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देवउठनी ग्यारस पर तुलसी विवाह का महत्व Devuthani

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देव उठानी एकादशी क्या है Dev Uthani Ekadashi kya Hai –

दीवाली के बाद लोग देवउठनी (Devuthani) ग्यारस का त्यौहार बढ़ी धूमधाम के साथ मनाते है| इस दिन को भी लोग दीवाली की तरह ही मनाते है| घरों में दीये जलाये जाते है, पटाखे फोड़े जाते है, रंगोली बनाई जाती है| Devuthani देवउठनी ग्यारस के दिन लोग अपने घरों में गन्ने का मंडप बनाकर उसमे तुलसी और शालीग्राम का विवाह बढ़ी धूमधाम के साथ करते है| कही-कही तो केवल गन्ने की पूजा ही की जाती है, तुलसी का विवाह नही किया जाता है| लेकिन कहा जाता है कि देवउठनी ग्यारस से लगाकर पूर्णिमा तक इन पांच दिनों में किसी भी दिन तुलसी का विवाह किया जा सकता है| परन्तु मान्यता के अनुसार तुलसी का विवाह देवउठनी ग्यारस या फिर पूर्णिमा के दिन ही करना चाहिए| तभी तुलसी माता प्रसन्न होकर आपको इसका फल देती है|

लेकिन अपने कभी यह सोचा है कि इस ग्यारस को देवउठनी ग्यारस क्यों कहते है? और इस दिन तुलसी का विवाह शालीग्राम से क्यों किया जाता है? तो चलिए जानते है इसके बारे में|

देवउठनी ग्यारस या देवउठनी एकादशी क्यों कहते है? Dev Uthani Gyaras –

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को हम देवउठनी ग्यारस या एकादशी के रूप में मानते है| कहा जाता है कि इस एकादशी के दिन पुरे चार माह की निद्रा के बाद भगवान विष्णु उठते है और तुलसी के साथ अपने शालीग्राम रूप में विवाह करते है| इनके विवाह के साथ ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है| मांगलिक कार्यों से हमारा मतलब शादी-विवाह से है| क्योंकि जब तक भगवान विष्णु निद्रा में रहते है तब तक कोई मांगलिक कार्य नहीं होता है लेकिन जब वे देवउठनी ग्यारस के दिन अपनी निद्रा तोड़कर तुलसी से विवाह करते है| तभी से शादी-विवाह का होना शुरू हो जाता है| इसलिए इस एकादशी को देवउठनी ग्यारस या देवोत्थान एकादशी कहते है|

देवउठनी ग्यारस या देवउठनी एकादशी कब है – Dev Uthani ekadashi Date in 2023 –

इस बार देवउठनी ग्यारस या देवउठनी एकादशी 4 नवंबर 2022 को मनाई जा रहा है|

तुलसी विवाह की परंपरा कैसे शुरू हुई? (Tuladi Vivah) –

Devuthani देवउठनी ग्यारस के दिन तुलसी का विवाह शालीग्राम से किया जाता है| यह बात तो आप सभी लोग जानते है लेकिन ऐसा क्यों होता है? क्या इस बात की जानकारी आपको है?

तो चलिए आज हम आपको इसके पीछे की कहानी बताते है जो इस प्रकार है-

पौराणिक कथा के अनुसार – राक्षस कुल में जन्मी वृन्दा नाम की एक कन्या थी| राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी यह भगवान विष्णु की परम भक्त थी| वृन्दा का विवाह जलंधर नाम के एक राक्षस से हुआ था| जो समुन्द्रमंथन् के समय उत्पन्न हुआ था|

वृंदा भगवान विष्णु की भक्त होने के साथ-साथ बहुत ही पतिव्रता स्त्री थी| जिसके कारण जलंधर बहुत ही बलशाली हो गया था| जलंधर राक्षसी स्वभाव के कारण देवताओं को मारकर अपना राज्य स्थापित करना चाहता था| वृंदा के पूण्य-प्रताप के कारण देवता उसका वध भी नहीं कर पा रहे थे|

तब सभी देवतागण भगवान शिव व विष्णु के पास जाते है और उनसे मद्द करने की विनती करते है| तो वे तैयार हो जाते है|

लेकिन वृंदा अपने पति की जीत के लिए पूजा कर रही थी| जब तक उसके पतिव्रत धर्म को नष्ट करके ,पूजा भंग नहीं की जाती तब तक जलंधर को कोई भी हरा नहीं सकता था|

तो भगवान विष्णु ने उसके पतिव्रत धर्म को भंग करने के लिए जलंधर का रूप धारण कर लिया और वृंदा के पास गए| जलंधर रूप में भगवान विष्णु ने वृंदा को स्पर्श कर लिया जिससे उसका पतिव्रत धर्म नष्ट हो गया और उसकी पूजा भी भंग हो गई|

जिसके कारण जलंधर पर जो वृंदा का पूण्य-प्रताप का प्रभाव था वह खत्म हो गया और भगवान शिव ने बड़ी सरलता के साथ जलंधर का वध कर दिया|

लेकिन जब वृंदा सच से अवगत हुई तो उसने क्रोध में आकर भगवान विष्णु को काला पत्थर बनने का श्राप दे दिया| विष्णु को पत्थर के रूप में देखकर सभी देवी-देवता में हाहाकार मच गया| तो माता लक्ष्मी वृंदा से विनती करती है कि वह अपना श्राप वापस ले| माता लक्ष्मी के अनुरोध करने पर वृंदा अपना श्राप वापस ले लेती है|

इसके बाद वृंदा स्वयं जलंधर के साथ जलकर सती हो जाती है| वृंदा की राख से एक पौधा उत्पन्न होता है| जिसे भगवान विष्णु तुलसी का नाम देते है| क्योंकि वृंदा उनकी परम भक्त थी इसलिए भगवान विष्णु तुलसी रूपी वृंदा को यह वरदान देते है कि श्राप के कारण जिस काले पत्थर के वे बन गये थे| उसी काले पत्थर के साथ तुलसी का विवाह किया जाएगा और उस पत्थर को लोग शालीग्राम के नाम से जानेगे|

तभी से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में एकादशी के दिन या फिर कार्तिक मास की पूर्णिमा को तुलसी का विवाह शालीग्राम से करने की परम्परा है|

देवउठनी ग्यारस या देवउठनी एकादशी पर पूजा करते समय किन बातों का ध्यान रखे? (Dev Uthani Ekadashi Pujan Vidhi) –

जो लोग देवउठनी ग्यारस को उपवास करते है या फिर जो उपवास नहीं करते है वे सभी लोग इस दिन तुलसी का विवाह कर सकते है| इसके लिए जरुरी नहीं है की आप उपवास ही करो| अगर आप पूजा पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ करेंगे तो आपको इसका फल जरुर मिलेगा| इसके लिए आप कुछ विशेष बातों का ध्यान रखे जैसे –

  • मंडप लगाने से पहले आटे का चौक बनाना न भूले|
  • जब आप तुलसी का विवाह करे तो गन्ने का मंडप आप अपने घर के आंगन में बनाए|
  • तुलसी के गमले को अच्छे से लीप-पोत कर सजा ले|
  • गन्ने के मंडप के नीचे चौक पर पटा या चौकी रखकर उस पर तुलसी का गमला रखकर शालीग्राम को रखे| अगर शालीग्राम नहीं हो तो विष्णुजी की प्रतिमा भी रख सकते है|

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  • तुलसी पर चढाने के लिए पूरा सिंगार का सामान जैसे – लाल कपड़ा ,लाल या हरी चूड़ी ,मेहंदी ,सिंदूर ,हल्दी ,आलता ,बिंदी ,कांसे के बिछिया आदि रखे|
  • शालीग्राम पर चढाने के लिए पीला कपडा और जनेऊ रखे|
  • तुलसी पर भोग लगाने के लिए सात या ग्यारह आटे की टिकिया देशी घी में सेक ले और हलवा बना ले| अगर आप चाहे तो किसी भी मिठाई का भोग भी लगा सकते है|
  • सबसे पहले तुलसी और शालीग्राम को हल्दी लगाए|
  • इसके बाद तुलसी पर लाल कपड़ा या लाल चुनरी तथा शालीग्राम पर पीला कपड़ा चढ़ाये|
  • फूलों की माला चढ़ाये|
  • अब तुलसी पर पूरा सिंगार चढ़ाये जैसे – आलता ,बिंदी ,चूड़ी ,मेंहदी आदि|
  • होम करके भोग लगाए|
  • घी का दीपक जलाकर तुलसीजी की आरती करे|
  • तुलसी के गमले के चारों ओर 7 या 11 परिक्रमा करे|
  • तुलसी पर चढ़ाये गये भोग को अपने परिवार या अन्य सभी लोगों को बांट दे|

जो लोग देवउठनी Devuthani ग्यारस के दिन तुलसी का विवाह करते है| तुलसी माता उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती है| उनके घर में खुशहाली लाती है ,नकारात्मक उर्जा को बाहर भगाती है| ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है क्योंकि तुलसी विष्णुजी को अत्यंत प्रिय है|

इस देवउठनी ग्यारस या देवउठनी एकादशी पर ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट तरह तरह के ऑफर ला रही है इन सभी ऑफर के बारे में आप यहाँ से देख सकते है।

FAQs –

देवउठनी ग्यारस कब है 2022?

पंचांग के अनुसार देवउठनी एकादशी तिथि 03 नवंबर 2022 को शाम 07 बजकर 30 मिनट पर प्रारंभ होगी

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