चेहरा क्या देखते हो, दिल मे उतर के देखो ना…
मौसम पल मे बदल जाएगा पत्थर दिल भी पिघल जाएगा
मेरी मोहब्बत मे है कितना असर देखो ना
चेहरा क्या देखते हो…
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हाँ, माना कि शारिरिक हुलिया और मन-मस्तिष्क में डोल रहे लूलिया का प्रतिबिंब चेहरे के दर्पण की चमक से ही साफ साफ झलकता हैं। लेकिन जिस दिन हम-आप बूढ़े हो जाएंगे न…तो ये चेहरा ही उम्र का आईना दिखा-दिखाकर चिढ़ाता फिरेगा।
अब तक काले घेरों से जूझ रहे आपकी आँखों में, उम्र की एक पड़ाव को लांघने के बाद ही महीन लकीरें आनी शुरू हो जाएंगी। “बुड्ढा होगा तेरा बाप” टाइप का आप लाख डॉयलोग बाजी कर लीजिए पर धीरे धीरे आपके हाथों में त्वचा की पकड़ कमजोर-कमजोर सी होने लगेंगी, रक्त शिरायें बाहर की ओर झांकेंगी और साथ साथ झुर्रियां…ओ माई गॉड।
सीधा तनकर खड़े नहीं हो सकोगे आप और अलथी-पलथी मारकर घंटो बैठ जो गप्पें हाँक लेते हो न, वो भी नहीं हो पायेगा।
कुछ बाल झड़ कर साथ छोड़ देंगे, बाकी उम्र के चूने में रंग सफेद से हो जाएंगे। हाँ, मार्केट में ब्लैक रोज काली मेहंदी मिलती हैं, नाम नोट कर लो…और भी है जैसे गोदरेज नूपुर और आजकल पतंजलि का भी कुछ-कुछ आता हैं शायद।
सर, कमर, घुटनों के दर्द में कराहते हुए एक दिन कमजोर याददाश्त के शिकंजे में आकर मुझे, फिर खुद को भी भूल अटल बिहारी वाजपेयी जी सा हो जाना। बाल-बुतरू लोग ठीक-ठाक रहा तो ठीक वर्ना वृद्धावस्था में पेंशन के नोटों के बलबूते किसी ओल्ड एज होम की सीढ़ियों पर बैठ भगवान का भजन कीर्तन करते हुए मौत मांगना, और लिख कर ले लो साहेब… वो भी बेसहारों की कहाँ सुनते हैं आजकल।
अंततः किसी भीषण रोग से ग्रसित हो, एक दिन दुनिया से विदा। फिर क्या, कुछ सो कॉल्ड अपने-पराये, घरवाले-पड़ोसी-रिश्तेदार आपको चंद घंटों में सुपुर्द-ए-खाक कर पंचतत्व में मिला देंगे। कुछ अपने-पराये, कुछ समय तक आपकी चर्चा और गाली-गलौज अच्छे-बुरे गुणों से करेंगे। फिर कुछ दिनों तक आपकी एक काली-सफेद सी तस्वीर दीवार पर फूल माला लटका के सुबह-शाम अगरबत्ती का धुआं फूकेंगे और एक दिन सबकुछ भूल जाएंगे।
प्रकृति की उर्वरा कोख में नित्यप्रतिदिन नई-नवेली पीढियां आएंगी और पुरानी पीढ़ियों पंचतत्व में विलीन हो शून्यता में विलोपित हो जाएगी। और हमारा-आपका कही कोई नामोनिशान नहीं होगा।
‘राम नाम सत्य हैं’ के सिवाय हमारा-आपका कुछ भी नहीं बचेगा… कुछ भी मतलब कुछ भी नहीं।
इसलिए, ज्यादा लोड़ लेकर जिंदगी मत बिताइये। स्कूल-कॉलेज और यूनिवर्सिटी में वर्षों की पुस्तक-साधना से प्राप्त ज्ञान के बदले फ़ेसबुक-व्हाट्सएप के ज्ञान में उलझकर ज्यादा भक्त मत बन बैठिये, काहे से कि हमारे बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं…अति भक्ति, चोर के लक्षण। सफलता-असफलता, लड़ाई-झगड़ा, दोस्ती-दुश्मनी, गरीबी-अमीरी, कांग्रेस-बीजेपी, मोदीजी-राहुलजी, रवीश कुमार-रोहित सरदाना को लाइटली लीजिए, भले ही आपके गांव-घर में लाइट हो या नहीं।
©पवन Belala Says