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जावेद अख़्तर की कुछ कवितायेँ | Javed Akhtar Poetry

जावेद अख़्तर यह नाम देश का बहुत जाना माना नाम हैं। आज ऐसा कोई व्यक्ति नहीं की जिन्हें जावेद अख़्तर पता नहीं। वह कवी, शायर, फिल्मों के गीतकार और पटकथा लेखक हैं। उनके गानों के साथ साथ उन्ही की लिखी कवितायेँ भी बहुत मशहूर हैं। आज हम उन्हीं की कुछ चुनिंदा कवितायेँ – Javed Akhtar Poetry पढेंगे।

जावेद अख़्तर की कुछ कवितायेँ – Javed Akhtar Poetry

Javed Akhtar Poetry 1

“हर ख़ुशी में कोई कमी सी है।”

हर ख़ुशी में कोई कमी सी है।
हँसती आँखों में भी नमी सी है।
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था।
रात की नफ़्ज़ भी थमी सी है।
किसको समझायेँ किसकी बात नहीं।
ज़हन और दिल में फिर ठनी सी है।
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई।
गर्द इन पलकों पे जमी सी है।
कह गए हम किससे दिल की बात।
शहर में एक सनसनी सी है।
हसरतें राख हो गईं लेकिन।
आग अब भी कहीं दबी सी है।

Javed Akhtar Poetry 2

“अपने होने पर मुझको यकीन आ गया”

अपने होने पर मुझको यकीन आ गया।
पिघले नीलम से बहता हुआ ये समां,
नीली नीली सी खामोशियाँ।
ना कहीं हैं जमीन, ना कहीं आसमां,
सरसराती हुई तन्हाईयाँ, पत्तियां।
कह रहीं हैं की बस एक तू हो यहाँ,
सिर्फ़ में हूँ,
मेरी सांसे हैं और मेरी धड़कने,
ऐसी गहराइयाँ, ऐसी तनहाइयाँ।
और मैं सिर्फ मैं,
अपने होने पर मुझको यकीन आ गया।

Javed Akhtar ki Kavita 3

“तुमको देखा तो ये ख़याल आया”

तुमको देखा तो ये ख़याल आया,
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया!
आज फिर दिल ने एक तमन्ना की,
आज फिर दिल को हमने समझाया!
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे,
हमने क्या खोया, हमने क्या पाया!
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते,
वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया!

Javed Akhtar Poem 4

“ये जाने कैसा राज़ है”

इक बात होंठों तक है जो आई नहीं,
बस आँखों से हैं झांकती
तुमसे कभी, मुझसे कभी,
कुछ लफ्ज हैं वो मांगती,
जिनको पहेन के होंठों तक आ जाएँ वो,
आवाज़ की बाहों में बाहें डालके इठलाये वो
लेकिन जो यह इक बात हैं
एहसास ही एहसास है,
खुशबू सी है जैसे हवा मैं तैरती,
ख़ुशबू जो भी आवाज हैं,
जिसका पता तुमको भी हैं,
जिसकी खबर मुझको भी हैं
दुनिया से भी छुपता नहीं
यह जाने कैसे राज़ हैं।

Javed Akhtar Poem 5

“दिल आखिर तू क्यों रोता है”

जब जब दर्द का बादल छाया
जब ग़म का साया लहराया
जब आंसू पलकों तक आया,
जब यह तन्हां दिल घबराया
हम ने दिल को यह समझाया
आखिर दिल तू क्यों रोता हैं?
दुनिया में यूँ ही होता हैं,
यह जो गहरे सन्नाटे हैं,
वक्त ने सबको ही बनाते हैं
थोडा गम हैं सबका किस्सा
थोड़ी धुप हैं सबका हिस्सा
आँखे तेरी बेकार ही नम हैं
हर पल एक नया मौसम हैं
क्यूँ तू ऐसे पल खोता हैं
दिल आखिर तू क्यूँ रोता हैं

Javed Akhtar Poem 6

“तो जिंदा हो तुम”

दिलों में तुम अपनी बेताबियां लेके चल रहे हो,
तो जिंदा हो तुम!
नज़र में अपनी ख़्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो,
तो जिंदा हो तुम!
हवा के झोंकों के जैसे आज़ाद रहना सिखों
तुम एक दरियाँ के जैसे, लहरों में बहाना सीखो
हर एक लम्हे से तुम मिलो खोले अपनी बाहें
हर एक पल एक नया समा देखियें
जो अपनी आँखों में हैरानियाँ लेके चल रहे हो
तो जिंदा हो तुम!
दिलों में तुम अपनी बेताबियां लेके चल रहे हो
तो जिंदा हो तुम

Javed Akhtar Poem 7

“दर्द अपनाता है पराए कौन”

दर्द अपनाता है पराए कौन
कौन सुनता है और सुनाए कौन

कौन दोहराए वो पुरानी बात
ग़म अभी सोया है जगाए कौन

वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुख झेले आज़माए कौन

अब सुकूँ है तो भूलने में है
लेकिन उस शख़्स को भुलाए कौन

आज फिर दिल है कुछ उदास उदास
देखिये आज याद आए कौन।

Javed Akhtar Poem 8

“मेरा आँगन”

मेरा आँगन
कितना कुशादा कितना बड़ा था
जिसमें
मेरे सारे खेल
समा जाते थे
और आँगन के आगे था वह पेड़
कि जो मुझसे काफ़ी ऊँचा था
लेकिन
मुझको इसका यकीं था
जब मैं बड़ा हो जाऊँगा
इस पेड़ की फुनगी भी छू लूँगा
बरसों बाद
मैं घर लौटा हूँ
देख रहा हूँ
ये आँगन
कितना छोटा है
पेड़ मगर पहले से भी थोड़ा ऊँचा है

Javed Akhtar Poem 9

“ये आंसू क्या है”

ये आंसू क्या गवाह है, मेरी दर्द-मंदी का, मेरी इंसान दोस्ती का
ये आंसू क्या सबूत है मेरी ज़िंदगी में खुलूस की एक रौशनी का
ये आंसू क्या ये बता रहा है के मेरे सीने में एक हस्ताज़ दिल है
जो कि किसी की दिल दोज़ दास्तां जो सुनी तो सुन के तड़प उठा है

पराए शोलों में जल रहा है, पिघल रहा है
मगर मैं फिर ख़ुद से पूछता हूं, ये दास्तां तो अभी सुनी है
ये आंसू भी क्या अभी ढला है, ये आंसू क्या मैं ये समझूं पहले कहीं नहीं था
मुझे तो शक़ है के ये कहीं था, ये मेरे दिल और मेरी पलकों के दरमियां एक जो फ़ासला है
जहां ख़्यालो के शहर बसते हैं और ख़्वाबों की तुरबतें हैं
जहां मोहब्बत के उजड़े बागों में तलख़ियों के बबूल हैं और कछ नहीं है

जहां से आगे हैं उलझनों के घनेरे जंगल, ये आंसू शायद बहुत दिनों से वहीं छुपा था
जिन्होंने इसको जन्म दिया था, वो रंज तो मसलेहत के हाथों न जाने कब क़त्ल हो गए थे

तो करता फिर किसपे नाज़ आंसू, के हो गया बे-जवाज़ आंसू
यतीम आंसू
यसीर आंसू

न मोद बर था, न रास्तों ही से बा-ख़बर था
तो चलते चलते ठिठक गया था, झिझक गया था

इधर से आज एक किसी के ग़म की कहानी का कारवां जो गुज़रा
यतीम आंसू ने जैसे जाना, कि इस कहानी ही सरपरस्ती मिले तो मुमकिन है राह पाना

तो इक कहानी की उंगली थामें, उसी के गम को रूमाल करता
उसी के बारे में झूठे सच्चे सवाल करता
ये मेरी पलकों तक आ गया है।।।

Javed Akhtar Poem 10

“अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना”

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना
मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं
ये हसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना
प्‍यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्‍म निभाने के लिए मत आना

Javed Akhtar Poem 11

“आप भी आइए हमको भी बुलाते रहिए”

आप भी आइए हमको भी बुलाते रहिए
दोस्‍ती ज़ुर्म नहीं दोस्‍त बनाते रहिए।
ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको
ज़ख्‍म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाएँ भी,
ख़्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
शक्‍ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
कभी बन जाएगी तसवीर बनाते रहिए।

Javed Akhtar Poem 12

“कभी यूँ भी तो हो, दरिया का साहिल हो”

कभी यूँ भी तो हो
दरिया का साहिल हो
पूरे चाँद की रात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
परियों की महफ़िल हो
कोई तुम्हारी बात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें
जब घर से तुम्हारे गुज़रें
तुम्हारी ख़ुश्बू चुरायें
मेरे घर ले आयें
कभी यूँ भी तो हो
सूनी हर मंज़िल हो
कोई न मेरे साथ हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
ये बादल ऐसा टूट के बरसे
मेरे दिल की तरह मिलने को
तुम्हारा दिल भी तरसे
तुम निकलो घर से
कभी यूँ भी तो हो
तनहाई हो, दिल हो
बूँदें हो, बरसात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो

Javed Akhtar Poem 13

“तमन्‍ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ”

तमन्‍ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
मुझे गम है कि मैने जिन्‍दगी में कुछ नहीं पाया
ये ग़म दिल से निकल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
ये दुनिया भर के झगड़े, घर के किस्‍से, काम की बातें
बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

Javed Akhtar Poem 14

“यही हालात इब्तदा से रहे”

यही हालात इब्तदा से रहे
लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे
बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे
इन चिराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे
बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी
तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे
उसके बंदों को देखकर कहिये
हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे
ज़िन्दगी की शराब माँगते हो
हमको देखो कि पी के प्यासे रहे

Javed Akhtar Poem 15

“हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है”

हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है
हँसती आँखों में भी नमी-सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नब्ज़ भी थमी-सी है
किसको समझायें किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई
गर्द इन पलकों पे जमी-सी है
कह गए हम ये किससे दिल की बात
शहर में एक सनसनी-सी है
हसरतें राख हो गईं लेकिन
आग अब भी कहीं दबी-सी है

Read:

  • Rabindranath Tagore Poems
  • Mahadevi Verma Poems
  • Motivational Poems
  • Hindi Poets

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