बहुत से कवियों ने प्रकृति पर सुंदर कविताएं लिखी हैं। किंतु एक युवा द्वार उसे कैसे देखा जाता है, कैसा महसूस किया जाता है......
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प्रकृति
पृथ्वी की तो दृढ़ता अपनी
आकार स्थूल व भार है देती
वृद्धि तू हर स्थान है करती
मुझमें बनकर केश व अस्थि
मैं हूं अंश तेरा, ए प्रकृति!
द्रवता प्रदान कर जल अपनी
सावन करें समंदर तृप्ति
तुष्ट पुष्ट हमको कर देती
मुझमें लहू व वीर्य बनी
मैं हूं अंश तेरा, ए प्रकृति!
अगन से ऊष्मा सूर्य की
इक नव जान जीवन में डाली
भर दें तन मन में स्फूर्ति
विलीन है मेरे सर्वस्व भरी
मैं हूं अंश तेरा, ए प्रकृति!
वायु की वो अपनी गति
ले आएं सुंदर ऋतु सारी
तुमसे ही चले मेरी गतिविधि
संचालक भी , प्रेरक तुम ही
मैं हूं अंश तेरा, ए प्रकृति!
आकाश है इतना विशाल कि
तू देता रिक्त
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