अटल बिहारी वाजपेयी :- इमरजेन्सी के दौरान, जब मेरी तबीयत ख़राब हुई, तब मुझे बैंगलौर के जेल से ऑल इन्ड़िया मैड़िकल इन्सटीट्यूट में लाया गया । चौथी या पांचवी मन्ज़िल पर रखा गया था । कड़ा पहरा था । लेकिन रोज़ सवेरे मेरी आँख अचानक खुल जाती थी । कारण ये था कि रोने कि आवाज़ आती थी । मैंने पता लगाने का प्रयास किया, ये आवाज़ कहाँ से आ रही है, किसकी आवाज़ है, तो मुझे बताया गया कि मैड़िकल इन्सटीट्यूट में रात में जिन मरीजों का देहांत हो जाता है, घर वालों को उनकी लाश सवेरे दी जाती है । सवेरे उन्हें ये जानकारी मिलती है कि उनका प्रियजन नहीं रहा ।
रोने कि आवाज़ मुझे विचलित कर गई । दूर से आवाज़ आती थी मगर हृदय को चीर कर चली जाती थी ।
दूर कहीं कोई रोता है,
तन पर पैहरा भटक रहा मन,
साथी है केवल सूनापन,
बिछुड़ गया क्या स्वजन किसी का,
क्रंदन सदा करूण होता है ।
जन्म दिवस पर हम इठलाते,
क्यों ना मरण त्यौहार मनाते,
अन्तिम यात्रा के अवसर पर,
आँसू का अशकुन होता है ।
अन्तर रोयें आँख ना रोयें,
धुल जायेंगे स्वपन संजाये,
छलना भरे विश्व में केवल,
सपना ही सच होता है ।
इस जीवन से मृत्यु भली है,
आतंकित जब गली गली है,
मैं भी रोता आसपास जब,
कोई कहीं नहीं होता है ।
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