मत दस्तक दे अब उन दरवाज़ो को
जो बंद पड़े है…
मत पानी दे अब उन फूलो को
जो डाली से टूट गिरे है…
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जो फ़ितरत तेरी थी वो किया तूने
टूटे ख्वाबो से पन्ने मेरे भरे पड़े है…
गुज़ारिश है मत जगा अब उन ख्वाबो को
जो सोए पड़े है…
तेरी कोई खबर नहीं पर
कदम मेरे मंज़िल की ओर चल पड़े है…
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