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~ डिवाईडर…

ये जो शहर कि सड़क है ना, ये हम तुम हैं,

इस सड़क, यानी की हमारे चेहरे की झुर्रियाँ फ़ुटपाथ,

और इस फ़ुटपाथ के होंठ भी हैडिवाईडर,

अक्सर गुलाबी हो जाते हैं ये डिवाईडर,

कभी एक, कभी दो पाँच साल में पक्का नहीं तो,

जब चुनाव आने को होता है

साल दर साल हमारी तर्रक्की के निशान, डिवाईडर,

ठीक ठाक दिखते होते नहीं हैं हम,

तोड़े फिर काम चलाऊ जोड़े जाते हम,

आगे बड़ रहे चुनाव के चक्कर में हथोडे पड़ रहे,

हमारी हालत का अंदाज़ा नेता सिर्फ़ डिवाईडर से लगाते,

जो फ़ुटपाथ डिवाईडर सँवर रहे, मतलब नेताजी चुनाव लड़ रहे

धूल मिट्टी चाट चाट एक रंग की हो गए,

एक सफ़ेद एक काला फिर एक सफ़ेद फिर एक काला,

कहीं सफ़ेद पिले का जोड़ा कहीं काले पिले का,

वक़्त की धूल सारे भेद भाव मिटाती रहती,

लो फिर जैसे ही हुई घोषणा चुनाव है,

सरकार हमें तोड़ती, फिर बड़े भाव से भेद भाव ओड़ती

ना देश बदलता ना बदलते सड़कों के हालात,

डिवाइड एंड रुल बदल डिवाईडर हो गया है,

बार बार बदला जा रहा है,

इसी पैसे से फिर चुनाव लड़ा जा रहा है,

नेताजी के पिताजी के मामाजी के बेटे, कांट्रैक्टर हैं,

पहले कंडक्टर थे और अब सेमीकंडक्टर

कल बारिश में मुझमें फिर जगह जगह पानी भर गया,

डिवाईडर जो कल बना था जगह जगह से आज उखड़ गया,

मेरे होठों का काला पीला सफ़ेद जगह जगह से फीका पड़ गया,

नेताजी के पिताजी के मामाजी का बेटा, वही सेमीकंडक्टर,

जगह जगह आज उसका अपना मकान है,

यहाँ हर फ़ुटपाथ शमशान और मेरा भारत महान है



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~ डिवाईडर…

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