देश में कोरोना महामारी के हालात को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने आज हुई सुनवाई में कोरोना वैक्सीन को कीमतों को लेकर सरकार से सवाल किया। सुप्रीम कोर्ट ने कोविन पोर्टल से लेकर वैक्सीन की कीमतों और टीकाकरण को लेकर प्रश्न उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने COVID19 से संबंधित मुद्दों पर सुनवाई की। इस दौरान केंद्र सरकार से वैक्सीन के लिए दोहरी कीमत नीति के औचित्य के बारे में पूछा गया। SC का कहना है कि पूरे देश में टीकों के लिए एक कीमत होनी चाहिए, साथ ही CoWIN ऐप पर टीकों के अनिवार्य पंजीकरण पर केंद्र की खिंचाई की।
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वैक्सीनेशन नीति की आलोचनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने की सुनवाई
दरअसल, देश में चल रहे वैक्सीनेशन अभियान में सरकार की वैक्सीनेशन नीति में वैक्सीनों की अलग-अलग कीमत, वैक्सीन की कमी, वैक्सीन खरीद में भेदभाव और अभियान की धीमी रफ्तार को लेकर सरकार की जमकर आलोचना हो रही है।सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी मामलों पर सोमवार को स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई की थी। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की वैक्सीनेशन नीति में मौजूद खामियों को उजागर करते हुए जवाब मांगा है।
केंद्र ने साल के अंत तक सभी को वैक्सीन लगने की जताई उम्मीद
सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार की वैक्सीनेशन नीति की आलोचना के बीच सरकार इस साल के अंत तक सभी व्यस्क लोगों को वैक्सीन लगाने को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त है।उन्होंने कहा SII, भारत बायोटेक और रेड्डीज लैबोरेटरीज द्वारा उत्पादित खुराकें 18 साल से अधिक के सभी लोगों के लिए पर्याप्त होगी।इसी तरह सरकार फाइजर जैसी अन्य कंपनियों से भी बात कर रही है। इससे देश की वैक्सीनेशन रफ्तार तेजी होगी।
'राज्यों को आपस में ही वैक्सिंग के लिए भिड़ने को छोड़ दिया'
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भाट की बेंच ने कहा, "45 साल से अधिक आयु के लोगों के स्वास्थ्य को ज्यादा खतरा मानते हुए केंद्र ने वैक्सीन दी. क्या 18 से 44 की उम्र में ऐसे लोग नहीं हैं, जिन्हें कोरोना से अधिक खतरा हो?" कोर्ट ने आगे कहा, "राज्यों को आपस में ही वैक्सिंग के लिए भिड़ने को छोड़ दिया गया है. केंद्र ने इस बात तक पर पर भी विचार नहीं किया कि महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य और उत्तर-पूर्व के किसी राज्य की आर्थिक स्थिति में कितना अंतर है? देश के कई राज्यों का बजट तो बृहन्नमुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) से भी कम है.
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, "राज्यों में जो वैक्सीन खरीदा जा रहा है, उसका आधा हिस्सा निजी अस्पताल ले रहे हैं. वह 900-1000 रुपए की कीमत पर लोगों को टीका लगा रहे हैं. क्या केंद्र सरकार यह मानती है कि किसी राज्य में 18 से 44 साल के 50 प्रतिशत लोग ऐसे हैं कि मंहगी कीमत पर खरीद कर वैक्सीन लगवा सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कोविन ऐप के माध्यम से टीकाकरण के लिए रजिस्ट्रेशन पर भी सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा, "आप डिजिटल इंडिया-डिजिटल इंडिया कहते रहिए. लेकिन आप जमीनी हकीकत से परिचित नहीं है. किसी ऐप पर जाकर रजिस्ट्रेशन करवाना तो दूर की बात है, अगर आप एक कॉमन सेंटर बनाकर वहां ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन की बात कहते हैं, तो यह भी बहुत ज्यादा व्यवहारिक नहीं है. झारखंड के किसी सुदूर गांव में रहने वाले गरीब मजदूर के लिए उस सेंटर तक पहुंचना भी एक बड़ी चुनौती होगा."
मामले में एमिकस क्यूरी बनाए गए वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता ने कहा ''बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें टीकाकरण में प्राथमिकता मिलनी चाहिए. जैसे शमशान में काम करने वाले लोग, शिक्षक, किसी असहाय बुजुर्ग की सेवा कर रहे लोग. लेकिन उन तक उन्हें प्राथमिकता नहीं मिल पा रही है. इसका कारण यही है कि राज्य वैक्सीन पाने के लिए ही संघर्ष में लगे हैं. केंद्र इस प्रक्रिया से पूरी तरह से अपने नियंत्रण को हटाकर बैठा है. ऐसे में जरूरतमंदों के लिए कोई स्पष्ट नीति ही नजर नहीं आ रही."
सभी के लिए वैक्सीन क्यों नहीं खरीद रहा केंद?
कोर्ट ने कहा कि केंद्र का तर्क है कि 45+ वालों की मृत्यु दर अधिक है, जबकि 18-44 साल वालों की कम। यदि सरकार का उद्देश्य वैक्सीन खरीदना है तो केवल 45 साल से अधिक वालों के लिए ही क्यों? सभी के लिए क्यो नहीं?
दलील
मई में 18-40 वर्ष आयु वर्ग 50 प्रतिशत लोग हुए संक्रमित- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछले हफ्ते के आंकड़ों से पता चला है कि 1-24 मई के बीच कोरोना संक्रमण की चपेट में आए कुल लोगों में करीब 50 प्रतिशत लोग 18-40 वर्ष समूह के थे। इनमें 1-7 मई बीच 49.70 प्रतिशत और 22-24 मई के बीच 47.84 लोग संक्रमित हुए हैं।ऐसे में सरकार द्वारा केवल 45 साल से अधिक वालों को ही मुफ्त वैक्सीन देना और अन्य आयु वर्क से पैसे वसूलना समानता की स्थिति के खिलाफ है।