~ क्रेज…
मेरे मुल्क में एक शहर है
और शहर में एक मकान,
उस मकान में एक जान,
जान में एक रूह है बसी,
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उस रूह की ये व्यथा है…
कैसे मैं ये विवरण करूँ,
रात दिन बस तेरा ही स्मरण करूँ,
स्तुति करूँ मैं तेरी हर पल,
तीर्थ को करूँ तेरा ही भ्रमण,
विचारों को मेरे तू देती शक्ति,
कैसे करूँ मैं ये अभिव्यक्ति,
तेरी आस्था में मैं लीन मैं,
तुझमें में ही मैं विलीन हूँ,
देह को तुझपे न्योछावर करूँ,
तू है तो किसी से मैं क्यूँ डरूँ…
तुझमें सूर्य सा तेज है,
हे प्रधानमंत्री की कुर्सी,
मुझको बस तेरा ही क्रेज है…