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राम नवमी महत्व: भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा जाता है ?

Ram Navami Katha, Puja, Vidhi, Mantrain in Hindi महा रामनवमी हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है। रामनवमी (Ram Navami) “चैत्र मास शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि” को बड़े हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है, इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी का जन्म उतर प्रदेश के आयोध्या में था। शास्त्रो और ग्रंथो के अनुसार त्रेता युग में असुरों के राजा और महा ग्यानी राजा रावण का संहार करने के लिए भगवान विष्णु को श्री राम का अवतार लेना पढ़ा।

राम नवमी महत्व (Raam Navami Mahatva):

वाल्मीकि रामायण के अनुसार , राम का जन्म (Born of Ram) चैत्र मास की नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में अयोध्या के जो की शब्द वेधी बाढ़ चलने में निपुर्ण राजा दशरथ की प्रथम पत्नी माता कौशल्या के गर्भ से हुआ था।  तब से इस दिन को समस्त भारतवासी रामनवमी (Ram Navami) के रूप में मानते है।

भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा जाता है?

भगवान श्रीराम (Shree Ram) के जीवन से हमें मर्यादा मर्यादा करने का संदेश प्राप्त होता है  मर्यादा का कैसे पालन किया जाता हमे ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ से शिख मिलती है इसलिए के श्री राम (Shree Ram) “मर्यादा पुरुषोत्तम” नाम से जाने गए।

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अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी उन्होंने अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए माता-पिता का बहुमूल्य प्यार छोड़ा, भाइयों का स्नेह छोड़ा, सीता जैसी पत्नी को भी 14 वर्ष वनवास जाने का आदेश दे दिया लेकिन धर्म को नहीं छोड़ा। इन्हीं गुणों से भगवान राम (Bhagwan Ram) युगों-युगों तक भारतीय जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ते आए हैं।

श्री राम नवमी पूजा विधि (Ram Navami Puja Vidhi in Hindi):

रामनवमी (Ram Navami) के दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर उनकी जन्मभूमि अयोध्या नगरी में जबरस्त उत्सव का माहौल बना रहता है। हर साल करोड़ो श्रद्धालु राम नवमी (Ram Navami) के पावन पर्व पर प्रात:काल सरयू नदी में स्नान कर पूजा-अर्चना शुरू करते हैं, तथा दोपहर 12 बजे से पहले उनके जन्मदिन की तैयारी के लिए यह कार्यक्रम रोक दिया जाता है और 12 बजते ही अयोध्या नगरी में राम (Ram) नाम की जय जयकार शुरू हो जाती है।

रामनवमी मंत्र Ram Navami Mantrain in Hindi

श्री रामचन्द्र कृपालु

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम् .
नवकञ्ज लोचन कञ्ज मुखकर कञ्जपद कञ्जारुणम् .

कंदर्प अगणित अमित छबि नव नील नीरज सुन्दरम् .
पटपीत मानहुं तड़ित रुचि सुचि नौमि जनक सुतावरम् .

भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकन्दनम् .
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम् ..

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदार अङ्ग विभूषणम् .
आजानुभुज सर चापधर सङ्ग्राम जित खरदूषणम् ..

इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मनरञ्जनम्
मम हृदयकञ्ज निवास कुरु कामादिखलदलमञ्जनम् ..

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