पारूल रोहतगी
वैदिक ज्योतिषाचार्य
समाज में किन्नरों का जीवन काफी कठिन है। आज भी मनुष्य में किन्नर जाति ऐसी है जो अपने मूल अधिकारों के लिए लड़ रही है। देखा जाए तो समाज का यह वर्ग काफी पिछड़ा हुआ है। किन्नरों के जीवन और मृत्यु से कई रहस्य जुड़े हुए हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि किन्नरों का विवाह भी होता है। जी हां, समाज में हीन दृष्टि से देखे जाने वाले इस वर्ग में भी शादी जैसा पवित्र बंधन बांधा जाता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि किन्नरों का विवाह किसी सामान्य व्यक्ति से नहीं बल्कि महाभारत के सुप्रसिद्ध पात्र अर्जुन और उलुपी के पुत्र ‘अरावन’ से होता है। किन्नर समुदाय में अरावन को देवता के रूप में पूजा जाता है। किन्नरों के देवता भी अरावन हैं और उन्हीं से विवाह रचाने की प्रथा इस समुदाय में फैली हुई है।
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किन्नर समाज की इस प्रथा की शुरुआत की कथा महाभारत से जुड़ी है। किवदंती है कि अर्जुन को द्रौपदी के साथ विवाह की शर्त के उल्लंघन पर एक वर्ष की तीर्थयात्रा पर जाना पड़ा था। इसी यात्रा के दौरान अर्जुन की भेंट एक विधवा नाग राजकुमारी उलुपी से हुई। अर्जुन और उलुपी के बीच प्रेम हो गया और कुछ समय बाद उलुपी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम अरावन रखा गया। पुत्र के जन्म के बाद अर्जुन ने दोनों को छोड़ कर अपनी आगे की यात्रा के लिए प्रस्थान किया।
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महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों को जीत के लिए मां काली के चरणों में एक राजकुमार की बलि देने की जरूरत पड़ी किंतु इस कार्य की पूर्ति के लिए कोई भी राजकुमार आगे नहीं आया। तब अरावन नर बलि के लिए आगे आता है किंतु उसकी शर्त होती है कि वह अविवाहित नहीं मरेगा। यह एक बड़ा संकट था क्योंकि ऐसी परिस्थिति में कोई भी राजा अपनी पुत्री का विवाह उससे करने को तैयार नहीं था। इस समस्या का हल निकालने के लिए श्रीकृष्ण ने मोहिनी रूप धारण कर अरावन से विवाह किया। अगले दिन अरावन स्वयं मां काली के चरणों में अपनी बलि देते हैं।
इसका अर्थ है कि श्रीकृष्ण पुरुष होकर स्त्री के रूप में अरावन से विवाह करते हैं और किन्नर स्त्री होकर पुरुष कहलाए जाते हैं। इसलिए किन्न्र समाज में प्रथा है कि एक रात के लिए किन्न्र का विवाह उनके आराध्य देव अरावन से कराया जाता है।
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