरी काँटे,
मैला–कुचैला मेरा थैला,
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बदन पर मेरे मिट्टी,
हाथ में टुकड़ा रोटी का,
और मेरा ये कूड़े का डब्बा…
वो पुल के नीचे चार हैं जो,
उनमें से एक है मेरा अब्बा,
नाक में मेरी पोलिश का नशा,
कम्बल में मेरे पेशाब,
ये फूटपाथ है मेरा घर,
मैं पीता हूँ यहाँ शराब…
बस एक बात पर हो जाती हैं नीयत मेरी ख़राब,
सुबह सवेरे मैं ख़ुद–ब–ख़ुद उठ जाता हूँ,
और बैठ कर देखता हूँ अपने जैसे छोटे बदन,
पीली बस में बैठ के मैं, स्कूल क्यों नहीं जाता हूँ…
मैं तो कचरा नहीं करता,
फिर पड़े लिखों का क़ूड़ा कचरा,
मैं ही क्यूँ उठाता हूँ…
#WorldDayAgainstChildLabour #ChildLabour