प्रस्तावना :
चरित्र ही मनुष्य का सच्चा गहना है। किसी भी व्यक्ति का मान-सम्मान उसके चरित्र के बल पर ही होता है। चरित्रहीन व्यक्ति, चाहे वह कितना भी धनी क्यों न हो, सबकी दृष्टि में घृणा का पात्र होता है। चरित्रहीन व्यक्ति समाज द्वारा बनाए गए नियमों का उल्लंघन करते हुए स्वयं निर्मित नियमों को मानता है, जबकि चरित्रवान व्यक्ति कठिन से कठिन दौर में भी अपनी आत्मा को नहीं बेचता और कष्टों की अग्नि में तपकर खरे सोने की भाँति चमकता रहता है।
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चरित्र के वास्तविक गुण :
सदाचारी व्यक्ति सादगी, त्यागी, विनयशील, हृदय की विशालता, मदृभाषी, आत्मसंयम, परोपकार, सेवा-भाव, नम्रता, कर्तव्यपरायणता आदि गुणों का भंडार होता है। सच्चरित्र व्यक्ति ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ तथा ‘चरित्र ही सबसे बड़ा धन है’ जैसे विचारों वाला होता है। ऐसे गुणों वाला व्यक्ति सदा ही प्रगति की ओर अग्रसर रहता है। मानव जीवन में चरित्र की उपयोगिताः चरित्र का बल बहुत बड़ी ताकत रखता है। चरित्रहीन व्यक्ति के पास कुछ भी शेष नहीं रहता है। किसी विद्वान ने सही ही कहा है, “धन गया कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया, कुछ गया, यदि चरित्र गया सब कुछ चला गया।” यदि व्यक्ति एक बार बदनाम हो जाए तो फिर से किसी की नजरों में नहीं उठ सकता। चरित्र रूपी धन को न तो चोर चुरा सकता है न कोई लूट सकता है। यह तो जितना भी अधिक खर्च किया जाता है, उतना ही बढ़ता जाता है। अच्छा चरित्र ही मनुष्य के व्यक्तित्व का दर्पण होता है।
चरित्रवान व्यक्ति की पहचान :
किसी भी व्यक्ति के चरित्र को दुखों के समय ही आँका जा सकता है। चरित्रवान व्यक्ति निर्धनता में, भुखमरी में, कष्टों में भी घबराते नहीं हैं। वे अपनी चारित्रिक विशेषताओं को नहीं छोड़ते तथा हर मुसीबत का सामना डटकर करते हैं। चरित्रवान व्यक्ति कभी भी अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं होता, वह कायरों की भाँति मुँह नहीं छिपाता तथा देश रक्षा, नारी रक्षा आदि अपना धर्म समझकर करता है। प्रमुख चरित्रवान महापुरुष : महात्मा बुद्ध, महात्मा गाँधी, गुरुनानक, महावीर स्वामी, दयानंद सरस्वती, मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसे महात्माओं को उनकी चारित्रिक विशेषताओं जैसे-संयम, सहनशीलता, क्षमा भाव, दया भाव, मैत्रीभाव आदि ने ही हर युग में श्रद्धेय बनाया है। श्रीराम भगवान ने अपने पिता की आज्ञा से बनवास में जाना स्वीकार किया, ये उनकी चारित्रिक विशेषता ही थी। स्वामी दयानन्द ने अपने हत्यारे को भी क्षमादान दे दिया था। यह उनकी चारित्रिक विशेषता ही थी।
उपसंहार :
सच्चरित्र ही व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारता है, इसे सुन्दर बनाता है। एक चरित्रवान व्यक्ति ही स्वस्थ परिवार, स्वस्थ राष्ट्र तथा स्वस्थ विश्व का निर्माता हो सकता है।
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