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कर्नाटक राज्य का इतिहास और जानकारी | Karnataka History Information

Karnataka – कर्नाटक दक्षिण भारत का राज्य है, जिसकी राजधानी बैंगलोर है। कर्नाटक भारत का छठा सबसे बड़ा राज्य है। यह बेलगौम से उत्तर में और मंगलौर के दक्षिण तक फैला हुआ है। आपको यहाँ बहुत से नारियल के पेड़ और सुंदर समुद्र तट और घाटियाँ और खेत देखने मिलते है।

कर्नाटक राज्य का इतिहास और जानकारी – Karnataka History Information

कर्नाटक का प्राचीन इतिहास पीलेओलिथिक संस्कृति से जुड़ा हुआ रहा है, जिनके हाथो में कुल्हाड़ी हुआ करति थी। प्राचीन कर्नाटक और सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास 3300 BCE पुराना है।

BCE की तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक के मौर्य साम्राज्य में शामिल होने से पहले कर्नाटक का ज्यादातर भाग नंदा साम्राज्य का भाग था। चार शताब्दियों तक यहाँ सातवाहन ने शासन किया और इससे कर्नाटक के ज्यादातर भागो का नियंत्रण उन्होंने अपने हाथो में ले लिया।

सातवाहन के गिरते ही, पडोसी कदंबा और पश्चिमी गंगा साम्राज्य उगम हो गया और उन्होंने अपनी स्वतंत्र राजनितिक पहचान स्थापित की। कदंबा साम्राज्य की स्थापना मयूर शर्मा ने की, जिसकी राजधानी वाराणसी थी। पश्चिमी गंगा साम्राज्य को तलाकड़ के साथ राजधानी के रूप में गठित किया गया।

इतिहासकारों की जानकारी के अनुसार शासन प्रबंध में कन्नड़ भाषा का प्रयोग करने वाला यह पहला साम्राज्य था। इन साम्राज्यों के बाद शाही कन्नड़ साम्राज्य जैसे बादामी चालुक्य, मान्यखेतांड राष्ट्रकूट साम्राज्य और पश्चिमी चालुक्य साम्राज्यों ने डेक्कन के विशाल भागो पर शासन किया और कर्नाटक को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया।

पश्चिमी चालुक्य ने वास्तुकला और कन्नड़ साहित्य की अद्वितीय कला को संरक्षित किया, जो 12 वी शताब्दी में होयसला कला के नाम से जाने जानी लगी। वर्तमान दक्षिणी कर्नाटक (गंगावड़ी) के ज्यादातर भाग पर 11 वी शताब्दी में चोला साम्राज्य ने कब्ज़ा कर रखा था। 12 वी शताब्दी में होयसला साम्राज्य के आने से पहले चोला और होयसला आपस में क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के लिए लड़ रहे थे।

पहली सहस्त्राब्दी के बाद ही होयसला को क्षेत्र में शक्तियाँ मिल गयी। इस समय साहित्य निखरा हुआ था, जिससे विशेष कन्नड़ साहित्य का उगम भी हुआ और वास्तुकला की वेसरा स्टाइल में मूर्तियों और मंदिरों का निर्माण किया जाने लगा।

होयसला साम्राज्य के विस्तार में वर्तमान आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ भाग भी शामिल हो चूका था। 14 वी शताब्दी के शुरू में हरिहर और बुक्का राय ने मिलकर वर्तमान बेल्लारी जिले की तुंगभद्रा नदी के तट पर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की और होसपत्ताना (बाद में इसका नाम विजयनगर रखा गया) को अपने राज्य की राजधानी बनाया। दक्षिण भारत में मुस्लिम शासको के खिलाफ यह साम्राज्य बांध की तरह खड़ा हुआ और तक़रीबन 2 शताब्दी तक राज्य का नियंत्रण इन्ही के हाथ में था।

1565 में जब विजयनगर साम्राज्य तालीकोटा के युद्ध में इस्लामिक सल्तनत के आगे गिर गया तो कर्नाटक और दक्षिण भारत को मुख्य भौगोलिक बदलाव का सामना करना पड़ा। बीदर के बहमानी सल्तनत की मृत्यु के बाद बीजापुर सल्तनत का उगम हुआ और जल्द ही डेक्कन का नियंत्रण उन्होंने अपने हाथ में ले लिया, बाद में 17 वी शताब्दी में मुघलो द्वारा इन्हें पराजित किया गया।

बहमानी और बीजापुर शासक उर्दू और पर्शियन साहित्य और इंडो-सरसनिक वास्तुकला को बढ़ावा दे रहे थे। उस समय गोल गुम्बज़ उनकी वास्तुकला का मुख्य हिस्सा बन चूका था। 16 वी शताब्दी के समय कोकणी हिंदू कर्नाटक स्थानांतरित हो गये। जबकि 17 वी और 18 वी शताब्दी के समय गुआन कैथोलिक उत्तर कनाडा और दक्षिण कनाडा में स्थानांतरित हो गये। इसका मुख्य कारण पुर्तगालियो द्वारा ज्यादा टैक्स वसूल करना और खाने की कमी था।

इसके बाद हैदराबाद के निज़ाम, मराठा साम्राज्य, ब्रिटिश और मैसूर साम्राज्य के लोगो ने उत्तरी कर्नाटक पर राज किया। और विजयनगर साम्राज्य में अंतिम शासक कृष्णराज वोदेयार द्वितीय की मृत्यु के बाद राज्य पूरी तरह से आज़ाद हो गया। बाद में मैसूर आर्मी के कमांडर-इन-चीफ हैदर अली ने क्षेत्र का नियंत्रण अपने हाथ ले लिया। उनकी मृत्यु के बाद वहाँ उनका बेटा टीपू सुल्तान आकर बस गया।

लेकिन चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गयी और परिणामस्वरूप 1799 में मैसूर को ब्रिटिश राज में शामिल कर लिया गया। बाद में मैसूर साम्राज्य को पुनः वोडेयार में शामिल कर लिया गया और ब्रिटिश राज में मैसूर प्रांतीय राज्य बना रहा।

1857 के भारतीय विद्रोह से पहले 1830 में कर्नाटक के प्रांतीय राज्य पर बहुत से शासको ने राज किया। जबकि कित्तूर पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1848 में ही कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद सुपा, शोरापुर, नारगुडा, बागलकोट और दान्डेली के विद्रोह का उगम हुआ।

इन विद्रोह के परिणामस्वरुप ही 1857 के भारतीय विद्रोह की शुरुवात हुई, जिसका नेतृत्व मुन्दार्गी भीमराव, भास्कर राव भावे, हलागली बेदास, राजा वेंकटप्पा नायका और दुसरे नेताओ ने मिलकर किया।

19 वी शताब्दी के अंत में आज़ादी के अभियान ने आवेग प्राप्त कर लिया और 20 वी शताब्दी में कर्नाड सदाशिव राव, अलुरु वेंकट राय, एस। निजलिंगप्पा, कंगाल हनुमंथिया, नित्तूर श्रीनिवास राव और दुसरे स्वतंत्रता सेनानियों ने इस अभियान को आगे बढाया।

भारत की आज़ादी के बाद महाराजा जयचामा राजेन्द्र वोड़ेयार ने अपने साम्राज्य को भारत में शामिल करने की मंजूरी दे दी। 1950 में मैसूर को भारतीय राज्य बनाया गया और 1975 तक भूतपूर्व महाराजा को राज्यप्रमुख बनाया गया। एकीकरण अभियान की मांग के बाद कोडगु और कन्नड़ बोलने वाले क्षेत्र मद्रास, हैदराबाद और बॉम्बे को राज्य पुनर्निर्माण एक्ट, 1956 के तहत मैसूर राज्य में सम्मिलित कर लिया गया। बाद में 17 साल बाद 1973 में राज्य का नाम बदलकर कर्नाटक रखा गया।

कर्नाटक के पर्यटन स्थल – Tourist places in Karnataka

कर्नाटक का समुद्र तट काफी विशाल तों नही लेकिन यह भारत के सबसे सुंदर समुद्रो तटो का घर है। यहाँ के कुछ प्रसिद्ध समुद्र तटो में करवार, गोकर्ण, मुरुदेश्वर, मालपे उल्लाल और मंगलौर शामिल है।

कर्नाटक राज्य की भाषा – Language of Karnataka

कर्नाटक राज्य की अधिकारिक भाषा कन्नड़ है और साथ ही उर्दू, तेलगु, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, कोकणी और हिंदी शामिल है। ज्यादातर शिक्षित लोगो द्वारा अंग्रेजी और हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है।

कर्नाटक राज्य का सांस्कृतिक जीवन – Cultural life of the state of Karnataka

कर्नाटक के पास समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है, जो सतत विविध साम्राज्यों के योगदान से आगे बढती रही है। कर्नाटक के साहित्य, वास्तुकला, लोक-साहित्य, संगीत, चित्रकला और दूसरी कलाओ का प्रभाव काफी लोगो पर पड़ा है। मैसूर से 90 किलोमीटर की दुरी पर बसे श्रावणबेला गाँव में प्राचीन इमारते और स्मारक बने हुए है। यहाँ पर मौर्य साम्राज्य की विशेष वास्तुकला भी देखने मिलती है। साथ ही 10 वी शताब्दी के जैन संत बाहुबली के पत्थरो की मूर्ति भी यहाँ बनी हुई है। चालुक्य (543-757 CE) और पल्लव (चौथी से नौवी शताब्दी) साम्राज्य का प्रभाव आज भी हमें यहाँ दिखाई देता है।

कर्नाटक के धर्म – Religion of Karnataka

पहली सहस्त्राब्दी के समय बुद्ध धर्म कर्नाटक के कुछ भागो जैसे गुलबर्गा और बनावसी का सबसे प्रसिद्ध धर्म था। कर्नाटक में तिब्बती शरणार्थी शिविर भी है। एतिहासिक सूत्रों के अनुसार प्राचीन समय में यहाँ ज्यादातर लोग बुद्ध धर्म को मानते थे और इसके प्रमाण हमें प्राचीन अभिलेखों से मिल जाते है।

कर्नाटक के महोत्सव – Festival of Karnataka

मैसूर दशहरा का आयोजन नाडा हब्बा के रूप में किया जाता है और यही मैसूर का मुख्य महोत्सव है। कर्नाटक के दुसरे महोत्सवो में उगाडी (कन्नड़ नव वर्ष), मकर संक्रांति, गणेश चतुर्थी, नागपंचमी, बसवा जयंती, दीपावली और रमजान शामिल है।

भारत देश हमेशा से ही समृद्ध रहा हैं यहाँ के हर राज्य की कुछ अलग ही पहचान हैं। यहाँ के हर राज्य में हर चीज में विविधता हैं फिर चाहे वो भाषा में हो या संस्कृति में। लेकिन विविध जाती धर्म के सारे लोग यहाँ प्रेम भाव से एक साथ रहते हैं। वैसे कर्नाटक राज्य पर बहुत से शासकों ने राज किया और कई ऐतिहासिक स्मारकों की देन कर्नाटक राज्य को दी। ऐसे स्मारकों को पर्यटक प्रेमियों ने एक बार जरुर भेट देनी चाहियें।

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