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कम खर्च में ज्यादा कमाई ! कीजिए लेमनग्रास और खस की खेती, बनाएंगे खूब पैसा

कम खर्च में ज्यादा कमाई ! कीजिए लेमनग्रास और खस की खेती, बनाएंगे खूब पैसा

खेती आजकल नया स्टेटस सिम्बल होने के साथ-साथ एक आकर्षक करियर ऑप्शन भी हो गई है। पढ़ाई में ऊंची डिग्रियां लेने के बाद खेती को अपना करियर चुनने वाले युवाओं की अब एक लंबी फेहरिस्त तैयार हो चुकी है।

इन युवाओं को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है- एक, जो सिर्फ कृषि से संबंधित उद्यमिता कर रहे हैं और दूसरे, वे जो स्वयं खेती कर रहे हैं और अपने उत्पादों को बेचने के लिए अपनी मार्केटिंग भी कर रहे हैं। वैसे तो दोनों ही श्रेणियों में युवाओं की भरमार है, लेकिन फिर भी हर नए युवा को, जो खेती में अपना करियर बनाना चाहता है, इस बारे में पहला कदम उठाने से पहले होम वर्क करना बहुत आवश्यक है।

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एक ऐसा युवा, जो खेती को अपना करियर बनाना चाहता है, उसे क्या होम वर्क करना चाहिए – यह सबसे महत्वपूर्ण सवाल है। सबसे पहले यह तय करना आवश्यक है कि किस फसल की खेती की जाए। फसल का चुनाव इस आधार किया जाना चाहिए कि उसका बाजार कहां है और लागत के मुकाबले उसकी कीमत कैसी है।

यह जानना भी जरूरी है कि उसके लिए कैसी जमीन की जरूरत है, कितना पानी चाहिए इत्यादि। इस लिहाज से ऐसे तमाम लोगों के लिए जो अभी नौकरी या कोई कारोबार कर रहे हैं, औषधीय और सगंध पौधों (मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स) की खेती एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। इस लेख में हम इन फसलों की खेती के बारे में चर्चा करेंगे और इसके लिए आवश्यक तत्वों और पूर्व तैयारी पर नजर डालेंगे।

औषधीय और सगंध पौधों के अंतर्गत दर्जनों तरह की फसलें आती हैं, जिनमें लेमनग्राम, खस, मेंथा इत्यादि कुछ प्रमुख नाम हैं। इन सब फसलों की खेती के अलग-अलग फायदे हैं और अलग-अलग विशेषताएं हैं। जो भी व्यक्ति इनकी खेती करना चाहता है, उसे इन विशेषताओं को समझ कर अपनी परिस्थितियों के मुताबिक कोई एक, दो या ज्यादा फसलों का चुनाव कर लेना चाहिए।

जैसे, लेमनग्राम की बुवाई एक ही बार में 5 वर्षों के लिए होती है। इसके बाद लगभग 6 महीने बाद जब पौधे बडे होते हैं, तो इसकी पहली कटाई होती है। यह कटाई जड़ों से करीब 6 इंच ऊपर से होती है और 3-4 महीने में ये पौधे फिर से कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। अगले 5 वर्षों तक इन पौधों को एक ही बुवाई से काटा जा सकता है। कटाई के लिए पौधों की तैयारी की अवधि इस बात पर निर्भर करती है कि जमीन कितनी उपजाऊ है या पौधों को कितना पानी मिलता है।

खस (vetiver) की खेती भी कुछ ऐसी ही होती है, लेकिन इनकी खासियत यह है कि ये बंजर और बलुई मिट्टी पर भी पैदा हो सकते हैं। तालाबों के किनारे भी इन्हें लगा कर मिट्टी का क्षरण रोका जा सकता है। जहां लेमनग्रास की खेती उसके पत्तों के लिए की जाती है, वहीं खस में उसकी जड़ों का इस्तेमाल होता है। खस की बुवाई हर साल करनी होती है और साल भर के बाद इसकी हार्वेस्टिंग होती है। इसकी जड़ें काफी कड़ी और जमीन के अंदर तक धंसी रहती है। इसके लिए जेसीबी का इस्तेमाल करना होता है, इसलिए खस की हार्वेस्टिंग एक खर्चीला मामला होता है।

लेमनग्राम और खस, दोनों के किसानों के पास हार्वेस्टिंग के बाद दो विकल्प होते हैं। या तो वह किसी व्यापारी को वे पत्ते बेच सकता है, या फिर स्वयं डिस्टिलेशन प्लांट लगा कर उनका तेल निकाल सकता है। ज्यादा मुनाफे के लिए हमेशा किसान को तेल स्वयं निकालना चाहिए।

तेल निकालने के तीन फायदे हैं- पहला, इसको रखना आसान होता है। जहां 10 एकड़ की खेती से निकले पत्तों या जड़ों को बेचने में वेयरहाउसिंग और लॉजिस्टिक्स का बड़ा खर्च उठाना पड़ सकता है, वहीं तेल निकालने का बाद इसे अपने घर के ही किसी कोने में ड्रम में आसानी से रखा जा सकता है।

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दूसरा फायदा प्राइसिंग का है। सगंध पौधों के तेलों की खपत साबुन, परफ्यूम, मच्छड़ भगाने वाली दवाओं इत्यादि में होता है। इनकी कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव देखा जाता है और कभी-कभी दाम के उच्चत स्तरों पर जाने के लिए दो से 3 साल तक का इंतजार करना पड़ सकता है। लेमनग्रास के पत्तों को इतने समय तक नहीं रखा जा सकता और खस की जड़ों को रखने का वेयरहाउसिंग खर्च बहुत ज्यादा हो सकता है। लेकिन तेल को आप सालों रख सकते हैं।

तीसरा फायदा दाम का है। पत्ते या जड़ों को बेचकर मिलने वाला दाम, तेल के मुकाबले बहुत कम होता है।

सगंध पौधों की खेती का एक बड़ा फायदा यह है कि इसमें रखरखाव की जरूरत नहीं के बराबर होती है। लेमनग्राम और खस जैसे पौधों की बुवाई के बाद सिर्फ 2-3 महीने ध्यान देने की जरूरत होती है, जब पौधे छोटे और कोमल होते हैं। थोड़ा बड़े होते ही जहां लेमनग्राम में तेज गंध आ जाती है, वहीं खस की पत्तियों में कंटीलापन विकसित हो जाता है। इसके कारण ये पौधे अपने-आप जानवरों से सुरक्षित हो जाते हैं।

किसी भी औषधीय या सगंध पौधे की खेती के लिए किसान को सबसे पहले उचित प्रशिक्षण जरूर हासिल करना चाहिए। इसके लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान लखनऊ स्थित सिमैप (केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान) मुख्यालय है, जहां वर्ष में कई बार तीन-तीन दिनों का प्रशिक्षण वर्ग लगता है। इसकी सूचना संस्थान की वेबसाइट पर प्रकाशित की जाती है, जहां से पंजीकरण भी किया जा सकता है। इस प्रशिक्षण की खास बात यह है कि वर्ग समाप्त होने के बाद सभी प्रतिभागियों को एक बुकलेट दी जाती है, जिसमें तमाम पौधों की खेती से जुड़ी सारी जानकारियों के अलावा अलग-अलग तरह के तेलों के औद्योगिक खरीदारों और उनका पूरा संपर्क भी दिया गया होता है।

वैसे तो खेती में नए लोगों के प्रवेश के लिए अनेकों रास्ते हैं, लेकिन उनमें सगंध पौधों के जरिए शुरुआत काफी रोचक है। अपनी रुचि के मुताबिक आप किसी भी रास्ते का चुनाव कर सकते हैं, लेकिन उसके पहले होम वर्क में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए – यही खेती में सफलता का सबसे महत्वपूर्ण सूत्र है।



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