विकिपीडिया के पन्नो को अपने वायरलेस माउस की मदद से स्क्रोल कर ऊपर-नीचे कर ही रहा था कि कई चिर अपरिचित तथ्यों से अवगत हुआ। अपने अतीत के खट्टी-मीठी-नमकीन कुरकुरी यादों को मठमैले से हो चुके इतिहास के पन्नो में समेटा हमारा देश भारत अबतक लाखों शरद-बसंत को जीकर शीत की ठहरी सी रातों में ठिठुर चूका हैं । जननी व जन्मभूमि से सम्बोधित होने वाली इस सौंधी सी धरा को वक्त की गर्म हवा और अपने पराये से लोगों ने समय-समय पर बार-बार और कई बार घाव देकर लहूलुहान किया और कईयो ने तोह छत-विछत करने के किसी अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया। भला हो उन सपूतो का, जिनके सेवा-सत्कार और सम्मान से अभिभूत होकर इतने जख्मो के वावजूद पुत्र-मोह में भारत माँ ने स्वयं को बंजर होने से बचाये रखा और ऐसी संतानों के लिए अपनी कोख कभी सुनी नहीं होने दी।
1947 में आजादी का स्वाद चखने के बाद हमने विकास प्राप्ति के विभिन्न लक्ष्यों में नए कीर्तिमान स्थापित कर प्रगतिशील विश्व के समक्ष एक उत्कृष्ट उदाहरण के स्वरुप में स्वयं को स्थापित किया हैं। मुझे पूरा विश्वास हैं कि वो दिन अब दूर नहीं, जब हम चाँद और मंगल ग्रह में इन ग्रहों व उपग्रहों का ग्रह उतारने के लिए रामचरित मानस का पाठ और भगवान जी की कथा का आयोजन करेंगे।
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©पवन Belala Says 2018