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निर्जला एकादशी व्रत कथा – ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष एकादशी

निर्जला एकादशी व्रत कथा – ज्येष्ठ या जेठ मास शुक्ल पक्ष एकादशी

ज्येष्ठ या जेठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है।सब एकादशियों में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी सबसे बढ़कर फल देने वाली समझी जाती है, क्योंकि इस एक एकादशी का व्रत रखने से वर्ष भर की एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। निर्जला एकादशी का व्रत अत्यन्त संयम साध्य है अर्थात यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भोजन संयम न रखने वाले पाँच पाण्डवों में से एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन कर सुफल प्राप्त किए थे। इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी हुआ।

श्री सूत जी ऋषियों को कहने लगे विधि सहित इस एकादशी व्रत का माहात्म्य तथा जन्म की कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। युधिष्ठिर बोले- हे भगवान कृष्ण ! अब आप मुझे 26 एकादशियों के नाम , व्रत विधि बतलाइये , तथा इस दिन किस देवता का पूजन करना चाहिए, यह भी बताइए। भगवान कृष्ण बोले – हे युधिष्ठिर ! मैं दान, स्नान, तीर्थ , तप इत्यादि शुभ कर्मों से शीघ्र प्रसन्न नहीं होता हूँ परंतु एकादशी व्रत करने वाला मुझे प्राणों के समान प्रिय लगता है ।

कृष्ण जी ने कहा – हे युधिष्ठिर ! ज्येष्ठ या जेठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम निर्जला एकादशी है । इसका व्रत महा फलदायक है। और इस एकादशी का वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवती नन्दन व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान् हैं। तब सर्वज्ञ वेदव्यास जी ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले निर्जला एकादशी व्रत का संकल्प कराया। और कहने लगे- कि इस एकादशी के व्रत में अन्न के साथ साथ जल पीना भी वर्जित है। द्वादशी के दिन स्नान करके पवित्र हो और फूलों से भगवान केशव की पूजा करे। फिर नित्य कर्म समाप्त होने के पश्चात् ब्राह्मणों को भोजन एवं दान आदि देकर अन्त में स्वयं भोजन करें।

कथा:-

वेदव्यास जी की बात सुनकर भीमसेन बोले- परम बुद्धिमान पितामह! मेरी उत्तम बात सुनिये। राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव, ये एकादशी का व्रत पहले से रखते आए हैं और उस दिन ये कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि भीमसेन एकादशी को तुम भी निराहार रहा करो। मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है। अगर उसे अन्न की आहुति न दूँ तो वह मेरे शरीर की चर्बी को चाट जाएगी । शरीर की रक्षा करना मनुष्य का परम धर्म है । अतः आप ऐसा उपाय बतलाइये जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे अर्थात् कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में एक दिन करना पड़े और मन की व्याधियों का नाश करने वाला हो । जिसके करने से 24 एकादशियों का फल मिल जाये और जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ। ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करुँगा।

भीमसेन की बातों को सुनकर वेदव्यास जी बोले – हे भीमसेन! जो भी प्राणी निर्जला एकादशी का व्रत श्रद्धा सहित करता है उसे 24 एकादशियों का फल मिलता है और वह निश्चय ही स्वर्ग को जाता है। इस व्रत में ठाकुर जी का चरणोदिक अर्थात चरणामृत वर्जित नहीं है क्योंकि वह तो अकाल मृत्यु को हरण करने वाला है। अब आगे सुनो! इस व्रत में पितरों के निमित्त पंखा , छाता , कपड़े का जूता , सोना , चाँदी या मिट्टी का घड़ा और फल इत्यादि दान करें। मीठे जल का प्याऊ लगा दें, हाथ में स्मरणी रखें , मुख से “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” द्वादस अक्षरे महामंत्र का जप करें। यही श्रीमद्भागवत पुराण का सार है । इस व्रत के प्रभाव से ध्रुव के प्रथम मास की तपस्या के समान फल मिलेगा। इस दिन श्रद्धा को पूर्ण रखना , नास्तिक का संग न करना , दृष्टि में प्रेम का रस भरना , सबको वासुदेव का रूप समझकर नमस्कार करना किसी के प्रति हिंसा न करना , अपराध करने वाले का दोष क्षमा करना, क्रोध का त्याग करना , सत्य भाषण करना चाहिए। इस दिन जो हृदय में प्रभु की मूर्ति का ध्यान करते हैं और मुख से द्वादश अक्षरे मन्त्र का जाप करते हैं वे इस व्रत के पूर्ण फल को प्राप्त करते हैं ।

इस व्रत में दिन भर भजन करना चाहिये , रात्रि को कृष्णलीला कीर्तन और भगवान श्री हरि विष्णु के नाम जप के सहारे जागरण करना चाहिये । द्वादशी के दिन प्रथम ब्राह्मणों को दान दक्षिणा दें , फिर भोजन खिला कर उनकी परिक्रमा कर लें । अपने पग – पग का फल ब्राह्मणों से , अश्वमेघ यज्ञ के समान हो , वर माँग लें । ऐसी श्रद्धा भक्ति से व्रत करने वाले को कल्याण प्राप्त होता है । जो प्राणी मात्र को वासुदेव की प्रतिमा समझता है , उसको मेरी कलम लाखों प्रणाम के योग कहती है । निर्जला एकादशी का माहात्म्य सुनने से दिव्य चक्षु खुल जाते हैं और प्रभु घूँघट उतार कर मन के मंदिर में प्रकट दिखाई देते हैं। शंख, चक्र, पदम और गदा धारण करनेवाले भगवान श्री हरि विष्णु ने मुझसे कहा था कि यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और निर्जला एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है। इस प्रकार वेदव्यास जी के श्रीमुख से निर्जला एकादशी का महात्म्य जानकर भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया और अनेक सुफल प्राप्त कर अंत में बैकुंठ को चले गए।

व्रत विधि:-

व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर श्री हरि विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और विधि सहित धूप, दीप, चंदन, फूल, फल एवं तुलसी से प्रभु का पूजन करें। इस दिन सर्वप्रथम भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें। पश्चात् ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करे। और फिर पूरे दिन निर्जल उपवास करें। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल मुख में न डाले, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है। इस व्रत में तुलसी का भोग लगाया जाता है। निंदक, चोर, दुराचारी, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी गलती हो जाए तो सूर्य देव की और मुख करके क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए।

फलहार:-

इस दिन कैरी का सागार लेना चाहिए ।

कीर्तन:-

रात्रि में भगवान विष्णु का नाम जप और कीर्तन करें। इस दिन भगवान की मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।

व्रत का समापन:-

द्वादशी के दिन प्रातः भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करके क्षमता अनुसार दान आदि करना चाहिए।

ऐसी धार्मिक मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति मात्र निर्जला एकादशी का व्रत करने से वर्ष भर की एकादशियों का फल पा सकता है। यहाँ तक कि अन्य एकादशी के व्रत भंग होने के दोष भी निर्जला एकादशी के व्रत से दूर हो जाते हैं। स्त्री हो या पुरुष, यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान् पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है। इस प्रकार जो भी इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर बैकुंठ को प्राप्त करता है।

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एकादशी व्रत: आत्मा की शुद्धि का मार्ग

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