तुम अपनी हो, जग अपना है
किसका किस पर अधिकार प्रिये
फिर दुविधा का क्या काम यहाँ
इस पार या कि उस पार प्रिये। @ भगवतीचरण वर्मा
Related Articles
कैलेंडर का पहला पन्ना अबतक सबने पलट लिया हैं, और इसके संग ही “ठण्ड तुम कब जाओगी” की ताने सुन-सुनकर परेशां हो चुकी बेचारी ठण्ड भी विदा-जुदा हो चुकी हैं। वर्ष की सबसे छोटी 28 दिनों वाली बेटी फ़रवरी ने खूबसूरत दस्तक दी हैं। मेरी फेवरेट माह ए इश्क़…फरवरी, जो मुझ जैसे असंख्य अखंड-सिंगलो के लिए इज़हार-ए-इश्क़ का महीना हैं। यह सिर्फ 28*24 घंटो का अंतराल भर नहीं हैं जनाब, इसका हरेक सेकेंड अपनों को महसूस करने, वादों कसमे, इज़हार इक़रार करने-कराने और निभाने के लिए शायद निर्धारित किया गया हैं, जो अब तक दिलों के डब्बे में कैद कर रखा था आपने। दिल के रेफ्रीजिरेटर में बंद उन सारे आइस-क्रीम रूपी इमोशंस व फीलिंग्स को पिघलने से पहले बाटने का यही तो शुभ घड़ी हैं श्रीमान।
माना कि हमारी सुबह हमेशा की भांति देर से होती हैं, फिर भी सुबह और शाम के समय साफ़ सुथरे लालिमा युक्त आकाश के तले, ठंडी बयार गालों को सहलाते हुए बालों को सवारती-बिगाड़ती हुई, उनसे अटखेलिया खेलती हैं। आम की नन्ही हरी-गुलाबी कोपलों को गले लगाकर आ रही, बसंती बयार में एक विचित्र सी भीनी-भीनी खुशबू व शीतलता के संग माँ व मातृभूमि की महक टाइप का अपनत्व हैं, जो दिलोदिमाग का कुछ कुछ से लेकर बहुत कुछ करवाने के लिए पर्याप्त हैं । कल-कल बहती स्वर्णरेखा की अविरल धारा, पक्षियों की चहचाहट, पलाश के फूलों से लदे छोटे-बड़े पौधे, बस मन करता हैं, इस सुगन्धित पवन के झोकों संग बहता हुआ, आज ही रंगो से स्वयं को रंगते हुए होली की खुमार और महुआ के नव कोपलों के जाम में डूबकर ख़ुद को फंना कर जाऊ। एक ओर बसंत के प्रभाव से प्रकृति-प्रदत सौंदर्ययुक्त वातावरण के नशे से मन मष्तिष्क सारोबर हैं, और बची-खुची होशोहवाश तुमने छीन रखी हैं।
बहुत मित्रों को अपने बच्चों की माँ मिल गयी हैं तोह कई आज तक UPSC के लिए प्रयत्नशील हैं। टिंडर से प्रेमी/प्रेमिका धर्म का आविष्कार करके फेसबुक फ्रेंड-रेकुएस्ट रुपी पहली बाधा को लाँघ करके कइयों ने hike से hi & hello करते हुए अपनी प्रेम गाथा को व्हाट्सअप में अंजाम तक पहुंचा रहे हैं। बस अब तक दोनों के सोशल प्रोफाइल में रिलेशनशिप स्टेटस चेंज होने की प्रतिक्षा पूरी कायनात कर रही हैं, क्योंकि सोशल साइट्समे आज भी दोनों बोल्ड अक्षरों से सिंगल मेन्टेन कर रहे हैं।
किसी के लिए प्रेम महज एक कहानी हो सकती है, मगर मेरे लिए… प्रेम बहुत कुछ से भी बहुत ज्यादा हैं, शायद सबकुछ कह सकते हैं आप। आईये इस वैलेंटाइन डे हम प्रेम करे, क्योंकि कबीर बबा कहते हैं…
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।।
© Pawan Belala 2018