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पापमोचनी एकादशी व्रत कथा | Papmochani Ekadashi Vrat Katha

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप पापमोचनी एकादशी व्रत कथा / Papmochani Ekadashi Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिन्दू धर्म में एकादशी का व्रत मनुष्य के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण तथा समस्त मनोकामनाओं कोई पूर्ति करने वाला माना जाता है जिसके माध्यम से भगवान् श्री हरी विष्णु जी की भी कृपा प्राप्त होती है।

एक वर्ष में २४ एकादशी तिथि होती हैं किन्तु यदि किसी वर्ष में अधिकमास होता है तो उस हो वर्ष में एकादशी तिथियों की संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। जो भी वयक्ति पूर्ण विधि विधान से भगवान् विष्णु जी का पूजन करते हुए एकादशी व्रत का पालन करता है वह इस संसार में सभी सुखों को भोगकर वैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा / Papmochani Ekadashi Vrat Katha

शास्त्रों में वर्णित है कि भगवान कृष्ण ने स्वंय पांडु पुत्र अर्जुन को पापमोचिनी एकादशी व्रत का महत्व बताया था। कहा जाता है राजा मांधाता ने लोमश ऋषि से जब पूछा कि अनजाने में हुए पापों से मुक्ति कैसे हासिल की जाती है? तब लोमश ऋषि ने पापमोचनी एकादशी व्रत का जिक्र करते हुए राजा को एक पौराणिक कथा सुनाई थी। कथा के अनुसार, एक बार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी वन में तपस्या कर रहे थे। उस समय मंजुघोषा नाम की अप्सरा वहां से गुजर रही थी। तभी उस अप्सरा की नजर मेधावी पर पड़ी और वह मेधावी पर मोहित हो गईं। इसके बाद अप्सरा ने मेधावी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ढेरों जतन किए।

मंजुघोषा को ऐसा करते देख कामदेव भी उनकी मदद करने के लिए आ गए। इसके बाद मेधावी मंजुघोषा की ओर आकर्षित हो गए और वह भगवान शिव की तपस्या करना ही भूल गए। समय बीतने के बाद मेधावी को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने मंजुघोषा को दोषी मानते हुए उन्हें पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया। जिससे अप्सरा बेहद ही दुखी हुई।

अप्सरा ने तुरंत अपनी गलती की क्षमा मांगी। अप्सरा की क्षमा याचना सुनकर मेधावी ने मंजुघोषा को चैत्र मास की पापमोचनी एकादशी के बारे में बताया। मंजुघोषा ने मेधावी के कहे अनुसार विधिपूर्वक पापमोचनी एकादशी का व्रत किया। पापमोचिनी एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से उसे सभी पापों से मुक्ति मिल गई। इस व्रत के प्रभाव से मंजुघोषा फिर से अप्सरा बन गई और स्वर्ग में वापस चली गई। मंजुघोषा के बाद मेधावी ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया और अपने पापों को दूर कर अपना खोया हुआ तेज पाया था।

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