तबियत भी क्या है की संभलती नहीं
फितरत इन्सां की कभी बदलती नहीं
मर मर के जी रहा हूँ देख ले यारब
अपनों की नज़र कभी दिखती नहीं
तबियत भी क्या है की संभलती नहीं
फितरत इन्सां की कभी बदलती नहीं
मर मर के जी रहा हूँ देख ले यारब
अपनों की नज़र कभी दिखती नहीं
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