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छठ की छटा मुबारक हो

वर्षपर्यंत कितने त्यौहार आते हैं, और कब चले जाते हैं, कई बार महसूस भी नहीं हो पाता सिवाय छुट्टियों के। किन्तु छठ की छटा को शब्दों से बांधना लगभग मेरे लिए असंभव प्रतीत होता हैं। “आँखों से नींद गायब, घाट जाने की उत्सुकता, यूट्यूब में शारदा सिन्हा जी को सुनकर इमोशनल होना और कई बार पुराने चलचित्रों में उलझकर नेत्रों को डबडबाने से भी नहीं रोक पाना” मैं आजतक यह समझ नहीं पाया कि आखिर इसकदर कमजोर कैसे हो जाता हूँ।
हरेक दीपावली में भगवान श्री राम जी, अनुज और धर्मपत्नी संग घर वापस पधारते हैं, परन्तु अपना वनवास ख़त्म हो तब न। ऐसा प्रतीत होता हैं, मानों प्रवासी हो चुके इस रक्त-मांसल देह को गांव में बहती माँ स्वर्णरेखा की अविरल धारा हरेक वर्ष छठ पर बुला रही हो। ठेकुआ की मिठास को तरस रहा मन एक बार फिर मिट्टी की संस्कृति में रंगना चाहता हैं, पीपल और बरगद की छाव तले कुछ पल सुस्ताना चाहता हैं।
वावला मन गुलाबी ठण्ड में स्वर्णरेखा में डुबकी लगाकर ठिठुरना चाहता हैं। कुहांसे से ढके भोर बेला में सूर्योदय से पहले स्नान कर शरीर की रोंगटे खड़े होने का अनुभव हो या फिर दांतो का टकराना, और उससे आ रही कटकट की आवाज…. ओठों का थरथराना और फिर कापते हाथो से भगवान भास्कर को अर्घ अर्पित करने की उत्सुकता….इन सबको सिर्फ शब्दों में नहीं वर्णित किया जा सकता।

धन्यवाद् सूर्य देव पृथ्वी को ठण्ड से बचाकर दीप्तमान करने के लिए,
इन-डायरेक्टली फ़ूड और विटामिन डी के मुख्य स्रोत की भूमिका निभाने के लिए। प्राणियों के जीवन से अँधियारा दूर करने के लिए |
#बिहार#झारखण्ड और #पूर्वी उत्तर-प्रदेश के निवासियों और प्रवासियों को लोक आस्था के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण उत्सव छठ की असीम मनकामनाएं 
स्वस्थ रहे,
मस्त रहे,
जबरदस्त रहे 




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