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मित्र मंडली -85




मित्रों , 
"मित्र मंडली" का  पचासी  वाँ अंक का पोस्ट प्रस्तुत है।इस पोस्ट में मेरे ब्लॉग के फॉलोवर्स/अनुसरणकर्ताओं के हिंदी पोस्ट की लिंक के साथ उस पोस्ट के प्रति मेरी भावाभिव्यक्ति सलंग्न है। पोस्टों का चयन साप्ताहिक आधार पर किया गया है। इसमें दिनांक 27.08.2018  से 02.09.2018 तक के हिंदी पोस्टों का संकलन है।


पुराने मित्र-मंडली पोस्टों को मैंने मित्र-मंडली पेज पर सहेज दिया है और अब से प्रकाशित मित्र-मंडली का पोस्ट 7 दिन के बाद केवल मित्र-मंडली पेज पर ही दिखेगा, जिसका लिंक नीचे दिया जा रहा है : HTTPS://RAKESHKIRACHANAY.BLOGSPOT.IN/P/BLOG-PAGE_25.HTML मित्र-मंडली के प्रकाशन का उद्देश्य मेरे मित्रों की रचना को ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक पहुँचाना है। आप सभी पाठकगण से निवेदन है कि दिए गए लिंक के पोस्ट को पढ़ कर, टिप्पणी के माध्यम से अपने विचार जरूर लिखें। विश्वास करें ! आपके द्वारा दिए गए विचार लेखकों के लिए अनमोल होगा। 
प्रार्थी 
राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

मित्र मंडली -85    
(नोट : मेरे कई ब्लॉग अनुसरणकर्ता  मित्र का पोस्ट जो मुझे बहुत अच्छा लगता है परन्तु मैं उसे मित्र मंडली में सम्मलित नहीं करता क्यूंकि उनकी रचना पहले से ही लोकप्रिय होती है और समयाभाव के कारण मैं उनके पोस्ट पर टिप्पणी  भी नहीं कर पाता हूँ, इसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।), 

इस सप्ताह के पाँच रचनाकार 

मिलिए मित्र मंडली के नई  सदस्या अभिलाषा जी  से 

स्वभाव मेरा

अभिलाषा चौहान जी 

"सदियों से परम्परा, मान-मर्यादा  और संस्कार के नाम पर स्त्री को दोयम दर्जे  का जीवन जीने को मजबूर किया जाता रहा है और अभी तक किया जा रहा है। इसी के खिलाफ एक बुलंद आवाज़ इस रचना के माध्यम से स्त्री चेतना को जागृत करने में पूर्ण सक्षम है।"

जैसे मैं हूँ वैसे तुम कौन हो?

रिंकी राउत  जी 

"इस भाग-दौड़ की ज़िन्दगी में, एक उम्र के बाद जब अपने लिए वक्त मिलता है तब जाकर ऐसे विचार आते हैं, परन्तु मेरे विचार से जब तक मैं और तुम रहेंगे तब तक उत्तर मिलना मुश्किल है। जीवन को सफल बनाने के क्रम में उठाया गया यह पहला कदम स्वागत योग्य है। सुंदर प्रस्तुति। "

स्वर खो देती हूँ

श्वेता सिन्हा जी 

"अपने अस्तित्व के अहमियत को निरंतर सूक्ष्म अवलोकन से अपने आप को जानने की चाहत की कड़ी में   एक और सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति,  और यहाँ मुझे लिखने में कोई अतिश्योक्ति नहीं नज़र आती कि स्त्री का अस्तित्व सभी जीवों का आधार है। यह पुरुषों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है कि स्त्री अपनी संवेदनाएँ ना खो दें।  "

संघर्ष

रवींद्र सिंह यादव जी 

"रचनाकारों को सत्य के मार्ग पर चलने को प्रेरित करती एवं अपनी कलम से असत्य को सदैव चुनौती देने कि संकल्प लेती सुंदर रचना।" 

तुम मुझे यूँ समझ ना पाओगे

 शशि गुप्ता जी 

"मैंने बच्चों को ही नहीं अधेड़ पुरुष और महिलाओं को भी कूड़े से कुछ ढूंढते अक्सर देखा है और वास्तव में जब भी उनसे नज़रें मिली तो उनकी आँखे अक्सर मुझ से कहती है बाबू "तुम मुझे यूँ समझ ना पाओगे"  साहिर लुधियानवी जी की एक गीत की कुछ पंक्ति याद आ रही है :

हर एक जिस्म घायल, हर एक रुह प्यासी

निगाहो में उलझन, दिलों मे उदासी
ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है। 
संवेदना से भरी प्रस्तुति। 


आशा है कि मेरा प्रयास आपको अच्छा लगेगा । आपका सुझाव अपेक्षित है। अगला अंक 10-09-2018  को प्रकाशित होगा। धन्यवाद ! अंत में ....

मेरी प्रस्तुति  :

1.MEME SERIES - 14







2.आंनदपुर साहिब की यात्रा - भाग 2



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