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संतोषी माता व्रत कथा | Santoshi Mata Vrat Katha

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए संतोषी माता व्रत कथा PDF / Santoshi Mata Vrat Katha PDF in Hindi Download करने के लिए प्रदान करने जा रहे हैं। जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि सनातन हिन्दी धर्मों में अनेकों देवी-देवताएँ हैं जिनकी नित्य-प्रतिदिन बड़े ही श्रद्धा-भाव पूजा की जाती है। इन्हीं देवी देवताओं में से कुछ लोक देवी देवता के रूप में अत्यंत प्रचलित होते हैं।

जिसमें से कि एक माँ संतोषी जी हैं जो कि अत्यंत ही चमत्कारी एवं प्रसिद्ध हैं। संतोषी माता की कृपा प्राप्त करने के लिए उनके भक्त उन्हें अनेकों प्रकार से प्रसन्न करने के उपाय करते हैं जैसे – व्रत, पूजा, आरती आदि। इसीलिए आज इस लेख में हमने संतोषी माता की व्रत कथा व आरती पीडीएफ़ प्रारूप में प्रदान करने के साथ-साथ संतोषी माता व्रत विधि इन हिंदी pdf भी प्रदान की है।

इसे प्राप्त करके आप आसानी से माँ संतोषी जी के व्रत का पालन करते हुए कथा पढ़ सकते हैं एवं आरती करके माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। संतोषी माता जी भगवान श्री गणेश जी की पुत्री हैं। इनके व्रत का पालन शुक्रवार के दिन किया जाता है। इस व्रत में खटाई का सेवन निषेध माना गया है। इसीलिए खटाई का सेवन अथवा स्पर्श व्रत के दिन बिलकुल भी नहीं करना चाहिए।

माँ संतोषी जी को प्रसन्न करके उनके भक्त अपने जीवन में सुख, समृद्धि एवं सौहार्द आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। आप इस लेख में संतोषी माता व्रत की पूजा विधि के साथ-साथ संतोषी माता की आरती और संतोषी माता के व्रत की उद्यापन विधि के बारे में भी आसानी से जान सकते हैं। यह जानकारी आपके लिए अत्यंत ही लाभकारी सिद्ध होगी।

संतोषी माता की व्रत कथा PDF | Santoshi Mata Vrat Katha PDF in Hindi

  • एक बुढ़िया थी और उसका एक ही पुत्र था। बुढ़िया पुत्र के विवाह के बाद बहू से घर के सारे काम करवाती थी लेकिन उसे ठीक से खाना नहीं देती थी। यह सब लड़का देखता पर मां से कुछ भी कह नहीं पाता था। काफी सोच-विचारकर एक दिन लड़का मां से बोला- मां, मैं परदेस जा रहा हूं। मां ने बेटे जाने की आज्ञा दे दी।
  • इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- मैं परदेस जा रहा हूं, अपनी कुछ निशानी दे दे।´बहू बोली- `मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है। यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगी। इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई।
  • पुत्र के जाने बाद सास के अत्याचार और बढ़ते गए। एक दिन बहू दु:खी हो मंदिर चली गई, वहां बहुत-सी स्त्रियां पूजा कर रही थीं। उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं। इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है, स्त्रियों ने बताया- शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लेना तथा सच्चे मन से मां का पूजन करना चाहिए। खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देन। एक वक्त भोजन करना, व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी।
  • माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया, कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया। उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जा अन्य स्त्रियों से बोली- संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है।´ अन्य सभी स्त्रियां भी श्रद्धा से व्रत करने लगीं। बहू ने कहा- हे मां! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी।´
  • अब एक रात संतोषी मां ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं. रुपया भी अभी नहीं आया है। उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही तथा घर जाने की इजाजत मांगी, पर सेठ ने इनकार कर दिया। मां की कृपा से कई व्यापारी आए, सोना-चांदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए। कर्जदार भी रुपया लौटा गए, अब तो साहूकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी।
  • घर आकर पुत्र ने अपनी मां व पत्नी को बहुत सारे रुपये दिए। पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है. उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की सारी तैयारी की, पड़ोस की एक स्त्री उसे सुखी देख ईर्ष्या करने लगी थी। उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर मांगना।
  • उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे खटाई के लिए मचल उठे, तो बहू ने पैसा देकर उन्हें बहलाया। बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली-खटाई खरीदकर खाने लगे। तो बहू पर माता ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे। तो किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली खटाई खाई है तो बहू ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया।
  • संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका टैक्स राजा ने मांगा था। अगले शुक्रवार को उसने फिर विधिवत व्रत का उद्यापन किया। इससे संतोषी मां प्रसन्न हुईं। नौमाह बाद चांद-सा सुंदर पुत्र हुआ। अब सास, बहू तथा बेटा मां की कृपा से आनंद से रहने लगे।

संतोषी माता व्रत पूजा विधि PDF | Santoshi Mata Vrat Vidhi in Hindi PDF

सुख-सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है।

  • सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफ़ाई इत्यादि पूर्ण कर लें।
  • स्नानादि के पश्चात घर में किसी सुन्दर व पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • माता संतोषी के संमुख एक कलश जल भर कर रखें. कलश के ऊपर  एक कटोरा भर कर गुड़ व चना रखें।
  • माता के समक्ष एक घी का दीपक जलाएं।
  • माता को अक्षत, फ़ूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें।
  • माता संतोषी को गुड़ व चने का भोग लगाएँ।
  • संतोषी माता की जय बोलकर माता की कथा आरम्भ करें।

संतोषी माता की आरती

जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता।
अपने सेवक जन की सुख सम्पति दाता ।।

जय सन्तोषी माता….

सुन्दर चीर सुनहरी मां धारण कीन्हो।
हीरा पन्ना दमके तन श्रृंगार लीन्हो ।।

जय सन्तोषी माता….

गेरू लाल छटा छबि बदन कमल सोहे।
मंद हंसत करुणामयी त्रिभुवन जन मोहे ।।

जय सन्तोषी माता….

स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर दुरे प्यारे।
धूप, दीप, मधु, मेवा, भोज धरे न्यारे।।

जय सन्तोषी माता….

गुड़ अरु चना परम प्रिय ता में संतोष कियो।
संतोषी कहलाई भक्तन वैभव दियो।।

जय सन्तोषी माता….

शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही।
भक्त मंडली छाई कथा सुनत मोही।।

जय सन्तोषी माता….

मंदिर जग मग ज्योति मंगल ध्वनि छाई।
बिनय करें हम सेवक चरनन सिर नाई।।

जय सन्तोषी माता….

भक्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै।
जो मन बसे हमारे इच्छित फल दीजै।।

जय सन्तोषी माता….

दुखी दारिद्री रोगी संकट मुक्त किए।
बहु धन धान्य भरे घर सुख सौभाग्य दिए।।

जय सन्तोषी माता….

ध्यान धरे जो तेरा वांछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवण कर घर आनन्द आयो।।

जय सन्तोषी माता….

चरण गहे की लज्जा रखियो जगदम्बे।
संकट तू ही निवारे दयामयी अम्बे।।

जय सन्तोषी माता….

सन्तोषी माता की आरती जो कोई जन गावे।
रिद्धि सिद्धि सुख सम्पति जी भर के पावे।।

जय सन्तोषी माता….

संतोषी माता व्रत उद्यापन विधि | Santoshi Mata Vrat Udyapan Vidhi

  • 16 शुक्रवार विधिवत तरीके से पूजा करने पर ही संतोषी माता व्रत का शुभ फल मिलता है।
  • इसके बाद व्रत का उद्यापन करना जरूरी होता है।
  • उद्यापन के लिए 16वें शुक्रवार यानी अंतिम शुक्रवार को बाकि के दिनों की तरह ही पूजा, कथा व आरती करें।
  • इसके बाद 8 बालकों को खीर-पूरी-चने का भोजन कराएं।
  • भोजन के पश्चात दक्षिणा व केले का प्रसाद देकर उन्हें विदा करें।
  • अंत में स्वयं भोजन ग्रहण करें।
  • इस दिन घर में कोई खटाई ना खाए, ना ही किसी को कुछ भी खट्टा दें।

संतोषी माता व्रत कथा PDF / Santoshi Mata Vrat Katha in Hindi PDF Download करने के लिए नीचे दिये गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करें।



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