खानजादा मिर्ज़ा खान अब्दुल रहीम खान-ए-खाना सामान्यतः रहीम – Rahim के नाम से जाने जाते है। मुग़ल शासक अकबर के शासनकाल में जन्मे वे एक कवी थे। अकबर के दरबार के नौरत्नो में से वे एक थे। रहीम अपने उर्दू दोहों और एस्ट्रोलॉजी (ज्योतिषी) पर लिखी गयी किताब के लिए भी जाने जाते है। खाने-खाना का गाँव भारत के पंजाब राज्य में नवांशहर जिले में है, जिस गाँव के नाम बाद में उनके नाम पर ही रखा गया था।
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अब्दुल रहीम का जन्म लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान में) बैरम खान के बेटे के रूप में हुआ था।
गुजरात के पाटन में बैरन खान की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी पहली पत्नी और छोटे रहीम को दिल्ली से अहमदाबाद सुरक्षा पूर्वक लाया गया और अकबर के शाही दरबार में पेश किया गया, जिन्होंने बाद में उसे ‘मिर्ज़ा खान’ का शीर्षक दिया था।
बाद ,ए बैरम खान की दूसरी पत्नी, सलीमा सुल्तान बेगम (रहीम की बड़ी अम्मीजान) ने उनके चचेरे भाई, अकबर से निगाह कर लिया। जिसने इसके बाद अब्दुल रहीम को दरबार में खान-ए-खाना बनाया और इसके बाद अब्दुल रहीम अकबर के शाही दरबार के नौरत्नो में से एक बने।
उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना घटी थी, युद्ध के समय उनके घर की कुछ महिलाओ की रक्षा राणा प्रताप ने की थी और उन्हें सुरक्षित वापिस भी लौटाया था। इस घटना ने रहीम को जन्म से मुस्लिम और भगवान कृष्णा का अनुयायी बनाया, इसके बाद वे भगवान कृष्णा को समर्पित कविताएँ लिखते थे।
अब्दुल रहीम अजीब तरीके से गरीबो को भिक्षा देने के लिए भी जाने जाते थे। वे कभी उस इंसान की तरफ नही देखते थे जिन्हें वे भिक्षा देते थे, भिक्षा देते समय वे हमेशा अपना सिर निचे की तरफ ही रखते थे। जब तुलसीदास ने भिक्षा देते समय रहीम के इस व्यवहार के बारे में सुना तो उन्होंने तुरंत एक दोहा लिखा और उसे रहीम को भेजा :-
“इस कदर भिक्षा क्यों दे रहे हो? तुमने यह कहा से सिखा? तुम्हारे हात उतने ही निचे है जितनी की तुम्हारी आँखे नीची है।”
ये देखकर ऐसा लग रहा था जैसे तुलसीदास को उनके इस व्यवहार के कारण के बार में सब कुछ पता चला गया हो और इसीलिए उन्होंने रहीम को भी इसके जवाब में कुछ लिखने के लिए कहा। उस समय रहीम ने तुलसीदास को यह लिखकर भेजा की :-
“दाता दिन और रात दोनों समय कोई भी हो सकता है। लेकिन यह दुनिया हमेशा मुझे ही इसका श्रेय देती रहेंगी, इसीलिए मै अपनी आँखों को निचे की तरफ ही रखता हूँ।”
मुख्य कार्य :
बहुत से दोहे लिखने के अलावा, रहीम ने बाबर के संस्मरण का अनुवाद किया, बाबरनामा का अनुवाद चगताई भाषा से पर्शियन भाषा में किया, जिसका काम 998 CE (1589-90) में पूरा हुआ। संस्कृत पर रहीम की अच्छी पकड़ थी।
संस्कृत में उन्होंने ज्योतिषी शास्त्र पर दो किताबे लिखी। जिनका नाम खेताकौतुकम और द्वात्रिम्शाद्योगावाल्ली।
मुस्लिम धर्म के अनुयायी होने के बावजूद रहीम ने हिंदी साहित्य में तो काम किया है वह वाकई प्रशंसनिय है। आइये रहीम के कुछ प्रसिद्ध दोहों के बारे में जानते है :-
जो गरीब सों हित करैं, धनि रहीम वे लोग।
कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग ।।
इसका अर्थ यह होता है की जो लोग गरीबो का भला करते है असल में वही लोग धन्य होते है। वास्तव में ही देख लीजिये, कहा द्वारका के राजा कृष्णा और कहा गरीब सुदामा। दोनों के बीच अमीरी-गरीबी का अनगिनत अंतर था, लेकिन फिर भी कृष्णा ने सुदामा से दोस्ती की थी और अंत में उसे निभाया भी।
आज भी रहीम के यह दोहे हमें भारत के घर-घर में सुनाई देते है।
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