अपने आस पास की कई परिस्थितियों को देखकर कई बार मेरे-आपके दिलो दिमाग में एक करंट के तीव्र प्रहार संग कशक सी उठती हैं। इतनी कसक के वावजूद अनेको बार हमसब नियति के भरोसे छोड़कर इन मुद्दों से मुख मोड़ लेते हैं, और कायरता के आत्मगलानी में दहकते ज्वाला में वसूलो के होलिका दहन करते हैं। आज २१ वी शताब्दी में हमारा भारतीय समाज आज एक अजीबोग़रीब जद्दोजहद से जूझ रहा हैं। जाति, संप्रदाय, रंग, भांषा, क्षेत्रवादिता की पुरानी जंजीरो में जकड़ी हमारी मानसिकता आज समाज को एक नवीन दायरे में विभाजित कर शोषक और सेवक वर्ग रूपी नयी लकीर खींच खाईयों की चौड़ाई को गहरी करने का मन बना चुकी हैं। आज मुक्कदर के भरोसे इन मुद्दों को छोड़कर आत्मगलानि के जलते मानसिक अंगारो से जलने के सिवाय मैंने अपनी कलम की नोक से इन मुद्दों संग दो-दो हाथ करने का मन बना चूका हूँ।
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अपने लेखों की कड़ी में, मैं आज आईसीयु में गुणवत्ता की सांसे गिन रही वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था की बाल की खाल निकलूंगा। प्राचीन भारत में जिस शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया गया था वह समकालीन विश्व की शिक्षा व्यवस्था से समुन्नत व उत्कृष्ट थी। मकोले द्वारा भारतीय नौकरो की फौज खड़ी करने हेतु स्थापित अंग्रेजी शिक्षा के संक्रमण और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत के विभिन्न काले अंग्रेजो की सरकारों के उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण हमारे भारत की गौरवशाली प्राचीन शिक्षा व्यवस्था आज डायनासोर की भांति विलुप्त सी हो चुकी है।
आज अपनी मानसिक उथल-पुथल को तथ्यों के सहयोग से शांत करने के लिए इंटरनेट ब्राउज़र पर कुछ कुछ सर्च कर रहा था। गूगल बाबा की मदद से ASER(Annual Status of Education Report) २०१७ द्वारा जारी तथ्यों की कुछ पन्ने मेरे हाथ लगे। आईये उनपर नजर दौड़ाते हुए, स्वयं से अपनी मंजिल से सम्बंधित कुछ सवाल पूछते हैं….
- कुल मिलाकर, 14-18 आयु वर्ग के 86% युवा अभी भी औपचारिक शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत या तो स्कूल में हैं या फिर कॉलेज में।
- इस आयु वर्ग के लगभग 25% अभी भी अपनी मातृभाषा में मूल पाठ को स्पष्ट रूप से नहीं पढ़ सकते हैं।
- आधे से अधिक युवा विभाजन के (3 अंकों से 1 अंक) समस्याएं हल करने में संघर्ष करते हैं। केवल 43% ऐसी समस्याओं को सही ढंग से करने में सक्षम हैं।
- सभी 14 वर्षीय बच्चों के नमूना में 53% अंग्रेजी वाक्यों को पढ़ सकते हैं और १८ वर्ष श्रेणी में ये आकड़ा ६०% को छूता हैं।
- 14-18 आयु वर्ग में मोबाइल फोन उपयोग व्यापक है, वहीं 59% ने अबतक कभी भी कंप्यूटर का इस्तेमाल नहीं किया हैं और 64% ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं किया हैं।
ये तो कहानी थी समाज के सेवक वर्ग की, पर शोषक वर्ग ने भी अबतक गौरवान्वित होने लायक उपलब्धियों के कोई झंडे नहीं गाड़े हैं। स्कूल, टूशन, परसेंटेज, ग्रेड के चक्कर में कई शोषक पुत्र शारीरिक और मानसिक रूप में भोथर हो चुके हैं। इन असमानताओं के प्रति मानवमात्र में सम्मान बना रहे, इसके लिए रोबोट बन चुके इन बच्चों में पुनः मानवीय संवेदनाओ को जीवित रखना आज सबसे बड़ी चुनौती हैं।