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सरोजिनी नायडू का जीवन परिचय | Sarojini Naidu in Hindi

About Sarojini Naidu in Hindi

13 वर्ष की अवस्था में सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) ने 1300 पंक्तियों की एक लंबी कविता और 2000 पंक्तियों का नाटक लिख दिया था. सरोजनी का कंठ अत्यंत मधुर था, जब वो कविता पाठ करने लगती तो उनका संगीतमय मधुर स्वर सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते, यही कारण है कि सरोजिनी को भारत कोकिला की उपाधि प्रदान की गई.

सरोजिनी नायडू का जीवन परिचय

सरोजिनी का जन्म 13 फरवरी सन 1879 ईसवी में हैदराबाद में हुआ था. पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय तथा माता वरदा सुंदरी की काव्य लेखन में विशेष रुचि थी. सरोजिनी ने काव्य लेखन की प्रतिभा अपने माता-पिता से विरासत में पाई थी. काव्य रचना के साथ-साथ सरोजिनी का अध्ययन कार्य भी चलता रहा.



सन 1890 ईसवी में सरोजिनी नायडू ने मद्रास विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, उसने सब छात्रों में प्रथम स्थान प्राप्त किया था. एक बालिका के लिए ऐसी सफलता प्राप्त करना उन दिनों असाधारण बात थी. अध्ययन के साथ-साथ सरोजिनी नायडू में गंभीरता आती गई, उनकी कविता के विषय भी बदल गए अब वो अपना समय स्वतंत्र अध्ययन करने और उच्च कोटि की कविताएं लिखने में लगाना चाहती थी.

उच्च शिक्षा के लिए उन्हें इंग्लैंड भेजा गया, वहां उनका परिचय प्रसिद्ध साहित्यकार एडमंड गोस से हुआ. सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) की कविता लेखन की क्षमता और रुचि देखकर उन्होंने भारतीय समाज को ध्यान में रखकर लिखने का सुझाव दिया। यहाँ पर सरोजनी के तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए-
  1. द गोल्डन थ्रेशहोल्ड (1905)
  2. द बर्ड ऑफ़ टाइम (1912)
  3. द ब्रोकन विंग (1912)
"लिए बांसुरी हाथों में हम घूमें गाते-गाते,
मनुष्य सब है बंधु हमारे, जग सारा अपना है."
यह पंक्तियां थ्रेशहोल्ड की है. इस पुस्तक से इंग्लैंड का साहित्य जगत आश्चर्यचकित रह गया. साहित्यकारों और समाचारपत्रों ने एक स्वर से उनकी प्रशंसा की, भारत में भी इस सफलता पर सरोजनी का अभिनंदन किया।

भारत लौटने पर सरोजिनी नायडू का विवाह डॉ गोविंदराजुलू के साथ हुआ. वह हैदराबाद के रहने वाले तथा सेना में डॉक्टर थे. इस अंतरजातीय विवाह के लिए ब्रह्म समाज विचार के माता-पिता ने सहर्ष अनुमति प्रदान की, उनका वैवाहिक जीवन सुखी था.

गोपाल कृष्ण गोखले तथा महात्मा गांधी के साथ आने पर सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) नायडू राष्ट्रप्रेम तथा मातृभूमि को संबोधित कर कविताएं लिखने लगी.
"श्रम करते हैं हम
की समृद्ध हो तुम्हारी जागृति का पल
हो चुका जागरण
अब देखो, निकला दिन कितना उज्जवल।"
सरोजिनी नायडू की इन पंक्तियों को पढ़कर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उनका हृदय देश प्रेम से सर्वथा ओतप्रोत रहा. सन 1912 ईसवी में "द बर्ड ऑफ़ टाइम" नामक कविता संग्रह का प्रकाशन हुआ. इनकी प्रशंसा करते हुए यॉर्कशायर पोस्ट नामक पत्र ने लिखा था "श्रीमती नायडू ने हमारी भाषा को तो समृद्ध किया ही है. पूर्वी देशों की भावना और आत्मा से भी हमारा निकट का संपर्क कराया है.
"समय के पंछी का उड़ने को सीमित विस्तार,
पर लो, पंछी तो यह उड़ चला।"
इन पंक्तियों ने साहित्य प्रेमियों को स्वर्गिक आनंद का अनुभव कराया। सरोजिनी नायडू में तारों तक पहुंचने के लिए ऊपर उठने की चाहत थी. उन्होंने अपने कविता संग्रह "द ब्रोकन विंग" में लिखा है-
"ऊंचा उड़ती हूं मैं कि पहुँचूँ नियत झरने तक,
टूटे यह पंख लिए, मैं चढ़ती हूं ऊपर तारों तक।"
गोपाल कृष्ण गोखले सरोजिनी नायडू के अच्छे मित्र थे. वे उस समय भारत को अंग्रेजी सरकार से मुक्त कराने का कार्य कर रहे थे. इस कार्य से सरोजिनी नायडू बहुत प्रभावित हुई उन्होंने कहा -
"देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ा देखकर कोई भी ईमानदार इंसान बैठकर केवल गीत नहीं गुनगुना सकता। कवित्री होने की सार्थकता इसी में है कि संकट की घड़ी में निराशा और पराजय के क्षणों में आशा का संदेश दे सकूं।"



ऐसा दृढ़ संकल्प करके सरोजिनी ने देशभर में चारों तरफ घूम-घूम कर स्वाधीनता का संदेश फैलाया। उनका अधिकतर समय राजनीतिक कार्यों में व्यतीत होने लगा. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के बाद उनका कविता लेखन का कार्य धीमा पड़ गया. लेकिन जो स्थान अंग्रेजी काव्य लेखन में उन्होंने अपने लिए बना लिया था वह आज भी विद्यमान है.

सरोजिनी को लिखने के साथ-साथ वाणी का भी वरदान मिला था. लोग उनके धाराप्रवाह भाषण को मंत्रमुग्ध होकर सुना करते थे. वे पर्दा प्रथा पर प्रहार, हिंदू मुस्लिम एकता पर बल और स्वदेशी की भावना का प्रचार आदि मुद्दों को लेकर देश के विभिन्न भागों में जागृति का संदेश लेकर गई. इनके जोशीले भाषणों की देशभर में बड़ी धूम थी.

गांधीजी 1916 ईसवी में कांग्रेस अधिवेशन में सम्मिलित हुए उन्होंने वहां पर भी सरोजिनी नायडू को उत्साह पूर्वक भाग लेते हुए पाया। यहीं पर जवाहरलाल नेहरू से उनकी पहली भेंट हुई थी. नेहरू जी ने लिखा है "मैं उन दिनों सरोजिनी नायडू के कई धाराप्रवाह भाषणों से प्रभावित हुआ था. वे राष्ट्रीयता और देशभक्ति से भरी थी"

सन 1919 ईसवी में जब प्रथम सत्याग्रह संग्राम का प्रतिज्ञा पत्र तैयार किया गया तो उसमें उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया। सन 1922 ईसवी में गांधी जी पर मुकदमा चला और उन्हें 6 वर्ष की सजा हो गई. इस समय सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) ने खद्दर वस्त्र धारण किया और देश के कोने-कोने में सत्याग्रह संग्राम का संदेश पहुंचाने के कार्य में लग गईं. वह कवित्री होने के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम की उच्च कोटि की नेता भी थी.

1925 ईसवी में इन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया. इस समय गांधी जी ने उत्साह भरे शब्दों में उनका स्वागत किया और कहा "पहली बार एक भारतीय महिला को देश की सबसे बड़ी सौगात मिली है" सन 1930 ईसवी में गांधी जी ने नमक कानून तोड़ो आंदोलन में दांडी मार्च किया और नमक कानून तोड़ा।सरोजिनी नायडू महिलाओं के दल के साथ पहले से समुद्र के किनारे उपस्थित थी.

1942 ईसवी में गांधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने भाग लिया। आजादी की लड़ाई में उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा लेकिन वह कभी पीछे नहीं हटी. अंततः भारत के लिए वह सुनहरा दिन भी आया जिसकी लोगों को वर्षों से प्रतीक्षा थी.

भारत स्वतंत्र हुआ और श्रीमती सरोजिनी नायडू को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल पद का भार सौंपा गया. उत्तरदायित्व कि इतने उच्च पद पर आसीन होने वाली ये भारत की प्रथम महिला थी. उनके कार्यकाल में उत्तर प्रदेश के सांस्कृतिक जीवन में उत्साह दिखाई दिया।

सरोजिनी को इस बात का अच्छी तरह अनुभव था कि नारी अपने परिवार और देश के लिए कितना महान कार्य कर सकती है इसलिए उन्होंने नारी मुक्ति और नारी शिक्षा आंदोलन शुरू किया। नारी विकास को ध्यान में रखकर वो अखिल भारतीय महिला परिषद की सदस्य बनी.

सरोजनी नायडू का व्यवहार बहुत सामान्य था. वे राजनीतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने के साथ-साथ गीत और चुटकुलों का आनंद लिया करती थी. प्रकृति से उन्हें बड़ा प्रेम था. जब 30 जनवरी सन 1948 को दिल्ली में राष्ट्रपिता गांधी जी की हत्या कर दी गई तो इस वज्रपात से सरोजिनी नायडू सदमे में आ गयी.

पूरे देश भर में उदासी छा गई, सरोजिनी नायडू ने अपनी श्रद्धांजलि में कहा -

"मेरे गुरु, मेरे नेता, मेरे पिता की आत्मा शांत होकर विश्राम न करें बल्कि उनकी राख गतिमान वो उठे, चंदन की राख. उनकी अस्थियां इस प्रकार जीवंत हो जाएं और उत्साह से परिपूर्ण हो जाए कि समस्त भारत उनकी मृत्यु के बाद वास्तविक स्वतंत्रता पाकर पुनर्जीवित हो उठे, मेरे पिता विश्राम मत करो ना हमें विश्राम करने दो. हमें अपना वचन पूरा करने की क्षमता दो, हमें अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने की शक्ति दो, हम तुम्हारे उत्तराधिकारी हैं, संतान है, सेवक हैं, तुम्हारे स्वप्न रक्षक हैं. भारत के भाग्य निर्माता हैं, तुम्हारा जीवन काल हम पर प्रभावी रहा है, अब तुम मृत्यु के बाद भी हम पर प्रभाव डालते रहो."

गांधी जी की मृत्यु का आघात उनके लिए बड़ा घातक सिद्ध हुआ, धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. 1 मार्च 1949 को जब वे बीमार थी उन्होंने नर्स से गीत सुनाने का आग्रह किया। नर्स का मधुर गीत सुनते सुनते वो चिर निंद्रा में सो गई. 2 मार्च 1949 को प्रातः 3:30 बजे भारत कोकिला (Sarojini Naidu) सदा के लिए मौन हो गई लेकिन उनकी मृत्यु तो केवल शरीर से हुई है. अपने यशरूपी शरीर से वे आज भी हमारे बीच में हैं.

सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) ने जो जीवन भर विभिन्न रूपों में देश की सेवा की है इसके लिए हम भारतवासी सदैव उनके ऋणी रहेंगे।

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