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एक कसाई जो कभी बेचता था मांस , अब बनाता है गाय की पेंटिंग

भारत देश में गाय को पूजनीय माना गया है। गाय कई युगों से भारत भारतीय जीवन शैली का हिस्सा होने के साथ – साथ अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी रही है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार गाय में देवी – देवता वास करते हैं। इसी वजह से गाय को पावन माना गया है और हिन्दू समाज में गाय गाय की पूजा की जाती है। इन दिनों गाय की रक्षा को लेकर देश भारत में बहस छिड़ी हुई है। लेकिन इसी बीच एक ऐसा कसाई जो सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है , ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि ये कसाई कभी गाय का मांस बेचता था लेकिन अब गाय की पेंटिंग बनाता है।

कोजो मार्फो जो किसी समय एक कसाई हुआ करता था, ये अपना काम छोडकर अब कलाकार बन गए हैं. ये अपनी पेंटिंग के जरिये लोगों को गाय का महत्व बताना चाहते हैं। कोजो मार्फो का काना है कि गाय से सभ्यताएं बनती है , घाना में हम उनसे खेत में हल चलाते हैं और यदि आपके पास दो-तीन मवेशी हों तो विवाह करने के लिए आपको एक सुंदर महिला भी मिल सकती है। इनका कहना है , भारत के कई हिस्सों में भी गाय को भगवान की तरह माना जाता है। कोजो मार्फो का जन्म घाना के एक ग्रामीण परिवार में हुआ था। इनकी परवरिश उनकी दादी और मां ने की। काम के सिलसिले में कोजो मार्फो न्यूयॉर्क गए और वहां जाकर कसाई बन गए।

41 वर्ष के कोजो ने कहते हैं कि मैं बहुत निराश था , मुझे मांस के बारे में बहुत ही कम जानकारी थी। दीवार पर एक ड्रॉइंग बनी हुई थी जिसमें ये बताया गया था कि मांस को किस तरह से काटना है। हालांकि इसके बावजूद भी मेरा बॉस मुझे पकड़ लेता था। कोजो मार्फो ने भले ही मांस बेचा हो लेकिन इनकी प्रेरणा इन्हे यहाँ तक कैनवास तक ले आई जिससे इनकी जिंदगी ही बदल गई। अब इनके काम को सराहा जा रहा है। गाय के अलावा कोजो के दिल में औरत के लिए भी काफी सम्मान है। वो कहते हैं , किसी बच्चे को पालने में माँ की भूमिका मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ। जो इनकी पेंटिंग में भी साफ़ झलकता है।

इनका जन्म भले ही घाना में हुआ हो लेकिन फिर भी इनकी पेंटिंग में और भी महाद्वीपों की झलक देखने को मिलती है। दार्शनिक अंदाज में कोजो का कहना है कि हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ की विचारधारा और संस्कृतियाँ विभिन्न प्रकार की हैं, जो एक दूसरे से बहुत ही अलग हैं। मैं इन सबको को जोड़ना चाहता हूँ , साथ ही मैं ये भी चाहता हूँ कि मैं सभी की संस्कृति को प्रदर्शित कर सकूं। कोजो के शुरूआती दिन एक लोकल लाइब्रेरी पिकासो की एक पिक्चर देखते हुए बीते। उन्हें लगता था कि उन्हें डॉक्टर या अकाउंटेंट बनना चाहिए लेकिन मैं नदी के किनारे जाता और वहां मिटटी से रंग बनाता।

कोजो मार्फो के तौर-तरीके भी बहुत निराले हैं। कोजो बताते हैं, मैं पेपर पर वैसलीन लगाता ताकि उसे ट्रेसिंग पेपर की तरह बनाया जा सके लेकिन मैं जब तक घाना में रहा, मेरे काम को गंभीरता से नहीं लिया गया। फिर मुझे न्यूयॉर्क जाने का मौका मिला , यहाँ मैंने अपनी ऑन्टी की ग्रोसरी शॉप पर काम किया। इसके बाद साल 2000 के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब कोजो का मन पेंटिंग से उचट गया, लेकिन जल्द ही उन्हें अपनी प्रेरणा दोबारा मिल गई।

मैं ये दिखाना चाहता था कि सिंगल-पेरेंट की जीवन-शैली कितनी सकारात्मक हो सकती है। पहाड़ों की महिलाएं सबसे मेहनती होती हैं, उन्होंने ही मुझे पाला। एक महिलावादी ने मुझसे कहा था कि जहां आदमी कमान संभालता है, वहां औरतों को पीड़ित होना पड़ता है। लेकिन जहां से मैं हूं, वहां कमान हमेशा औरतों के ही हाथ में होती है।

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