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मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक….पंडित माखनलाल चतुर्वेदी🙏

“शिक्षक और साहित्यकार बनने के बाद मुख्यमंत्री बना तो मेरी पदावनति होगी.”
पंडित माखनलाल चतुर्वेदी

वर्षों पूर्व आज ही के दिन…4 अप्रैल, 1889 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिला स्थित बाबई गांव में राष्ट्रकवि, स्वतंत्रता सेनानी व प्रभा, कर्मवीर और प्रताप नामक प्रतिष्ठित अखबारों में पत्रकार के रूप में सेवा करते हुए क्रांति की लौ सुलगाने वाले कलमकार पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म हुआ था।

अध्यापक पिता के घर में जन्मे दद्दा के रूप में मशहूर पंडित जी भी अल्पायु से ही एक शिक्षक के पद पर कार्य किया। सितंबर 1913 में उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए समर्पित हो गए। अपनी कविताओं में देशप्रेम के साथ साथ प्रकृति और प्रेम का भी अदभुत चित्रण किया है।

आइये, आज उनके जन्मोत्सव बेला में, उनकी कलमबद्ध कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ का रसास्वादन करते हुए गुनगुनाये….।
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!

हिम-तरंगिनी से मेरी कुछ और पसन्दीदा पंक्तियाँ साझा कर रहा हूँ…
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!
प्रलय-प्रणय की मधु-सीमा में
जी का विश्व बसा दो मालिक!

रागें हैं लाचारी मेरी,
तानें बान तुम्हारी मेरी,
इन रंगीन मृतक खंडों पर,
अमृत-रस ढुलका दो मालिक!
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!

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