॥ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥
गर्गसंहिता-माहात्म्य
तीसरा अध्याय
राजा प्रतिबाहु के प्रति महर्षि शाण्डिल्य द्वारा गर्गसंहिता के माहात्म्य और श्रवण-विधि का वर्णन
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शाण्डिल्यने कहा- राजन् ! पहले भी तो तुम बहुत से उपाय कर चुके हो, परंतु उनके परिणामस्वरूप एक भी कुलदीपक पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ। इसलिये अब तुम पत्नीके साथ शुद्ध हृदय होकर विधिपूर्वक 'गर्ग- संहिता' का श्रवण करो। राजन् ! यह संहिता धन, पुत्र और मुक्ति प्रदान करनेवाली है। यद्यपि यह एक छोटा-सा उपाय है, तथापि कलियुगमें जो मनुष्य इस संहिता का श्रवण करते हैं, उन्हें भगवान् विष्णु पुत्र, सुख आदि सब प्रकारकी सुख-सम्पत्ति दे देते हैं ॥ १- ३३ ॥
नरेश! गर्गमुनि की इस संहिताके नवाह- पारायणरूप यज्ञसे मनुष्य सद्यःपावन हो जाते हैं उन्हें इस लोकमें परम सुखकी प्राप्ति होती है तथा मृत्युके पश्चात् वे गोलोकपुरीमें चले जाते हैं। इस कथाको सुननेसे रोगग्रस्त मनुष्य रोग समूहोंसे, भयभीत भयसे और बन्धनग्रस्त बन्धनसे मुक्त हो जाता है । निर्धनको धन-धान्यकी प्राप्ति हो जाती है तथा मूर्ख शीघ्र ही पण्डित हो जाता है। इस कथाके श्रवणसे ब्राह्मण विद्वान्, क्षत्रिय विजयी, वैश्य खजानेका स्वामी तथा
१. राजा, २.अमात्य, ३.राष्ट्र, ४.दुर्ग, ५.कोष, ६.दण्ड या बल और ७.सुहृद् — ये राज्यके सात अङ्ग माने गये हैं शूद्र पापरहित हो जाता है। यद्यपि यह संहिता स्त्री- पुरुषोंके लिये अत्यन्त दुर्लभ है, तथापि इसे सुनकर मनुष्य सफलमनोरथ हो जाता है। जो निष्कारण अर्थात् कामनारहित होकर भक्तिपूर्वक मुनिवर गर्गद्वारा रचित इस सम्पूर्ण संहिताको सुनता है, वह सम्पूर्ण विघ्नोंपर विजय पाकर देवताओंको भी पराजित करके श्रेष्ठ गोलोकधामको चला जाता है । ४-७ ॥
राजन् ! गर्गसंहिताकी प्रबन्ध-कल्पना परम दुर्लभ है। यह भूतलपर सहस्त्रों जन्मोंके पुण्यसे उपलब्ध होती है। श्रीगर्गसंहिताके श्रवणके लिये दिनोंका कोई नियम नहीं है। इसे सर्वदा सुननेका विधान है। इसका श्रवण कलियुगमें भुक्ति और मुक्ति प्रदान करनेवाला है। समय क्षणभङ्गुर है; पता नहीं कल क्या हो जाय; इसलिये संहिता - श्रवणके लिये नौ दिनका नियम बतलाया गया है। भूपाल ! श्रोताको चाहिये कि वह ज्ञानपूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए एक बार एक अन्नका या हविष्यात्रका भोजन करे अथवा फलाहार करें। उसे विधानके अनुसार मिष्टान्न, गेहूँ अथवा जौकी पूड़ी, सेंधा नमक, कंद, दही और दूधका भोजन करना चाहिये। नृपश्रेष्ठ ! विष्णुभगवान्के अर्पित किये हुए भोजनको ही प्रसादरूपमें खाना चाहिये। बिना भगवान्का भोग लगाये आहार नहीं ग्रहण करना चाहिये । श्रद्धापूर्वक कथा सुननी चाहिये; क्योंकि यह कथा श्रवण सम्पूर्ण कामनाओंको पूर्ण करनेवाला है । बुद्धिमान् श्रोताको चाहिये कि वह पृथ्वीपर शयन करे और क्रोध तथा लोभको छोड़ दे। इस प्रकार गुरुके श्रीमुखसे कथा सुनकर वह सम्पूर्ण मनोवाञ्छित फल प्राप्त कर लेता है। जो गुरु-भक्तिसे रहित, नास्तिक, पापी, विष्णुभक्तिसे रहित, श्रद्धाशून्य तथा दुष्ट हैं, उन्हें कथाका फल नहीं मिलता ।। ८- १५ ।।
विद्वान् श्रोताको चाहिये कि वह अपने परिचित ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र – सभीको बुलाकर शुभ मुहूर्तमें अपने घरपर कथाको आरम्भ कराये । भक्तिपूर्वक केलाके खंभोंसे मण्डपका निर्माण करे। सबसे पहले पञ्चपल्लवसहित जलसे भरा हुआ कलश स्थापित करे। फिर पहले-पहल गणेशकी पूजा करके तत्पश्चात् नवग्रहोंकी पूजा करे। तदनन्तर पुस्तककी पूजा करके विधिपूर्वक वक्ता की पूजा करे और उन्हें सुवर्णकी दक्षिणा दे। असमर्थ होनेपर चाँदीकी भी दक्षिणा दी जा सकती है। पुनः कलशपर श्रीफल रखकर मिष्टान्न निवेदन करना चाहिये । तत्पश्चात् भक्तिपूर्वक तुलसीदलोंद्वारा भलीभाँति पूजन करके आरती उतारनी चाहिये। राजन् ! कथासमाप्तिके दिन श्रोताको प्रदक्षिणा करनी चाहिये ।। १६- २० ॥
जो परस्त्रीगामी, धूर्त, वकवादी, शिवकी निन्दा करनेवाला, विष्णु-भक्तिसे रहित और क्रोधी हो, उसे 'वक्ता' नहीं बनाना चाहिये। जो वाद-विवाद करने- वाला, निन्दक, मूर्ख, कथामें विघ्न डालनेवाला और सबको दुःख देनेवाला हो, वह 'श्रोता' निन्दनीय कहा गया है। जो गुरु सेवापरायण, विष्णुभक्त और कथाके अर्थको समझनेवाला है तथा कथा सुननेमें जिसका मन लगता है, वह श्रोता श्रेष्ठ कहा जाता है। जो शुद्ध, आचार्य कुलमें उत्पन्न, श्रीकृष्णका भक्त, बहुत-से शास्त्रोंका जानकार, सदा सम्पूर्ण मनुष्योंपर दया करनेवाला और शङ्काओंका उचित समाधान करनेवाला हो, वह उत्तम वक्ता कहा गया है । २१ - २४॥
द्वादशाक्षर मन्त्रके जपद्वारा कथाके विघ्नोंका निवारण करनेके लिये यथाशक्ति अन्यान्य ब्राह्मणोंका भी वरण कराना चाहिये। विद्वान् वक्ताको तीन प्रहर (९ घंटे) तक उच्च स्वरसे कथा बाँचनी चाहिये। कथाके बीचमें दो बार विश्राम लेना उचित है। उस समय लघुशङ्का आदिसे निवृत्त होकर जलसे हाथ-पैर धोकर पवित्र हो ले। साथ ही कुल्ला करके मुख- शुद्धि भी कर लेनी चाहिये। राजन् ! नवें दिनकी पूजा-विधि विज्ञानखण्डमें बतलायी गयी है। उस दिन उत्तम बुद्धिसम्पन्न श्रोता पुष्प, नैवेद्य और चन्दनसे पुस्तककी पूजा करके पुनः सोना, चाँदी, वाहन, दक्षिणा, वस्त्र, आभूषण और गन्ध आदिसे वक्ताका पूजन करे । नरेश ! तत्पश्चात् यथाशक्ति नौ सहस्र या नौ सौ या निन्यानबे अथवा नौ ब्राह्मणोंको निमन्त्रित करके खीरका भोजन कराये। तब कथाके फलकी प्राप्ति होती है।
कथा-विश्रामके समय विष्णु-भक्तिसम्पन्न स्त्री-पुरुषोंके साथ भगवन्नाम कीर्तन भी करना चाहिये। उस समय झाँझ, शङ्ख, मृदङ्ग आदि बाजोंके साथ-साथ बीच-बीचमें जय-जयकार के शब्द भी बोलने चाहिये। जो श्रोता श्रीगर्गसंहिता की पुस्तक को सोने के सिंहासन पर स्थापित करके उसे वक्ता को दान कर देता है, वह मरनेपर श्रीहरिको प्राप्त करता है। राजन् ! इस प्रकार मैंने तुम्हें गर्गसंहिताका माहात्म्य बतला दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो ? अरे, इस संहिताके श्रवणसे ही भुक्ति और मुक्तिकी प्राप्ति देखी जाती है ।। २५-३४ ।।
इस प्रकार श्रीसम्मोहन तत्व में पार्वती-शंकर-संवाद में 'श्रीगर्गसंहिता के माहात्म्य तथा श्रवणविधि का वर्णन' नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ ॥ ३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
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