पहले पता नहीं ज़िंदगी कैसी थी
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लेकिन जैसी भी थी अच्छी थी
मेरा अपना एक अलग सा जहान था
लेकिन फिर भी कोई कमी सी थी
एक घर परिवार और दो-तीन यार
कुछ ढेर सी किताबें और काम कारोबार
बस रात से दिन और दिन से रात
काम से थक के सोना फिर उठ के काम को त्यार
सब जान्ने वालों से एक अच्छा राब्ता था
कलम के सिवा ना किसे से कोई वास्ता था
यूँ तो हर रोज़ देखता था मैं आईना
लेकिन सच बताऊँ खुद खुदी से कहीं लापता था
फिर एक दिन बिन आईना ही
खुद से खुदी का मिलना मिलाना हुआ
यूँ ही अचानक ज़िंदगी में तुम्हारा आना हुआ
कुछ बातें हुईं कुछ मुलाकातें हुईं
क्या, कब, कैसे मत पूछो सब बहाना हुआ
उस कुदरत की रज़ा तो देखो
मिट्टी जिस्म को जैसे रूहानगी मिल गई
बे-धड़क इस दिल को एक दीवानगी मिल गई
इस कदर हुआ अल्फ़ाज़ों से दोस्ताना
कि बे-समझ इस कलम को रवानगी मिल गई
क्या खूब मिलाया मिलाने वाले ने हमें
पहले कुछ आदतें मिलीं फिर ख़्यालात मिले
पहले चीची से चीची मिली फिर दोनों हाथ मिले
जिस्म कब मिले वो राज़ ही रहने दो
लेकिन हाँ जिस्मों से पहले दिलों के जज़्बात मिले
पता ही न चला कि कब हो गया
खुदी से बढ़कर एक दूसरे का हो जाना
वो मेरा तुम्हें रोज़ घर से लेना घर छोड़ के जाना
और तुम्हारा खुद भूखे रहकर भी
वो मुझे अपने हाथों से खाना खिलाना
और वो छोटी-छोटी बातें बहुत बड़ी थीं
जैसे कि तुम्हारा मुझे डांट कर डॉक्टर पास लेकर जाना
मेरा तुम्हें पहले मोटर बाइक और फिर कार सिखाना
और इन सब से बड़ी एक बात
वो जब दोनों के मम्मी-पापा बीमार थे तो साथ निभाना
और यूँ ही इन छोटी बड़ी बातों में
वक़्त कब और कैसे गुज़रा पता ही ना चला
हस्ते-खेलते इस ज़िंदगी की राहों में
साथ कब और कैसे छूटा पता ही ना चला
और अब यह भी पता नहीं चल रहा
कि हर रात मैं इन पुरानी यादों में
कब और कैसे खो जाता हूँ
लेटता हूँ किसी और की बग़ल में
फिर तुम्हारी बाँहों में कब और कैसे सो जाता हूँ
क्यूँ मैं आईने में भी खुदी को दिख नहीं पा रहा हूँ
दिल-ओ-दिमाग में लफ़्ज़ों का सैलाब सा उठा है
फिर क्यूँ अल्फ़ाज़ों को कलम से लिख नहीं पा रहा हूँ
क्यूँ भूख होने पर भी अपने हाथों से खा नहीं पा रहा हूँ
जानता हूँ तबीयत हद से भी ज्यादा खराब है
फिर क्यूँ किसी डॉक्टर के पास जा नहीं पा रहा हूँ
जानता हूँ यह सब गुज़रा वक़्त है
अब पहले जैसे दोबारा कुछ नहीं होगा
फिर क्यूँ मैं खुद पहले जैसा हो नहीं पा रहा हूँ
पलकों के तले एक बाढ़ रोक रखी है मैंने
फिर क्यूँ मैं खुद अपने ही हाल पर रो नहीं पा रहा हूँ
जानता हूँ कि अब मैं किसी और का हूँ
और तुम्हें भी अब कोई और मिल गया है
और यह सब जानते हुए भी
फिर क्यूँ मैं तुम्हें खुदी से खो नहीं पा रहा हूँ
क्यूँ मैं तुम्हें खुदी से खो नहीं पा रहा हूँ ।।
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