The Bodhi Poetry
तू जो नहीं है, कुछ भी नहीं है यह ज़िंदगी वीरान सी है घुम मेरी मुस्कान भी है चाँद मेरी खिड़की पे आता ही नहीं उसे मेरा उदास चेहरा भाता ही नहीं अशकों की आँख मिचौलो अक्सर होती है कभी दिल रोता है तो कभी आँख नम होती है ये पंछियों का गुनगुनाना भी अब बेसुरा सा लगता है दिन का उजाला भी ना जाने क्यूँ आँखों में चुबता है तुम जो नहीं तो क्या वजूद है मेरा ये साँसे, ये जिस्म, ये मेरी हर अदा इन सब पे साया है तेरा तेरे बिन जियूँ कैसे रूह तो साथ तेरे रुकसत हुई अब इन हड्डियों में जान भरूँ कैसे ! Tu jo nahi hai, kuch bhi nahi hai Ye zindagi weeran si hai Ghum meri muskaan bhi hai Chaand meri khidhki pe aata hi nahi Usko mera udaas chehra bhaata hi nahi Ashkon ki aankh micholi aksar hoti hai Kabhi dil…
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