Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

जेनेटिक्स इंजीनियरिंग के जनक डॉ. हरगोविंद खुराना जीवन परिचय Biography of Dr. Haragovind Khurana in Hindi



डॉ. हरगोविंद खुराना जीवन परिचय
Biography of Dr. Haragovind Khurana in Hindi 


नाम : डॉ. हरगोविंद खुराना।
जन्म : 9 फरवरी, 1922।
जन्म : रायपूर (जि.मुल्तान, पंजाब)।
पिता : लाला गणपतराय।
शिक्षा : 1945 में M. Sc. और 1948 में PHD।
पत्नी : एस्थर के साथ (1952 में)।

आरम्भिक जीवन :

        हरगोविंद खुराना का जन्म अविभाजित भारत के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) नामक स्थान पर 9 जनवरी 1922 में हुआ था। उनके पिता एक पटवारी थे। अपने माता-पिता के चार पुत्रों में हरगोविंद सबसे छोटे थे। गरीबी के बावजूद हरगोविंद के पिता ने अपने बच्चो की पढ़ाई पर ध्यान दिया जिसके कारण खुराना ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया। वे जब मात्र 12 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया और ऐसी परिस्थिति में उनके बड़े भाई नंदलाल ने उनकी पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा संभाला। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानिय स्कूल में ही हुई। उन्होंने मुल्तान के डी.ए.वी. हाई स्कूल में भी अध्यन किया। वे बचपन से ही एक प्रतिभावान् विद्यार्थी थे जिसके कारण इन्हें बराबर छात्रवृत्तियाँ मिलती रहीं।

        उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से सन् 1943 में बी.एस-सी. (आनर्स) तथा सन् 1945 में एम.एस-सी. (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की। पंजाब विश्वविद्यालय में महान सिंह उनके निरीक्षक थे। इसके पश्चात भारत सरकार की छात्रवृत्ति पाकर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए। इंग्लैंड में उन्होंने लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रॉजर जे.एस. बियर के देख-रेख में अनुसंधान किया और डाक्टरैट की उपाधि अर्जित की। इसके उपरान्त इन्हें एक बार फिर भारत सरकार से शोधवृत्ति मिलीं जिसके बाद वे जूरिख (स्विट्सरलैंड) के फेडरल इंस्टिटयूट ऑव टेक्नॉलोजी में प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ अन्वेषण में प्रवृत्त हुए।

        सन 1960 में उन्हें ‘प्रोफेसर इंस्टीट्युट ऑफ पब्लिक सर्विस’ कनाडा में स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया और उन्हें ‘मर्क एवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया। इसके पश्चात सन् 1960 में डॉ खुराना अमेरिका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑव एन्ज़ाइम रिसर्च में प्रोफेसर पद पर नियुक्त हुए। सन 1966 में उन्होंने अमरीकी नागरिकता ग्रहण कर ली।

        इंग्लैंड में उन्होंने लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रॉजर जे.एस. बियर के देख-रेख में अनुसंधान किया और डाक्टरैट की उपाधि अर्जित की। इसके उपरान्त इन्हें एक बार फिर भारत सरकार से शोधवृत्ति मिलीं जिसके बाद वे जूरिख (स्विट्सरलैंड) के फेडरल इंस्टिटयूट ऑव टेक्नॉलोजी में प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ अन्वेषण में प्रवृत्त हुए।



कार्य :

        चिकित्सक खुराना जी जीवकोशिकाओं के नाभिकों की रासायनिक संरचना के अध्ययन में लगे रहे। नाभिकों के नाभिकीय अम्लों के संबंध में खोज दीर्घकाल से हो रही है, पर डाक्टर खुराना की विशेष पद्धतियों से वह संभव हुआ। इनके अध्ययन का विषय न्यूक्लिऔटिड नामक उपसमुच्चर्यों की अतयंत जटिल, मूल, रासायनिक संरचनाएँ हैं। डाक्टर खुराना इन समुच्चयों का योग कर महत्व के दो वर्गों के न्यूक्लिप्रोटिड इन्जाइम नामक यौगिकों को बनाने में सफल हुये।

        नाभिकीय अम्ल सहस्रों एकल न्यूक्लिऔटिडों से बनते हैं। जैव कोशिकओं के आनुवंशिकीय गुण इन्हीं जटिल बहु न्यूक्लिऔटिडों की संरचना पर निर्भर रहते हैं। डॉ॰ खुराना ग्यारह न्यूक्लिऔटिडों का योग करने में सफल हो गए थे तथा अब वे ज्ञात शृंखलाबद्ध न्यूक्लिऔटिडोंवाले न्यूक्लीक अम्ल का प्रयोगशाला में संश्लेषण करने में सफल हुये। इस सफलता से ऐमिनो अम्लों की संरचना तथा आनुवंशिकीय गुणों का संबंध समझना संभव हो गया है और वैज्ञानिक अब आनुवंशिकीय रोगों का कारण और उनको दूर करने का उपाय ढूँढने में सफल हो सकेंगे।

        सन 1960 में उन्हें ‘प्रोफेसर इंस्टीट्युट ऑफ पब्लिक सर्विस’ कनाडा में स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। डॉक्टर खुराना को अपनी पत्नी से पूर्ण सहयोग मिला। उनकी पत्नी भी एक वैज्ञानिक थीं। और अपने पति के मनोभावों को समझती थीं। कनाडा से खुराना को ‘मर्क एवार्ड’ भी प्राप्त हुआ था। उनकी ख्याति अमेरिका तक पहुंच गई थी। सन 1958 में उनके पास अमेरिका संस्था ‘रॉकफेलर’ का पत्र आया। इस संस्थान ने उन्हें अपने यहां एक अतिथि प्रोफेसर के रूप में बुलाया था। खुराना वहां गए और विज्ञान से संबधित अपने भाषण दिए। संस्था के निदेशक पर उनकी बातों का गहरा असर पड़ा।

        जीन्स का निर्माण कई प्रकार के अम्लों से होता है। खोज के दौरान यह पाया गया कि जिन्स डी.एन.ए. और आर.एन.ए. के संयोग से बनते हैं। अतः इन्हें जीवन की मूल इकाई माना जाता है। इन अम्लों में आनुवंशिकता का मूल रहस्य छिपा हुआ है। खुराना के व्दारा किए गए कृत्रिम जिन्स के अनुसंधान से यह पता चला कि जिन्स मनुष्य की शारीरिक रचना, रंग-रूप और गुण स्वभाव से जुड़े हुए हैं। उनकी ख्याति अमेरिका तक पहुंच गई थी। सन 1958 में उनके पास अमेरिका संस्था ‘रॉकफेलर’ का पत्र आया। इस संस्थान ने उन्हें अपने यहां एक अतिथि प्रोफेसर के रूप में बुलाया था। खुराना वहां गए और विज्ञान से संबधित अपने भाषण दिए। संस्था के निदेशक पर उनकी बातों का गहरा असर पड़ा।


        जिन्स पर यह बात निर्भर करती है कि किस मनुष्य का स्वभाव कैसा है और उसका रंग-रूप कैसा है। माता-पिता को संतान की प्राप्ति उनके जिन्स के संयोग से ही होती है। इसलिए बच्चों में माता-पिता के गुणों का होना स्वाभाविक है। यदि कोई व्यक्ति अपने दोषों को अपनी संतान में नहीं चाहता है तो उसमें विशेष प्रकार के गुण उत्पन्न करना आज के वैज्ञानिक युग में संभव है।

योगदान :

        1960 के दशक में खुराना ने नीरबर्ग की इस खोज की पुष्टि की कि डी.एन.ए. अणु के घुमावदार 'सोपान' पर चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लिओटाइड्स के विन्यास का तरीका नई कोशिका की रासायनिक संरचना और कार्य को निर्धारित करता है। डी.एन.ए. के एक तंतु पर इच्छित अमीनोअम्ल उत्पादित करने के लिए न्यूक्लिओटाइड्स के 64 संभावित संयोजन पढ़े गए हैं, जो प्रोटीन के निर्माण के खंड हैं। 

        खुराना ने इस बारे में आगे जानकारी दी कि न्यूक्लिओटाइड्स का कौन सा क्रमिक संयोजन किस विशेष अमीनो अम्ल को बनाता है। उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि न्यूक्लिओटाइड्स कूट कोशिका को हमेशा तीन के समूह में प्रेषित किया जाता है, जिन्हें प्रकूट (कोडोन) कहा जाता है। उन्होंने यह भी पता लगाया कि कुछ प्रकूट कोशिका को प्रोटीन का निर्माण शुरू या बंद करने के लिए प्रेरित करते हैं।

        जीन्स का निर्माण कई प्रकार के अम्लों से होता है। खोज के दौरान यह पाया गया कि जिन्स डी.एन.ए. और आर.एन.ए. के संयोग से बनते हैं। अतः इन्हें जीवन की मूल इकाई माना जाता है। इन अम्लों में आनुवंशिकता का मूल रहस्य छिपा हुआ है। खुराना के व्दारा किए गए कृत्रिम जिन्स के अनुसंधान से यह पता चला कि जिन्स मनुष्य की शारीरिक रचना, रंग-रूप और गुण स्वभाव से जुड़े हुए हैं।

        
        खुराना ने 1970 में आनुवंशिकी में एक और योगदान दिया, जब वह और उनका अनुसंधान दल एक खमीर जीन की पहली कृत्रिम प्रतिलिपि संश्लेषित करने में सफल रहे। डॉक्टर खुराना अंतिम समय में जीव विज्ञान एवं रसायनशास्त्र के एल्फ़्रेड पी. स्लोन प्राध्यापक और लिवरपूल यूनिवर्सिटी में कार्यरत रहे।

        आनुवांशिक कोड (डीएनए) की व्याख्या करने वाले भारतीय मूल के अमरीकी नागरिक डॉ. हरगोबिंद खुराना को चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize in Physiology or Medicine) दिया गया। खुराना ने मार्शल, निरेनबर्ग और रोबेर्ट होल्ले के साथ मिलकर चिकित्सा के क्षेत्र में काम किया। उन्हें कोलम्बिया विश्वविद्यालय की ओर से 1968 में ही होर्विट्ज़ पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।

        उनके परिवार में पुत्री जूलिया और पुत्र डेव हैं। खुराना का जन्म एकीकृत भारत के पंजाब प्रांत के रायपुर में 1922 में हुआ था। वह इलाका अब पाकिस्तान में है। खुराना को एक ऐसे वैज्ञानिक के तौर पर जाना जाता है जिसने डीएनए रसायन में अपने उम्दा काम से जीव रसायन (बायोकेमेस्ट्री) के क्षेत्र में क्रांति ला दी। विसकोंसिन-मैडिसन विश्वविद्यालय में जीव रसायन के प्रोफेसर असीम अंसारी ने कहा कि विसकोंसिन में 1960 से 1970 में जो काम उन्होंने किया वह नई वैज्ञानिक खोजों और प्रगति को प्रेरित करना जारी रखे हुए है।

        इन्होंने सर अलेक्ज़ेंडर टॉड के तहत केंब्रिज यूनिवर्सिटी (1951) में शिक्षावृत्ति के दौरान न्यूक्लिक एसिड पर अनुसंधान शुरू किया। वह स्विट्ज़रलैंड में स्विस फ़ेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी और ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा (1952-1959) एवं विंस्कौंसिल, अमेरिका में फ़ेलो और प्राध्यापक पदों पर रहें। 1971 में उन्होंने मैसेच्यूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के संकाय में कार्यभार संभाला। विसकोंसिन में खुराना ने अध्यापन कार्य किया था और 1960 से 1970 तक वहां शोध किया था। उसके बाद वह मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में चले गए थे।

        विसकोंसिन में ही खुराना ने अपने साथियों के साथ मिलकर प्रोटीन संश्लेषण के लिए आरएनए कोड के तंत्र पर काम किया था। इसके लिए ही उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें यह सम्मान कॉर्नेल विश्वविद्यालय के रॉबर्ट हॉली और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मार्शल नीरेनबर्ग के साथ दिया गया था। हरगोबिन्द खुराना का निधन 9 नवंबर, 2011 को हुआ था।



This post first appeared on JIONEWSTV, please read the originial post: here

Share the post

जेनेटिक्स इंजीनियरिंग के जनक डॉ. हरगोविंद खुराना जीवन परिचय Biography of Dr. Haragovind Khurana in Hindi

×

Subscribe to Jionewstv

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×