एक दिन अकबर ने बीरबल से पूछा, "बीरबल, तुम कुछ ऐसा बताओ, जो दो लोगों को समझ में नहीं आता।"
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बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, "हुजूर, एक बात है जो दो लोगों को समझ में नहीं आती है।"
"वो क्या है?" अकबर ने उत्साह से पूछा।
"हुजूर, दो आदमी थे, जो एक साथ जा रहे थे। रास्ते में एक आदमी ने उनसे पूछा, 'तुम दोनों भाई होंगे क्या?' एक ने उत्तर दिया, 'मैं उसका भाई नहीं हूँ।' दूसरे ने भी उत्तर दिया, 'मैं उसका भाई नहीं हूँ।' फिर उस आदमी ने कहा, 'तो फिर तुम दोनों कौन हो?' दोनों ने मिलकर उत्तर दिया, 'हम दोस्त हैं।'"
अकबर ने यह सुनते ही मुस्कुराया, "यह तो बहुत ही सरल है, बीरबल।"
बीरबल ने उत्साह से कहा, "हुजूर, यह बात उस समय ज्यादा सरल नहीं थी, जब उन्होंने एक दूसरे से पहली बार मिला था। उन्हें एक दूसरे को नहीं जानते थे और उन्हें लगा कि उनसे पूछा जा रहा है कि वे भाई-भतीजे हैं या फिर वे सोचने लगे कि क्या उत्तर दें, क्योंकि वे एक दूसरे को नहीं जानते थे। लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि अगर वे सत्य नहीं बताएंगे तो उन्हें गधे समझा जाएगा। इसलिए उन्होंने सत्य बताया कि वे उसके भाई नहीं हैं। फिर जब उस आदमी ने पूछा कि तो फिर तुम दोनों कौन हो, तो वे साफ़ साफ़ बताए कि वे दोस्त हैं। इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव सत्य बोलना चाहिए।"
अकबर ने बीरबल को तारीफ की, "बहुत अच्छा, बीरबल। तुमने अच्छा समझाया।"
इस तरह अकबर और बीरबल के बीच कई मजेदार वार्ताएं हुए जो उनके दोस्ती को मजबूत बनाती थीं।