National Register of Citizens NRC
आजादी के बाद से ही देश में बाहर से आने वाले लोगों की संख्या में पिछले कुछ सालों में काफी इजाफा हुआ है। इनमें पाकिस्तान से आए हिंदु शरणार्थी, तिब्बत से मुस्लिम, म्यांमार से आए रोंहिग्या मुस्लिम और बंग्लादेशी है। देश में बाहरी लोगों के आने का मतलब केवल देश की जनंसख्या में इजाफा होना नहीं है।
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बल्कि कई बार बाहरी लोगों का देश में परवेश आंतकवाद, हिंसा को भी बढ़ावा देता है। क्योंकि शणार्थियों के बीच अक्सर देश में विरोध और आक्रोश फैलाने वाले आतंकवादी भी आराम से घुस आते है।
देश में एक व्यवस्था बनाने के लिए ताकि देश के लोगों और दूसरे देशों से आए शरणार्थियों को उनका हक मिल सकें इसके लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के जरिए लोगों की जनगणना की जाती है। हालांकि ये जनगणना केवल भारत के असम राज्य में ही की जाती है। चलिए आपको एनआरसी – NRC के बारे में बताते है और ये भी कि असम में इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई।
जानिए आखिरी क्या है ‘नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस’ एनआरसी – Information of National Register of Citizens
दरअसल रिपोर्टस के अनुसार अंग्रजों ने साल 1905 में बंगाल के दो हिस्से कर असम और पूर्वी बंगाल का निर्माण किया। पूर्वी बंगाल आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान और बाद में बंग्लादेश बना। असम में चाय की खेती की वजह से बाहर से लोग यहां काम की तलाश मे चाय बगानों में काम करने आते रहते थे। जिस वजह से असम के लोगों को इसे काफी परेशानी होती थी और शिकायत रहती थी बाहर से कोई भी उनके वहां आ जाता है।
आजादी के बाद पाकिस्तान के भारत से अलग होने के बाद पूर्व में ये खतरा बना रहा कि कहीं असम भी पूर्वी पाकिस्तान में अलग न मिल जाए। आजादी के बाद असम में गोपीनाथ बार्डोली की अगुवाई में असम में विद्रोह हुआ।
असम अपने आपको बचाने में तो कामयाब हो गया लेकिन असम में बाहरी लोगों का आना बंद नहीं हुआ। जिसे देखते हुए साल 1951 में पहली बार नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन – National Register of Citizens बना था।
एनआरसी – NRC को अगर आसान शब्दों में कहे तो राज्य में गैर कानूनी तौर से रह रहे विदेशी लोगों की पता करना एनआरसी कहलाता है।
असम में सबसे ज्यादा बाहरी लोगों का आगमन साल 1971 में हुआ। जब पूर्वी पाकिस्तान पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बना।
रिपोर्टस के अनुसार बांग्लादेश के बने से पहले पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान की दमनकारियों नीतियों से परेशान होकर करीब 10 लाख शरणार्थी असम आए लेकिन उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने शरणार्थियों को ये कहकर जाने के लिए कहा कि शरणार्थी चाहे किसी भी धर्म का क्यों ना हो उसे अपने देश लौटना ही पड़ेगा।
दरअसल इंदिरा गाँधी का कहना था कि पूर्वी पाकिस्तान से आए रिफ्यूजियों के कारण देश पर बोझ बढ़ा है साथ ही देश की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ रहा है। जिसके चलते वो इन्हें यहां रखने का बोझ नहीं उठा सकते।
हालाकिं भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से अलग करने में पूर्वी पाकिस्तान का साथ दिया और पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश बन जाने के बाद ज्यादातर शरणार्थी अपने देश वापस चले गए। लेकिन रिफ्यूजियों का पता लगने के लिए एनआरसी को जारी रखा गया।
एनआरसी की गणना में ही इस साल असम में 3.29 करोड़ में से केवल 2.89 करोड़ लोगों का नाम ही शामिल था यानी की आकड़ो के अनुसार 40 लाख बाहरी थे जिस वजह से इस मुद्दे को लेकर काफी विवाद भी उठा था जिस पर असम सरकार ने सफाई देते हुए कहा कि जिन लोगों का नाम लिस्ट में शामिल नहीं है उन्हें अपनी बात रखने के लिए 1 महीने का समय दिया जाएगा।
भारत में शरणार्थियों की गणना का मतलब ये नही है कि भारत सभी को अपने लिए खतरा मानता है बल्कि एनआरसी इस प्रक्रिया के जरिए सरकार केवल इस बात का पता लगाने की कोशिश करती है कि कही कोई हमारे देश में गैर कानूनी रुप से तरह नहीं रह रहा है क्योंकि गैर कानूनी रुप से आने वाले लोग देश की सुरक्षा में बाधा बन सकते है।
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