~ कान्हा…
मैय्या मोरी मैं नहीं माखन खायो…
मैय्या मोरी मैं नहीं माखन खायो…
सच बोलूँ हूँ,
सब सखा गवाल रै मिलके मोहे सताए,
सब बोलें, तू गोपियाँ का प्यारा,
वो तेरे कहें से आएँ, तेरे ही कहें से जाए…
…ले मान ज़रा हमरा कहना, दे गोपियाँ ने ज़रा बुलायें,
वो आ जाती राधा के संग, उम्मे एक आध हमें भी भा जाए,
तेरा क्या जाए, चल दे तू उन्हें बुलाये…
जे तू करदे इत्ता सा काम, हम तोहरा ना नाम लगायें,
जो तू मुकरे, ना सुने हमरी, सब मिलके तोहे फंसाये,
सब तोहरा ही नाम लगायें, के कान्हा ही माखन खाये…
हम पकड़ तुझे सब मिल जुल के, तोरे मुख पे माखन लगायें,
और फोड़ के माखन के मटकी, सब मिल के शोर मचाएँ,
कान्हा ही माखन खाये, कृष्णा ही माखन खाये…
मय्या सच बोलूँ हूँ, तोसे झूठ ना बोला जाए,
हम ना गोपियाँ ने बुलाये, मैय्या हम ना नार सताये,
जो लगे तो हमपे लग जाये, कोई झूठा इल्ज़ाम लगाये,
मैय्या हम ना नार सताये,
मैय्या हम ना माखन खाए,
सच-मुच् हम नहीं माखन खायो,
मैय्या मोरी मैं नहीं माखन खायो…