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Let Go...

आज करीब ढाईसाल हो गयेहैं मुस्कुरा करउससे बात किएहुए,
या यूँ कहूँउसके होकर भीउससे जुदा हुए|
इन ढाई सालोंकी शुरआत मेंना दिन कटतेथे और नाही रात,
ना ही क्लासमें मन लगताथा ना हीखेलने में और नाही कहीं और|

इक सज़ा जैसीलगती थी ज़िंदगी,
इश्क़ की सज़ा...
दोस्ती की सज़ा...

खफा खफा सारहने लगा थामैं सबसे,
और सबसे ज़्यादाखुद से |

इन ढाई सालोंकी शुरआत केपहले सब सहीथा सब perfect था...
फिर एकाएक सब ख़त्महो गया...

ढाई साल कीशुरुआत में नाही call काकोई जवाब आताथा नही messageका,
ना facebook पे कोईकोई जवाब आताथा और नाही gtalk पे|

मेरे मन मेंबस एक हीसवाल था, क्यों?
उसका जवाब मुझेमिल ना सका, समय के साथमैंने अपने लिएएक जवाब बनातो लिया,
पर फिर उसेभी भुला दिया|

दोस्ती की शुरआतसे अंत तकदिन रात बसबातें ही बातेंहोती थी,
फ़ोन कौन पहलेरखेगा इसके लिएही बस लड़ाईहोती थी |

वो भी खुशथी मैं भीखुश था,
पर फिर भीना जाने क्योंवो दूर चलीगयी, बहुत दूर|
लड़की थी औरखुश थी, शायदयही बात उसेहज़म नही हुई...
मैंने दूरियाँ मिटाने कीबहुत कोशिश की,
पर उसने देखकर भी अनदेखाकर दिया,
सुन कर भीअनसुना कर दिया|

अक्सर उसकी आवाज़आया करती थी,
मैं ढूँढने जाता थातब उसको,
पर ढूँढ नहीपाता था,
ना ही उसकोना ही अपनेजवाबो को,
फिर धीरे धीरेउसने धीरे धीरेपुकारना भी बंदकर दिया |
और धीरे धीरेमैने भी ढूँढनाछोड़ दिया |

आज ढाई सालबाद ज़िंदगी बहुतआगे बढ़ चुकीहै,
ज़िंदगी बहुत बदलगयी है, औरबहुत ही बदलगया हूँ मैंभी,
जो पाना थावो सब पालिया है...
पर सोने सेपहले आज भीउसी का नामज़हन में रहताहै...

और आज ढाईसाल बाद नाजाने क्यों कुछज़्यादा ही याद रही थीउसकी,
ना ही उसकाबर्थडे है नाही कुछ खासहै आज, परफिर भी नाजाने क्यों आजउसकी याद बहुत रही थी|
अक्सर उसकी यादआने पर मैंइधर उधर मनको बहला लियाकरता था परना जाने आजऐसा हो नापाया |

मैं इधर उधरके बारें मेंसोचते हुए अपनेस्टेशन के आनेका इंतज़ार करनेलगा,
मेट्रो में अपनास्टेशन आने सेपहले ही मैंदरवाज़े के पासखड़ा हो गया,
और स्टेशन पे रुकतेही सामने खड़ीलड़की को देखके मुझे लगाकी शायद वहीहै,
और ऐसा अक्सरलगता है मुझे, या यूँ कहेमैं चाहता हूँऐसा लगे मुझे,
पर आज ऐसाहोना तो जायज़था क्योंकि मैंउसी के बारेंमें ही सोचरहा था,
मुझे नही पताथा की किसीदिन मिलेंगे तोक्या कहेंगे एकदूसरे से,
और ना हीकभी सोचा थाइस बारें मेंक्योंकि आगे बढ़चुकी थी ज़िंदगी...

पर दरवाज़ा खुलने कोथा, भीड़ सामनेथी,
और दरवाज़े के सामनेखड़ी भीड़ मेंछुपा था उसकाएहसास,
मैने 1 श्रणके लिए आँखेंबंद की औरसमझाया मन कोबस अब बहुतहुआ,
और आँखें खोल ली, दरवाज़ा भी खुलगया और भीड़से जूझते हुएमैं बाहर निकलगया था,
वो लडकी नज़रेझुकाए हुए अंदरजा चुकी थी...
अपने एहसास के सचहोने का यकीनमुझे हो चुकाथा,
उसकी उन्ही झुकी चंचलआँखों को पहचानलिया था मैने,
मन ने चीखाकी लौट जावापस जहाँ सेउतरा है,
मन ने बहुतमनाया उन चंदश्रणों में कीइस मौके कोहाथ से नाजाने दे...

मैं मुड़ा और देखनेलगा उसकी ओर, वो भी मेरीही तरफ देखरही थी परउसका ध्यान कहींऔर ही था...
मेरी आँखों में सवालभी थे औरप्यार भी औरमाफी भी,
पर उसकी आँखोसे अब तकमिली नही थीमेरी आँखें,
और अब तकतो मेट्रो कोचल जाना चाहिएथा, पर शायदकायनात को कुछऔर ही मंज़ूरथा...

नज़रे मिली उसकीफिर मेरी नज़रोसे...
उसकी नज़रो ने एकअजनबी को पहचानलिया था...
वो मुझे देखतीरही और मैंउसे...
ना जाने क्योंअब मेरी आँखोंमें अब सवालनही थे,
कहने सुन नेके लिए तोबहुत कुछ था,
पर मुझे अबकुछ कहना नहीथा,

हम बस एकदुसरेको देखते रहेऔर उन चंदलम्हो में जैसेसदिया सी बीतनेलगी...
उसने अपने हाथको हल्का साइशारा किया,
पर मैं पढ़नही पाया उसकेइशारे को, वोसलाम था याअलविदा...

और देखते ही देखतेवो दरवाज़ा खुलगया, ना वोबाहर आई औरना ही मैंअंदर गया...
उसकी आँखों में बहुतकुछ लिखा था, वो शायद खुशथी मुझे देखकर
पर शायद मुझेखुश ना देखकरउसकी वो खुशीधीरे धीरे ओझलहोने लगी थी...
बहुत से लफ्ज़ थे ज़हन में उनसे कहने के लिए,
सैलाब सा था जज़्बातों का मेरे अंदर...
पर शायद सब कुछ कहकर भी हम वो सब ना कह पाते जो हमारी खामोशी उनसे कह गयी...
बहुत कुछ था जो हमने कभी खुद से भी ना कहा था पर आज उनसे सब कह दिया था...

और देखते ही देखतेउनका आख़िरी सलामऔर आख़िरी अलविदादोनो साथ हीक़ुबूल किया हमने...

इक कटी पतंगकी ज़िंदगी अबख़त्म हो चुकीथी, मैं उड़नासीख चुका था...
आगे तो मैंकब का बढ़चुका था परउड़ान अब शुरूहोने को थी...
आसमान की ओरदेख मुस्कुराने कावक़्त अब था...
रुक कर गिरकर आख़िर आजमैं उड़ना सीखचुका था...


-mukul Raisinghani
PS: In life you will always land up in a situation where you’ll be held back by emotions, a person, a broken dream and many more things and most of the times moving on will seem impossible but no matter you move or not your life will move ahead for sure, and it is responsibility to pull yourself and don’t stumble here and there like a kite but learn to fly.
Each and every stone thrown by life at you is meant to make you stronger and better :)






 












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