* महावीर जयंती*
जैन धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक है ।
यह दिवस महावीर स्वामी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है ,जो की जनकल्याणार्थ मनाया जाता है।
महा वीर जी जैन्थीर्थांकुरों के चौबीसवें गुरु हुए ।
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महावीर स्वामी जन्म से ही बहुत ज्ञानवान थे। महावीर स्वामी का जन्म बिहार के कुण्डग्राम के शत्रिय परिवार में हुआ ,पिता सिद्धार्थ जो अपने प्रदेश के राजा माता त्रिशला का सम्बन्ध राजघरनी था ।
महावीर स्वामी का बचपन सुख सुविधाओंसे पूर्ण था ।
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पिता की स्वर्ग देहवासन के पश्चात 30 वर्ष की आयु में महावीर जी ने संस्यास् ग्रहण कर घोर तप किया।
वैराग्य होने पर घोर तप से महावीर जी को सालवृक्ष के नीचे ऋजुपालिका नदी के शीतल तट पर महावीर जी को ज्ञान सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त हुआ ।
महावीर जी बहुत ही पराक्रमी भी थे जिस करण वह महावीर कहलाये ,इनके बचपन का नाम ‘वर्धमान’ था ।
कैवल्य ज्ञान प्राप्त करने के कारण जो सर्वोच्च ज्ञान है ,महावीर जी ‘ केवलिन’भी कहलाये ।
जैन धर्म अपनी सादगी और पवित्रता और सर्वोच्च ज्ञान के कारण कई स्थानों में अपनी छाप छोड़ चुका था ,और लोकप्रिय भी हो रहा था ।
जैन धर्म सेवा भाव का सदा से ही प्रतीक रहा है ।महावीर काल में भी बहुत सेवा कार्य हुए ,जैसे,
निर्धन वर्ग के लिये ,औषधालय ,
विश्रामशालाएं, पाठशालएं, आदि का निर्माण कराया गया ।
वृक्ष लगवाना, चबूतरों का निर्माण, सड़के बनवाना,जलाशय,बावड़ी आदि कई सेवा के कार्य इस काल में हुऐ।
जैन धर्म के चौबीस तीर्थांकर हुए ।
जिनमे सबसे पहले ऋषभ देव जी हुए, 2,आजिनाथ 3,संमभवनाथ,4,अभिनन्दन 5,सुमितनाथ,6,पाध्यप्रभु,7,सुपार्श्वनाथ,8,चंद्रप्रभु,9,सुविधि, 10,शीतल, 11,श्रेयांश,12,वसुपुज्य 13,विमल,14,अनन्त,15,धर्म,16,शांति,17,कुंथ 18,अर 19,मल्लि 20,मुनि सुब्रत ,21,नेमिनाथ,22,अर्ष्टनेमि,23,पार्श्वनाथ,और चौबीसवें गुरु महावीर स्वामी हुए ।
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