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तो क्या होगा?

मुझको खोकर मैं चला,
जग को हँसी पिलाने ।
जो कोई रोककर मुझे,
पूछ बैठा मेरी तारीफ़ तो क्या होगा ?
अपने हर एक जख़्म को,
छोड़ा यूँ ही खुला मैंने
वक्त ही तो एक दवा है ।
पर कहीं अगर,
वक्त को न मिला वक्त तो क्या होगा ?
क्या इश्क है, क्या मोहब्बत
सब झोंक डाला सीने की आतिश में,
कभी सफ़र में कोई
इश्कदार दीवाना मिल गया तो क्या होगा ?
'मंज़िल' पर आने से पहले,
गया हर मंज़िल पर मैं
और अब इस पूरी दुनिया में कहीं,
मेरी तन्हाई को भी न मिला ठिकाना तो क्या होगा ?
आज घेरे है मुझे एक आग,
कल राख़ बच जाएगी
एक यही है डर लगा कि
उड़ते हुए हवा में ये राख़,
कर बैठी कोई शक्ल अख्तियार तो क्या होगा ?


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